सामाजिक महामारी विज्ञान और उसके उपागम या परिप्रक्ष्य (Social epidemiology and approaches)
सामाजिक महामारी विज्ञान(Social epidemiology)
सामाजिक महामारी विज्ञान(Social epidemiology) महामारी विज्ञान (epidemiology) की एक नई शाखा है। महामारी विज्ञान रोग के कारण और रोगो के वितरण पर ध्यान केन्द्रित करता है तो वही सामाजिक महामारी विज्ञान सामाजिक कारको पर बल देता है। यह सामाजिक संरचना, संस्कृति और पर्यावरण जैसे सामाजिक कारको का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है और रोगों के वितरण पर सामाजिक कारकों का योगदान है, का अध्ययन करता है।
इस तरह सामाजिक महामारी विज्ञान इस बात पर केन्द्रित है कि “समाज कैसे शरीर में प्रवेश ( How society gets into the body) ” करता है।
उपागम / प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य (Approach of social epidemiology) –
सामाजिक महामारी विज्ञान के अध्ययन मे अनेक परिप्रेक्ष्य या उपागम का अध्ययन किया जाता है जो इस प्रकार है –
1) जैविक प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य ( Biological paradigm/approach)
2) जैव मनोसामाजिक प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य ( Bio-psychosocial paradigm/ approach)
3) जनसंख्या स्वास्थ्य प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य ( Population Health paradigm/ approach)
4) रोग वितरण का पारिस्थिकीय – सामाजिक सिद्धांत ( Eco social theory of disease distribution)
5) मनोवैज्ञानिक प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य ( Psychological paradigm/ approach)
6) राजनीतिक आर्थिक प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य ( Political economy paradigm/ approach )
1) जैविक प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य ( Biological paradigm/approach)
इस प्रतिमान का प्रयोग आधुनिक महामारी विज्ञान करता हैं। इस प्रतिमान के अनुसार सभी रोग जैविक घटनाएं है। अर्थात किसी भी रोग का कारण बैक्टीरिया, वायरस, जीवाणु , कीटाणु, परजीवी आदि है। इस प्रतिमान में रोग के कारक के रूप में सामाजिक संरचनात्मक, सांस्कृतिक, आर्थिक कारकों को महत्व नही दिया जाता है।
2) जैव मनोसामाजिक प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य ( Bio-psychosocial paradigm/ approach)
सामाजिक महामारी विज्ञान में जैव-मनोसामाजिक प्रतिमान एक महत्वपूर्ण कारक है। इस प्रतिमान के अनुसार रोग सामाजिक कारकों, व्यक्तिगत कारकों और जैविक कारकों के बीच पारस्परिक संपर्क के कारण उत्पन्न होता है।
3) जनसंख्या स्वास्थ्य प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य ( Population Health paradigm/ approach)
इस परिप्रेक्ष्य के अनुसार किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र की सामाजिक समस्या वहां के सभी जनसंख्या के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। यह परिप्रेक्ष्य जेफ्री रोज ने दिया था।
4) रोग वितरण का पारिस्थिकीय – सामाजिक सिद्धांत ( Eco social theory of disease distribution)
इस परिप्रेक्ष्य के अनुसार पारिस्थिकीय कारक और सामाजिक कारक रोग के वितरण के लिए उत्तरदायी है।
5) मनोवैज्ञानिक प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य (Psychological paradigm/ approach)
इस परिप्रेक्ष्य के अनुसार मनोवैज्ञानिक कारक जैसे stress और strain व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करते है। लेकिन सामाजिक पूंजी और सामाजिक सामंजस्य के द्वारा लोगो के स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है।
6) राजनीतिक आर्थिक प्रतिमान / परिप्रेक्ष्य ( Political economy paradigm/ approach )
इस परिप्रेक्ष्य के अनुसार राजनीतिक और आर्थिक कारक लोगो के स्वास्थ्य और रोग के वितरण को प्रभावित करते है। यह परिप्रेक्ष्य आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों के निर्णयों पर ध्यान केंद्रित करता जो आर्थिक और सामाजिक विशेषाधिकार को बनाए रखते है जिससे स्वास्थ्य में असमानता देखने को मिलती है।
#samajik mahamari vigyan
#samajik mahamari vigyan ke drishtikon
Thanku..
Aapne ye topic bahut achhe se discuss Kiya hai
Hmm
Mahilao mein Sikha or rojgar ke pakchh or vipakachh sambandhit tathya prastut krein.
अद्भुत अदम्य साहस की परिभाषा है
शानदार जबरदस्त जिंदाबाद
हर हर महादेव
क्या पेज बनाए हो भाई वाह क्या लिखे हो भाई वाह सबको आती नहीं और तुम्हारी जाति नहीं लिख उनकी शैली
Aapne jo likha hai esa lagta hai ki society ko aap achhe se samjha rahe hai
Thank you for appreciate 😊
We'll try. Thank you for suggestion.
Thanku for appreciate..