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यूरोपीय कंपनी का आगमन S.K pandey Aadhunik Bharat Book Notes in Hindi
- भारत और यूरोप के बीच व्यापार के लिए दो मुख्य समुद्री मार्ग और एक थल मार्ग था – 1) फारस की खाड़ी 2) लाल सागर 3) भारत के उत्तर पश्चिम सीमा के दर्रो ( जैसे खैबर दर्रा गोमल दर्रा) से होकर मध्य एशिया से। इसमें फारस की खाड़ी वाला मार्ग ज्यादा प्रचलन में था क्योंकि लाल सागर वाला मार्ग में अत्यधिक कोहरे पड़ता था।
- यूरोप पूर्वी देशों से मसालों के लिए (काली मिर्च और नमक) व्यापार करता था। क्योंकि ये मसाले यूरोप में बहुत महंगे बिकते थे। यूरोप में इन मसालों की जरूरत मांसाहारी भोजन को फ्रेश रखने और स्वाद बढ़ाने के लिए करते थे।
1453 ईस्वी में कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों ने अधिकार कर लिया जिससे पूर्वी और पश्चिमी देशों के बीच संपर्क स्थापित करने वाला मार्ग अवरुद्ध हो गया।
उस समय यूरोप में पुनर्जागरण चल रहा था। कई भौतिक आविष्कार हो रहे थे। इस स्थिति में यूरोप के नवीन राष्ट्र स्पेन और पुर्तगाल भारत और इंडोनेशिया के मसाला द्वीपों तक पहुंचने के लिए कम जोखिम भरा नवीन रास्ता खोजने के लिए लालायित हुए।
- पुर्तगाल के राजकुमार प्रिंस हेनरी द नेविगेटर ने एक दल तैयार किया जिसका नेतृत्व कर्त्ता बार्थोलोमियो डियाज था।
- वह 1487 ईस्वी मे नये समुद्री मार्ग के खोज के लिए निकला। वह केप ऑफ गुड होप तक पहुंचा। आगे भारत जाने का रास्ता उसे समझ नही आया तो वह वापस लौट आया। इस प्रकार बार्थोलोमियो डियाज ने केप ऑफ गुड होप की खोज की।
1492 ई० मे स्पेन के निवासी कोलम्बस ने भारत पहुंचने का मार्ग खोजते हुए अमेरिका को खोज निकाला ।
- पुर्तगाल के राजकुमार प्रिंस हेनरी द नेविगेटर ने एक बार फिर भारत तक नये मार्ग को खोजने के लिए पुर्तगाल के नाविक वास्कोडिगामा को भेजा।
- 1497 ई० मे वास्कोडिगामा भारत तक नये समुद्री मार्ग की खोज मे निकल पड़ा।
- सर्वप्रथम मई 1498 में ‘वास्कोडिगामा’ नामक पुर्तगाली नाविक उत्तमाशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) का चक्कर काटते हुए एक गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद की सहायता से भारत के ‘कालीकट’ बंदरगाह पर पहुँचा। जहाँ ‘कालीकट’ के हिंदू शासक (उपाधि-जमोरिन) ने उसका स्वागत किया। वास्कोडिगामा ने कालीकट के राजा से व्यापार का अधिकार प्राप्त किया, जिसका अरबी व्यापारियों ने विरोध किया। विरोध का कारण आर्थिक हित था।
- वास्कोडिगामा मसालों को लेकर वापस स्वदेश लौटा, उसके द्वारा ले जाया गया मसाला 60 गुना दामों पर बिका। इस लाभकारी घटना ने अन्य पुर्तगाली व्यापारियों को भारत आने के लिये आकर्षित किया।
- पुर्तगाली के बाद यूरोप के अन्य देश भी आए और अपनी फैक्ट्री भारत में स्थापित की।
यूरोपीय कंपनियों के आगमन और स्थापना का क्रम


पुर्तगालियों का आगमन
- पुर्तगाल के शासक डॉन हेनरिक को खोज में रूची के कारण हेनरी द नेविगेटर कहा जाता है।
- Cape of good hope (तुफानी अन्तरीप) अफ्रीका के अन्तिम किनारे की खोज 1487 ई. में बार्थोलोम्यू डियास (पुर्तगाल) ने की थी।
