क्लिफर्ड गीर्टज के धर्म पर विचार |Clifford Geertz ke dharm sambandhi vichar

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क्लिफर्ड गीर्टज के धर्म पर विचार

क्लिफर्ड गीर्टज के धर्म पर विचार |Clifford Geertz ke dharm sambandhi vichar




क्लिफर्ड गीर्टज अमेरिकी मानवविज्ञानी थे। इन्होंने ज्यादातर अध्ययन सांस्कृतिक प्रतीकों का किया है। इन्हे संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे सांस्कृतिक मानव विज्ञानी माना जाता है।

क्लिफर्ड गीर्टज ने धर्म संबंधित विचारो मे महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने अपनी पुस्तक ” The Interpretation of Culture” और निबंध “Religion as a Cultural system” में धर्म संबंधित विचारो को प्रस्तुत किया है। उन्होंने बाली में होने वाले cock fight के बारे में भी अपने विचारो को प्रस्तुत किया है।

गीर्टज के अनुसार धर्म – 1) प्रतीको की एक व्यवस्था है जो 2) मनुष्य मे सशक्त , व्याप्त और चिरस्थायी इच्छाओं एवं प्रेरणाओ को स्थापित करने का कार्य करता है। 3) अस्तित्व की सामान्य व्यवस्था की अवधारणाओं को यर्थाथता प्रदान करता है जिससे 5) इच्छाये एवं प्रेरणाये परक दिखती है।

गीर्टज के अनुसार संस्कृति प्रतीको की एक व्यवस्था / संकुल है तथा धर्म संस्कृति के भाग होने के कारण प्रतीतात्मक है।

गीर्टज कहते है कि धर्म सामाजिक अस्तित्व की रुपरेखा प्रस्तुत करते हैं और प्रतीक के द्वारा लोग दुनिया के बारे मे अपना एक नजरिया बनाते है । प्रतीक लोगों के विचार , उनके जीवन के आचार विचार अर्थात् हमे कैसा व्यवहार करना चाहिए ये बताते है।

अनेक समाजो में धार्मिक प्रतीको को बिना किसी आलोचना के स्वीकार किया जाता है। उनके अनुसार वे व्यक्ति जो प्रतीको के मानदण्ड को स्वीकार नहीं करते वे मूर्ख तथा अनपढ़ होते है। बहुत सारे प्रतीको के संग्रह से सांस्कृतिक पैटर्न का निर्माण होता है।

प्रतीक पवित्र और प्रभावशाली होते है। मनुष्यों में वे स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं जो उन्हे कालातीत बना देता है। गीर्टज एक जावाई रहस्यमय व्यक्ति का उदाहरण देते है जो लालटेन की लौ पर आँख गड़ाए हुए देखता रहता है इससे उसके व्यवहार मे स्व अनुशासन भावात्मक अभिव्यक्ति पर नियत्रंण आता है जो किसी भी रहस्यवादी व्यक्ति से अपेक्षित होता है। दूसरा उदाहरण देते है कि एक हताश व्यक्ति अपने इष्ट देवता की प्रतिमा र्क आगे जोर –  जोर से रोता है उनका आर्शीवाद प्राप्त करना चाहता है । 

इस प्रकार की स्थिति आस्थावान मे ऐसे भाव पुज का संचार कर देती है जो उसके अनुभवो के स्तर को स्वरूप प्रदान करता है।

गीर्टज के अनुसार धर्म लोगों मे दो प्रकार की व्यवस्था उत्पन्न करता है- 1 ) मनोदशा 2) प्रेरणा 

1 ) मनोदशा – ये कुछ निश्चित परिस्थितियों में उत्पन्न होती है। जैसे उल्लास या उदासी मनोदशाएँ है इनकी तीव्रता मे अन्तर आता है । ये कुहरे की भाँति केवल छाँटी / छॅट जाती है , सुगंध की तरह फैल जाती , वाष्प की भाँति उड़ जाती है।

2 ) प्रेरणा – एक सतत् प्रवृत्ति एक विशेष प्रकार की क्रिया करने का एक पुराना आकषर्ण तथा विशेष प्रकार की स्थितियों में विशेष प्रकार का अनुभव प्राप्त करना है। ये निश्चित दिशा में गतिमान होती है ।

इस प्रकार प्रेरणा अपने निहित उद्देश्यों की प्राप्ति के संबंध मे सार्थक होता है। जबकि मनोदशाएँ जिन दशाओं से उत्पन्न होती हैं उनके संबंध मे सार्थक होती है ।


निष्कर्ष – 

इस प्रकार गीर्टज धार्मिक विश्लेषण के सांस्कृतिक आयाम का विकास करने के पथ पर अग्रसर है।गीर्टज के विचारों का केन्द्रीय बिन्दु है कि धार्मिक विश्वास न केवल सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं की ब्रह्माण्डीय सन्दर्भों में व्याख्या करते हैं बल्कि वे उन्हें आकार भी प्रदान करते हैं। गीर्ट्ज अपने धर्म सम्बन्धी अध्ययन में कहते है कि धार्मिक प्रघटनाओं के समाजशास्त्रीय अध्ययन में जड़ता आ गई है। इस जड़ता को धार्मिक अध्ययनों में प्रतीकात्मक विश्लेषण के द्वारा दूर किया जा सकता है । इस प्रकार उन्होंने धर्म के प्रतीकात्मक रूप पर अत्यधिक बल दिया ।

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