भारत की एक ऐसी नदी जिसके पानी को छूने से डरते है लोग
नदियां हमें न केवल पीने के लिए पानी देती हैं बल्कि इनसे फसलों की सिंचाई का काम भी होता है। नदी के किनारे ही कुंभ और महाकुंभ आयोजित किए जाते हैं। नदियों को प्राणियों का जीवन भी कहा जाता है क्योंकि मनुष्य और जीव जंतु नदियों पर ही आश्रित है।
हमारे देश में नदियां पूजनीय होती है। नदियों को मां कहा और माना जाता है। विभिन्न त्योहारों में नदियों की पूजा भी की जाती है। ऐसा मानते है लोग कि पवित्र नदियों में नहाने से उनके पाप धुल जाएंगे।
लेकिन क्या आप जानते है कि एक ऐसी भी नदी है जो शापित है और उस नदी के पानी को लोग छूने से डरते है इसलिए कि उनके काम न बिगड़ जाए और वह अशुभ न हो जाए।
तो चलिए उस नदी के बारे के जानते है ।👇
ऐसी नदी जिसे लोग छूने से डरते है उस नदी का नाम है – कर्मनाशा नदी।
कर्मनाशा का शाब्दिक अर्थ देखे तो कर्म का नाश करने वाली नदी है अर्थात कामों को नष्ट करने वाली या बिगाड़ने वाली नदी।
लोगो का ऐसा माना मानना है कि जो व्यक्ति इस नदी के पानी को छू लेगा उसके काम बिगड़ जायेंगे।
कर्मनाशा नदी का उद्गम
कर्मनाशा नदी का उद्गम बिहार के कैमूर जिले से हुआ है। इसके बाद यह नदी यूपी में सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी और गाजीपुर से होकर बहती है। फिर बिहार में ही बक्सर के समीप गंगा नदी में जाकर मिल जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार
एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा हरिशचंद्र के पिता सत्यव्रत बेहद पराक्रमी थी। उनके गुरु थे वशिष्ठ। अपने गुरु वशिष्ठ से सत्यव्रत ने एक वरदान मांगा। उन्होंने गुरु वशिष्ठ से सशरीर स्वर्ग में जाने की इच्छा व्यक्त कर दी। लेकिन गुरु वशिष्ठ ने मना कर दिया। इसके बाद सत्यव्रत नाराज हो गए और अपनी यह विश्वामित्र के पास व्यक्त की। विश्वमित्रा ने वशिष्ठ से शत्रुता के कारण राजा सत्यव्रत की बात मान गए। उन्हें स्वर्ग भेजने के लिए तैयार हो गए। विश्वामित्र ने अपने के बल पर यह काम कर दिया। सशरीर देख इंद्र क्रोधित हो गये और उन्हें उलटा सिर करके वापस धरती पर भेज दिया।
विश्वामित्र ने हालांकि अपने तप से राजा को स्वर्ग और धरती के बीच रोक दिया। ऐसे में सत्यव्रत बीच में अटक गये और त्रिशंकु कहलाए।
कथा के मुताबिक देवताओं और विश्वामित्र के युद्ध के बीच त्रिशंकु धरती और आसमान में उलटे लटक रहे थे। इस दौरान उनके मुंह से तेजी से लार टपकने लगी और यही लार नदी के तौर पर धरती पर प्रकट हुई। माना जाता है कि ऋषि वशिष्ठ ने राजा को चांडाल होने का शाप दे दिया था और उनकी लार से नदी बन रही थी, इसलिए इसे शापित कहा गया।
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