- 8 जुलाई 1497 ई. को पुर्तगाली कैप्टन ‘वास्को-डी-गामा’ भारत की खोज में निकला अब्दुल मजीद नामक गुजराती व्यापारी की सहायता से वह 20 मई 1498 ई. को कालीकट (केरल) में पहुँचा। भारत तक पहुँचने वाले इस मार्ग को Cape of good hope Route कहा गया।
- वास्कोडिगामा भारत से लौटते समय बड़ी संख्या में मशाले ले गया। उसने यूरोप में इसका व्यापार कर 60 गुणा मुनाफा कमाया।
- पुर्तगाल में पूर्व के साथ व्यापार हेतु ‘इस्तादो-द-इंडिया’ नामक कंपनी की स्थापना की गई।
- 1500 ई. में दूसरा पुर्तगाली कैप्टन पेड़ो अलवारेज कैब्राल 13 जहाजों के साथ भारत आया।
- वास्कोडिगामा पुनः 1502 ई. में भारत आया।
- पुर्तगालियों ने अपनी पहली फैक्ट्री 1503 ई. में कोचीन में स्थापित की तथा 2nd 1505 ई. में कन्नूर में स्थापित की।
- वास्कोडिगामा तीसरी बार भारत 1524 ई. में पुर्तगाली गर्वनर बनकर आया।
- दिसम्बर 1524 ई. में वास्कोडिगामा की मृत्यु भारत में ही हो गयी। उसे कोचीन में दफनाया गया।
फ्रांसिस्को डी आल्मीडा (1505-09)
- अल्मीडा भारत का प्रथम पुर्तगाली गवर्नर था।
- उसने शान्त जल की नीति (Blue water policy) को अपनाया।
- अल्मीडा ने 1509 ई. में मित्र, तुर्की एवं गुजरात के संयुक्त भी सेना को पराजित कर हिन्द महासागर में अपनी स्थिति को मजबूत किया।
अल्फांसो डी अल्बुकर्क (1509-15 ई.)
- भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- 1510 ई. में उसने गोवा को बीजापुर के शासक आदिलशाह से छीना।
- 1511 ई. में मलक्का तथा 1515 ई. में फारस की खाड़ी के होर्मुज बन्दरगाह को जीता।
- अल्बुकर्क ने भारतीयों से विवाह नीति को प्रोत्साहित किया।
- सती प्रथा का विरोध करने वाला पहला यूरोपीय अल्बुकर्क था। उसने अपने क्षेत्र में इस प्रथा को बंद करवा दिया था।
- अल्बुकर्क की मृत्यु गोवा में हुई। इसकी कब्र गोवा में हैं।
नीनो डी कुन्हा (1529-1538 ई.)
- अल्बुकर्क के बाद महत्वपूर्ण गर्वनर कुन्हा था।
- अंग्रेज भी डचो से पीछे नहीं रहे।
- 1530 ई. में उसने कोचीन की जगह गोवा को राजधानी बनाया।
- कुन्हा ने सेंट टॉम और बंगाल में हुगली में पुर्तगाली बस्तियां स्थापित की।
- 1534 ई. में बेसिन तथा 1535 ई. में दीव पर अधिकार कर लिया।
- 1559 ई. – दमन पर अधिकार हो गया।
डच एवं ब्रिटिश कम्पनियो के हिन्द महासागर में आ जाने से वहाँ पुर्तगालियों का एकाअधिकार समाप्त हो गया। पुर्तगालियों को कई पराजय का सामना करना पड़ा।
- 1602 ईस्वी – बाण्टम के समीप पुर्तगाली बेड़े पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया।
- 1641 ईस्वी – डचो ने पुर्तगालियों के मलक्का दुर्ग को जीत लिया।
- 1658 ईस्वी – संपूर्ण श्रीलंका को जीत लिया।
- 1612 ईस्वी – स्वाली (सूरत ) के युद्ध में अंग्रेजों ने पुर्तगालियों को हराया ।
- 1628 ईस्वी – अंग्रेजों ने हारमुज पर कब्जा कर लिया
- 1632 ई – मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल में कासिम खान ने हुगली पर कब्जा कर लिया ।
- 1739 ईस्वी – मराठों ने साष्टी और बसई पर अधिकार कर लिया
- केवल गोवा दमन और दीव 1961 ईस्वी तक पुर्तगालियों के अधिकार में रहे।
कार्टज व्यवस्था
- कार्टज का अर्थ है परमिट। हिन्द महासागर में व्यापार करने वाले भारतीय, अरबी तथा मुगलों को अरब सागर में जाने के लिए परमिट लेना पड़ता था। इसके बदले में पुर्तगाली सुरक्षा उपलब्ध कराते थे।
