मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ और विशेषताएँ – UP B.ed notes in hindi

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मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ और विशेषताएँ -UP B.ed notes in hindi 

मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ-

किसी भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य का संबंध उसकी भावनात्मक (इमोशनल), मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिकल) और सामाजिक (सोशल) स्थिति से जुड़ा होता है। मानसिक स्वास्थ्य से व्यक्ति के सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता प्रभावित होती है। इसका असर व्यक्ति के तनाव को संभालने और जीवन से जुड़े जरूरी विकल्प के चयन पर भी पड़ सकता है। मानसिक स्वास्थ्य जीवन के प्रत्येक चरण अर्थात बचपन, किशोरावस्था, वयस्कता और बुढ़ापे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मानसिक स्वास्थ्य में हमारा भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण शामिल होता है। यह हमारे सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करता है।

मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा:-

जब व्यक्ति किसी भी तरह की मानसिक बीमारी से मुक्त होता है तो उसे मानसिक रूप से स्वस्थ समझा जाता है और उसकी इस अवस्था को मानसिक स्वास्थ्य की संज्ञा दी जाती है।

हेडफील्ड के अनुसार साधरण शब्दों में हम कह “सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य सम्पूर्ण व्यक्तित्व का पूर्ण सामंजस्य के साथ कार्य करना है”। 

कुप्पूस्वामी के शब्दों में, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ दैनिक जीवन में भावनाओं, इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं एवं आदर्शों में संतुलन बनाए रखने की योग्यता है। इसका अर्थ जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने तथा उनको स्वीकार करने की योग्यता है’’।

के.ए.मेनिंगर के शब्दों में, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य, मनुष्यों का आपस में तथा मानव जगत के साथ समायोजन है’’। 

क्रो व क्रो के शब्दों में, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान वह विज्ञान है जिसका संबंध मानव कल्याण से है और इसी से मानव संबंधों का संपूर्ण क्षेत्र प्रभावित होता है।”

लैडेल के अनुसार, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है वास्तविकता के धरातल पर वातावरण से पर्याप्त समायोजन करने की योग्यता’’।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास होता है। इस स्थिति में व्यक्ति दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से बातचीत कर सकता है। साथ ही तनाव की समस्या से निपटने की क्षमता भी रखता है।

19वीं शताब्दी के मध्य में, विलियम स्वीटजर प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने “मानसिक स्वास्थ्य” को पहली बार स्पष्ट रूप से परिभाषित किया, जिसे सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के कार्यों के समकालीन दृष्टिकोण के अग्रदूत के रूप में देखा जा सकता है।



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मानसिक स्वास्थ्य की विशेषताएँ:-

1.नियमित जीवन (Regular Life):-

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति जीवन का प्रत्येक कार्य एक निश्चित समय एवं स्वाभाविक ढंग से करता है। उसके रहन-सहन, खान-पान, सोने-जागने की निश्चित आदतें बन जाती हैं। वह अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर पूर्ण ध्यान देता है तथा उसका शरीर स्वस्थ एवं निरोग रहता है।

2. सामंजस्य की योग्यता (Ability to Adjust):-

 मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति सामाजिक जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में शीघ्र समायोजन स्थापित कर लेता है। वह दूसरों के विचारों एवं समस्याओं को ठीक प्रकार से समझकर उनसे यथोचित व्यवहार करता है।

3. संवेगात्मक परिपक्वता (Emotional Maturity):- 

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के व्यवहार में बौद्धिक एवं संवेगात्मक परिपक्वता दिखलाई पड़ती है। इसका तात्पर्य यह है कि मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति में भय, क्रोध, प्रेम, घृणा, ईर्ष्या आदि संवेगों को नियन्त्रण में रखने तथा उचित ढंग से प्रकट करने की योग्यता होती है। उसे अपने संवेगों पर नियन्त्रण करने में किसी तरह का मानसिक कष्ट नहीं होता और वह समस्त कार्यों को प्रसन्नतापूर्वक एवं सफलतापूर्वक सम्पन्न करता है।

4. आत्मविश्वास (Self-Confidence):-

 मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में आत्मविश्वास की भावना होती है। वह अपना समस्त कार्य पूर्ण आत्मविश्वास से करता है और उसमें सफल होता है।

5. आत्म-मूल्यांकन की क्षमता (Self Evaluation):- 

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति गुण एवं दोषों को जानता है। वह अपने द्वारा किये गये उचित एवं अनुचित कार्यों का अपने निष्पक्ष रूप से विश्लेषण कर सकता है तथा अपने दोषों को सहज रूप से स्वीकार कर लेता है । वह स्वयं अपने व्यवहार को सुधारने का प्रयास करता है।

6. सहनशीलता एवं सन्तुलन (Tolerance and Balance):-

 मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति को जीवन की निराशाओं, विपरीत परिस्थितियों आदि का सामना करने में कष्ट का अनुभव नहीं होता। वह इन परिस्थितियों में अपना मानसिक सन्तुलन बनाये रखता है और अत्यन्त धैर्य एवं सहनशीलता के साथ उनका सामना करते हैं।