Note – मुगल सम्राट अकबर ने कार्टज व्यवस्था स्वीकार की थी।
पुर्तगालियों का प्रभाव
- यूरोपीय कम्पनियों को भारत में प्रवेश का मार्ग मिला (समुद्री मार्ग की खोज)।
- भारतीय उत्पाद का यूरोप में प्रसार।
- भारत में ईसाई धर्म का प्रचार।
- तम्बाकू, मूँगफली, आलू, मक्का, लीची, संतरा, काजू आदि फसलों का उत्पादन भारत में प्रारंभ।
- भारत में प्रिटिंग प्रेस का विकास।
- पुर्तगालियो को भारत का जापान के साथ व्यापार प्रारंभ करने का श्रेय।
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डच
- प्रथम डच यात्री कार्नेलियस हॉटमैन (हस्तमान) था। 1596 ई. में उसने सुमात्रा की यात्रा की तथा बाद में भारत की यात्रा की।
- डच संसद द्वारा 1602 ई. में ‘यूनाइटेड ईस्ट इण्डिया कम्पनी ऑफ नीदरलैण्ड’ की स्थापना की गयी।
- कम्पनी को 21 वर्षों के लिए भारत एवं पूर्वी क्षेत्र में व्यापार का आज्ञा पत्र दिया गया।
- डचों ने भारत से पहले सूती कपड़ा, रेशम, अफीम तथा शोरा का व्यापार किया। बाद में उसने भारत से नील एवं मासालों का भी व्यापार प्रारंभ किया।
- भारतीय कपड़ों को यूरोप के बाजार में पहुँचाने का श्रेय डचों को दिया जाता हैं।
- डचों ने भारतीय कपड़ों के निर्यात को अधिक महत्व दिया।
- डचों ने अपनी पहली फैक्ट्री मसुलीपट्टम (आंध्र प्रदेश) में 1605 ई० में स्थापित किया।
- दूसरी फैक्ट्री पुलीकट में स्थापित किया और इसे अपना मुख्यालय बनाया। यही से उन्होंने स्वर्ण सिक्के पैगोडा ढाले।
- 1616 में सूरत में, 1641 में विमलीपट्टम में स्थापित किया।
- बंगाल में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना पीपली में 1627 ईस्वी में।
- 1632 में पटना में डचों ने अपनी फैक्टी स्थापित की।
- 1653 ईस्वी में चिनसुरा में फैक्ट्री स्थापित की । चिनसुरा के डच किले को गुस्तावुस फोर्ट के नाम से जाना जाता है।
- 1658 ईस्वी – कासिम बाजार , बालासोर, नेगापट्टम में फैक्ट्री स्थापित।
- 1660 ईस्वी – गोलकुंडा में फैक्ट्री स्थापित।
- 1663 ईस्वी – कोचीन में फैक्ट्री स्थापित।
- औरंगजेब ने 1664 ईस्वी में डचों को वार्षिक चुंगी पर बंगाल, बिहार,उड़ीसा में व्यापार करने का अधिकार दिया।
1759 ई० के बेदरा के युद्ध में अंगेजों ने डचों को पराजित कर दिया। इस युद्ध द्वारा भारत में डचों को पत्तन हो गया।
कार्टल (cartel)
डच व्यापारिक व्यवस्था सहकारिता अर्थात् कार्टल (cartel) पर आधारित थी। डच कम्पनी की संयुक्त पूँजी 65 लाख गिल्टर थी। कंपनी का संचालन 17 सदस्यीय एक बोर्ड द्वारा किया जाता था।
अंग्रेज
- ‘गवर्नर एण्ड कंपनी ऑफ मर्चेण्ट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडीज’ इसकी स्थापना कुछ व्यापारियों ने 1599 ई० में की ।
- अंग्रेजी कंपनी की स्थापना 31 दिसम्बर 1600 ई० को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने किया। उन्होंने कंपनी को पूर्वी देशों से व्यापार के लिए 15 वर्षों का फरमान दिया।
- भारत में प्रथम अंग्रेज कैप्टन हॉकिंस 1608 ई० में हेक्टर नामक व्यापारिक जहाज से सूरत पहुँचा।
- कैप्टन हॉकिंस ब्रिटेन का राजा जेम्स प्रथम के दूत के रूप में 1609 ई० में मुगल दरबार में पहुंचा। जहाँगीर ने हॉकिंस को ‘खान की उपाधि दी तथा 400 का मनसब प्रदान किया।
- हॉकिन्स ने अंग्रेजों के लिए सूरत में एक फैक्ट्री खोलने की अनुमति मांगी। पहले अनुमति दे दी गई लेकिन पुर्तगालियों के विरोध के कारण यह अनुमति रद्द कर दी गई।
- 1611- 12 ईस्वी में अंग्रेजी कैप्टन मिडल्टन ने स्वाली के युद्ध में पुर्तगालियों के जहाजी बेड़े को हराया। जहांगीर अंग्रेजों से प्रभावित हुआ और 1613 ईस्वी के अंग्रेजों को सूरत में फैक्ट्री बनाने की अनुमति दे दी।
- 1611 में मुगल बादशाह जहाँगीर के दरबार में अंग्रेज़ कैप्टन मिडल्टन पहुँचा और व्यापार करने की अनुमति पाने में सफल हुआ। जहाँगीर ने 1613 में सूरत में अंग्रेज़ों को स्थायी कारखाना (फैक्ट्री) स्थापित करने की अनुमति दे दी।
- अंग्रेजों ने अपनी प्रथम फैक्ट्री 1613 ई० में सूरत में स्थापित की।
- 1615 में इंग्लैंड के सम्राट जेम्स प्रथम का एक दूत सर टॉमस रो जहाँगीर के दरबार में आया। उसका उद्देश्य एक व्यापारिक संधि करना था। ‘सर टॉमस रो’ ने मुगल साम्राज्य के सभी भागों में व्यापार करने एवं फैक्ट्रियाँ स्थापित करने का अधिकार पत्र प्राप्त कर लिया।
- 1623 ई. (17वीं शताब्दी के पहले चतुर्थांश) तक अंग्रेजों ने सूरत, आगरा, अहमदाबाद, मछलीपट्टनम (मसुलीपट्टनम) तथा भड़ौच में अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना कर ली थी।
- दक्षिण भारत में अंग्रेजों ने अपनी प्रथम व्यापारिक कोठी की स्थापना 1611 में मसुलीपट्टनम की। तत्पश्चात् 1639 में मद्रास में व्यापारिक कोठी खोली गई।
- पूर्वी भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित प्रथम कारखाना 1633 में उड़ीसा के बालासोर में खोला गया और 1651 में हुगली नगर में व्यापार करने की अनुमति मिल गई। तत्पश्चात् बंगाल, बिहार, पटना और ढाका में भी कारखाने खोले गए।
- 1632 ई० में अंग्रेजों को सुनहरा फरमान गोलकुंडा के सुल्तान अब्दुल्ला कुतुब शाह ने दिया। इसमें 500 पैगोडा प्रतिवर्ष के बदले गोलकुंडा में स्वतंत्र व्यापार करने का फरमान दिया ।
- 1661 ई० में चार्ल्स द्वितीय ने कंपनी को मुद्रा ढालने, किला बनाने, राज्यों से सधि करने, न्याय कार्य करने आदि का अधिकार प्रदान किया।
- 1661 ई० में ही ब्रिटिश राजकुमार चार्ल्स द्वितीय का विवाह पूर्तगाली राजकुमारी कैथेरीन से हुआ। चार्ल्स को उपहार में बम्बई का बंदरगाह प्राप्त हुआ।
- 1668 ई० चार्ल्स ने कंपनी को 10 पौण्ड के वार्षिक किराये पर बबई दे दिया।
- 1687 में बंबई को वेस्टर्न प्रेसिडेंसी का मुख्यालय बना दिया गया।
- 1686 में अंग्रेजों ने हुगली को लूट लिया। उनका मुगल सेनाओं से संघर्ष हुआ। जिसके बाद कंपनी को सूरत, मसुलीपट्टनम, विशाखापट्टनम आदि के कारखानों से अपने अधिकार खोने पड़े, परंतु अंग्रेजों द्वारा क्षमायाचना करने पर औरंगजेब ने उन्हें डेढ़ लाख रुपया मुआवजा देने के बदले पुनः व्यापार के अधिकार प्रदान कर दिये।
- 1698 में बंगाल के सुबेदार अजीमुशान द्वारा अंग्रेजों को सुतानती, कलिकाता (कालीघाट-कलकत्ता) और गोविंदपुर नामक तीन गाँवों की जमींदारी मिल गई। इन्हीं को मिलाकर जॉब चार्नाक ने कलकत्ता की नींव रखी। कंपनी की इस नई किलेबंद बस्ती को फोर्ट विलियम का नाम दिया गया। चार्ल्स आयर को प्रथम प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया।