7. संतोषजनक सामाजिक समायोजन (Satisfactory Social Adjustment):-

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति समाज में स्वयं को भली-भाँति समायोजित कर लेता और उसके सामाजिक सम्बन्ध अत्यन्त सन्तुलित होते हैं। वह सामाजिक कार्यों में प्रसन्नतापूर्वक भाग लेता है।

8. कार्य क्षमता एवं कार्य में संतोष (Efficiency and Satisfaction):-

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने कार्य को अत्यन्त रुचिपूर्वक एवं ध्यानपूर्वक करता है। उसे कार्य को सम्पन्न करने में आनन्द और संतोष प्राप्त होता है और उसकी कार्यक्षमता बढ़ती है। उदाहरण के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ विद्यार्थी जब अध्ययन में रुचि लेता है तो उसे आनन्द प्राप्त होता है और सफलता प्राप्त करने पर उसे प्रोत्साहन मिलता है। इससे उसकी कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति जिस व्यवसाय में लगा रहता है उसमें उसकी रुचि होती है और उसे अपने कार्य से सन्तुष्टि भी होती है। इस तरह उसमें व्यवसाय सम्बन्धी कार्यशीलता बढ़ती जाती है।

9. सहनशीलता:-

ऐसे व्यक्ति में सहनशीलता होती है। अतः उसे अपने जीवन की निराशाओं को सहन करने में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है।

10. जीवन-दर्शन:-

ऐसे व्यक्ति का एक निश्चित जीवन दर्शन होता है, जो उसके दैनिक कार्यों को अर्थ और उद्देश्य प्रदान करता है। उसके जीवन दर्शन का सम्बन्ध इसी संसार से होता है। अतः उसमें इस संसार से दूर रहने की प्रवृत्ति नहीं होती है। इसी प्रवृत्ति के कारण वह अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए वास्तविक कार्य करता है। वह अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों की कभी अवहेलना नहीं करता है।

12. वातावरण का ज्ञान:-

ऐसे व्यक्ति को वातावरण और उसकी शक्तियों का ज्ञान होता है। इस ज्ञान के आधार पर वह निर्भय होकर भावी योजनायें बनाता है। उसमें जीवन की वास्तविकताओं का उचित ढंग से सामना करने की शक्ति होती है।

13. सामंजस्य की योग्यता:-

ऐसे व्यक्ति में सामंजस्य करने की योग्यता होती है। इसका अभिप्राय यह है कि वह दूसरों के विचारों और समस्याओं को एवं उनमें पाई जाने वाली विभिन्नताओं को स्वाभाविक बात समझता है। वह स्थायी रूप से प्रेम कर सकता है, प्रेम प्राप्त कर सकता है और मित्र बना सकता है।

14. निर्णय करने की योग्यता:-

ऐसे व्यक्ति में निर्णय करने की योग्यता होती है। वह स्पष्ट रूप से विचार करके प्रत्येक कार्य के सम्बन्ध में उचित निर्णय कर सकता है।

15. वास्तविक संसार में निवास:-

ऐसा व्यक्ति वास्तविक संसार में, न कि काल्पनिक संसार में, निवास करता हैं उसका व्यवहार वास्तविक बातों से, न कि इच्छाओं और काल्पनिक भयों से निर्देशित होता है।

16. शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति ध्यान:-

ऐसा व्यक्ति अपने शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति पूर्ण ध्यान देता है। वह स्वस्थ रहने के लिए नियमित जीवन व्यतीत करता है। वह भोजन, नींद, आराम, शारीरिक कार्य, व्यक्तिगत स्वच्छता और रोगों से सुरक्षा के सम्बन्ध में स्वास्थ्य प्रदान करने वाली आदतों का निर्माण करता है।

17. आत्म-सम्मान की भावना:-

ऐसे व्यक्ति में आत्म-सम्मान की भावना होती है। वह अपनी योग्यता और महत्त्व को भली-भाँति समझता है एवं दूसरों से उनके सम्मान की आशा करता है।

18. व्यक्तिगत सुरक्षा की भावना:-

ऐसे व्यक्ति में व्यक्तिगत सुरक्षा की भावना होती है। वह अपने समूह में अपने को सुरक्षित समझता है। वह जानता है कि उसका समूह उससे प्रेम करता है और उसे उसकी आवश्यकता है।

19. आत्म-मूल्यांकन की क्षमता:-

ऐसे व्यक्ति में आत्म-मूल्यांकन की क्षमता होती है। उसे अपने गुणों, दोषों, विचारों और इच्छाओं का ज्ञान होता है। वह निष्पक्ष रूप से अपने व्यवहार के औचित्य और अनौचित्य का निर्णय कर सकता है। वह अपने दोषों को सहज ही स्वीकार कर लेता है।

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