- कलकत्ता को अंग्रेज़ों ने 1700 में पहला प्रेसिडेंसी नगर घोषित किया। कलकत्ता 1774 से 1911 तक ब्रिटिश भारत की राजधानी बना रहा।
- 1717 में मुगल सम्राट फर्रुखसियर का इलाज कंपनी के एक डॉक्टर विलियम हैमिल्टन द्वारा किये जाने से फर्रुखसियर ने कंपनी को व्यापारिक सुविधाओं वाला एक फरमान जारी किया।
- फरमान में एक निश्चित वार्षिक कर (3000 रुपये) चुकाकर निःशुल्क व्यापार करने तथा बंबई में कंपनी द्वारा ढाले गए सिक्कों के संपूर्ण मुगल राज्य में चलाने की आज्ञा मिल गई।
उन्हें वही कर देने पड़ते थे जो भारतीय को भी देने होते थे। - ब्रिटिश इतिहासकार ‘ओर्म्स’ ने इस फरमान को कंपनी का ‘महाधिकार पत्र’ (मैग्नाकार्टा) कहा है।
डेनिस
- अंग्रेजों के बाद डेन 1616 में भारत आए।
- भारत, श्रीलंका एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया से व्यापार करने हेतु डेनिसों ने ‘डेनिस ईस्ट इंडिया कंपनी’ की स्थापना की।
- डेनिसों ने प्रथम फैक्टी 1620 में ट्रैकोबार तथा 1676 में सेरामपोर (बंगाल) में अपनी फैक्ट्रियाँ स्थापित कीं।
- यह कंपनी भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने में असफल रही और 1745 तक अपनी सारी फैक्ट्रियाँ अंग्रेजों को बेचकर चली गई।
फ्रांसीसी
- फ्राँसीसियों ने भारत में अंत में प्रवेश किया।
- सन् 1664 में फ्राँस के सम्राट लुई चौदहवें के मंत्री कोल्बर्ट के प्रयास से ‘फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी’ की स्थापना हुई, जिसे ‘कंपने फ्रैंकेस देस इंडेस ओरिएंटलेस’ (Compagnie Francaise Des Indes Orientales) कहा गया।
- फ्रांसीसी कंपनी का निर्माण फ्रांस सरकार द्वारा किया गया तथा इसका सारा खर्च सरकार ही वहन करती थी। इसे सरकारी व्यापारिक कंपनी भी कहा जाता था, क्योंकि यह कंपनी सरकार द्वारा संरक्षित एवं आर्थिक सहायता पर निर्भर थी।
- 1668 में फ्रैंकोइस कैरो द्वारा सूरत में प्रथम फ्राँसीसी फैक्ट्री की स्थापना की गई।
- 1669 में मसुलीपट्टनम में दूसरी व्यापारिक कोठी स्थापित की गई।
- 1673 में कंपनी के निदेशक फ्रैंको मार्टिन ने वलिकोंडापुरम के सूबेदार शेर खाँ लोदी से कुछ गाँव प्राप्त किए, जिसे बाद में ‘पॉण्डिचेरी’ के नाम से जाना गया।
- 1674 में फ्रैंको मार्टिन ने पॉण्डिचेरी में व्यापारिक केंद्र की स्थापना की।
- पॉण्डिचेरी में फ्राँसीसियों द्वारा ‘फोर्ट लुई’ नामक किला बनवाया गया।
- 1673 में बंगाल के नवाब शाइस्ता खाँ ने फ्राँसीसियों को एक जगह किराए पर दी, जहाँ ‘चंद्रनगर’ की सुप्रसिद्ध कोठी की स्थापना की गई। यहाँ का किला ‘फोर्ट ओरलिएस’ कहा जाता है।
- फ्राँसीसियों द्वारा 1721 में मॉरीशस, 1725 में मालाबार में स्थित माहे एवं 1739 में कारीकल पर अधिकार कर लिया गया।
1742 के पश्चात् व्यापारिक लाभ कमाने के साथ-साथ फ्राँसीसियों की महत्त्वकांक्षाएँ भी जागृत हो गई। इस दौरान फ्राँसीसी गवर्नर डूप्ले का भारतीय राज्यों में हस्तक्षेप और फ्राँसीसी शक्ति का विस्तार हुआ। परिणामस्वरूप अंग्रेजों और फ्राँसीसियों के बीच तीन युद्ध हुए, जिन्हें ‘कर्नाटक युद्ध’ के नाम से जाना जाता है।
