सामाजिक अनुसंधान में नैतिक मुद्दों की विवेचना कीजिए

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शोध / अनुसंधान नैतिकता (Research Ethics )

अनुसंधान ( शोध ) एक क्रमबद्ध एवं दीर्घ अवधि की प्रक्रिया है,जो विभिन्न चरणों में पूर्ण होती है । अनुसंधान या शोध कार्य को धैर्यपूर्वक करना चाहिये , जल्दबाजी या शॉर्टकट के द्वारा किया गया शोध कार्य त्रुटियुक्त होता है । कोई भी शोध कार्य पूर्ण होने पर भविष्य हेतु उपयोगी होता है ।

 अनुसंधानकर्ता को अनुसंधान में किसी समस्या के समाधान तथा समस्या के संदर्भ में कुछ मुख्य बातों को ध्यान में रखते हुए शोध कार्य करना चाहिये । 

समस्या के समाधान में मुख्य बातें – गहन अध्ययन + स्वविवेक बौद्धिक + कोशल । 

समस्या के संदर्भ में मुख्य बातें – तथ्यों की गहन व व्यापक खोज करनी चाहिये |



अनुसंधान ( शोध ) नैतिकता , अनुसंधान के जिम्मेदार आचरण के लिये दिशा – निर्देश प्रदान करता है । जब हम नैतिकता के बारे में सोचते हैं तो हम सही एवं गलत के बीच में भेद करने वाले नियमों के बारे में सोचते हैं । अनुसंधान नैतिकता का विषय अनुसंधान के प्रदत्त संकलन तथा विवेचन के चरण में संगत माना गया है , जैसे- शोध रिपोर्ट्स को रिपोर्ट करना शोध नैतिकता का विषय हो सकता है । 

अनुसंधान नैतिकता का बहुधा प्रत्यक्ष संबंध समस्या प्रतिपादन और अनुसंधान निष्कर्षों को प्रतिवेदित करने से होता है । अनुसंधान नैतिक तभी होगा जब उत्तरदाता की गोपनीयता तथा अज्ञानता सुनिश्चित होंगी । शोध नैतिकता को बेहतर करने हेतु शोधार्थी को ही समस्या सौंपनी चाहिये ।

शोध नैतिकता का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definition of Research Ethics ) 

मानव को सामाजिक प्राणी होने के नाते कुछ सामाजिक मर्यादाओं का पालन करना पड़ता है । समाज की इन मर्यादाओं में सत्य , अहिंसा , विनम्रता , सच्चरित्र एवं परोपकार आदि अनेक गुण सम्मिलित होते हैं इन गुणों को सामूहिक रूपों से नैतिकता के अन्तर्गत सम्मिलित माना जाता है । 

नैतिकता एक ऐसा व्यापक शब्द है जिसमें समाज की लगभग सभी मर्यादाओं का पालन हो जाता है । नैतिकता ज्ञान की वह शाखा है जो नैतिक नियमों या संहिताओं से सम्बंधित होती हैं । यही नैतिक नियम व्यक्ति के व्यवहार अथवा किसी ( क्रिया जिसमें शोध भी सम्मिलित है ) का संचालन करते है । नैतिकता या नैतिक संहिता का अनुमोदन किसी बाह्य शक्ति द्वारा नहीं किया जाता वरण इसकी पीछे समाज की शक्ति का हाथ रहता है जो समाज में कुरीतियों का दमन करते है । नैतिकता समाज की मान्यताओं के अनुकूल कार्य करना नैतिक माना जाता है ।

नैतिकता शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ” Moralis ” शब्द से हुई हैं जिसका अर्थ तौर तरीका या चाल चलन चरित्र अथवा उचित व्यवहार हैं । 

परिभाषा : . मैकाइवर एवं पेज के अनुसार ” नैतिकता नियमों की वह व्यवस्था होती हैं जिसके द्वारा व्यक्ति का अन्तःकरण उचित और अनुचित का बोध कराता है । ” 

डेविस के अनुसार नैतिकता कर्तव्य की वह आतरिक भावना है जिसमें उचित अनुचित भावनाओं का विचार सन्निहित हो । ” . 

                      उपरोक्त विचारों से स्पष्ट है कि नैतिकता द्वारा आचरण का मूल्यांकन होता है जो आचरण नैतिक नियमों के अनुरूप होते हैं उसे नैतिक आचरण कहा जाता है ।

शोध नैतिकता की विशेषताएँ ( Characteristics of Research Ethics ) 

शोध नैतिकता की निम्न विशेषताएं होनी चाहिए : –

( 1 ) नैतिक नियम सम्पूर्ण समूदाय द्वारा स्वीकृत होते है ।

( 2 ) नैतिकता एक परिवर्तनशील संकल्पना है क्योंकि समय व स्थान के अनुसार परिवर्तन होते रहता है । 

( 3 ) नैतिकता का संबंध व्यक्ति या शोधार्थी के चरित्र से होता है । 

( 4 ) नैतिकता का पालन शोधार्थी द्वारा स्वेच्छा से किया जाना चाहिए । 

( 5 ) नैतिकता मुख्य रूप से सत्यता , ईमानदारी और पवित्रता की भावना जैसे मूल्यों पर आधारित होती है । 

( 6 ) नैतिकता तकों की प्रधानता पाई जाती है । 

( 7 ) नैतिकता का संबंध सामाज में पाये जाने वाले सामाजिक मूल्यों से होता है और नैतिकता के पीछे सामाज की शक्ति नीहित होती है । 

अनुसंधान के नैतिक मूल्य अथवा सिद्धांत ( The Ethical Values or Theories of Research ) 

( 1 ) अनुसंधान में ईमानदारीपूर्वक आँकडों , परिणाम तथा विधियों के साथ प्रकाशन स्थिति की रिपोर्ट तैयार करना ।

( 2 ) अनुसंधान में किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह व भात धारणा से बचना चाहिये । 

( 3 ) शोध नैतिकता में व्यक्तिपरकता को शामिल नहीं करना चाहिये । 

( 4 ) अनुसंधान प्रक्रिया में गंभीर एवं ध्यानपूर्वक तरीके से कार्य करना चाहिये । –

( 5 ) पेटेंट , कॉपीराइट और बौद्धिक संपदा के अन्य प्रकारों का करें अनुमति के बिना प्रकाशित डाटा विधियों व उपयोग न करना । 

( 6 ) अनुसंधान सर्वजन हिताय होता है । –

( 7 ) साहित्य की समीक्षा करना जिसमें संगत क्षेत्र के अन्य व्यक्ति प्रासंगिक पूर्व कार्यों का योगदान हो अच्छी शोध नैतिकता से संबंधित होता है ।

( 8 ) यह एक स्वतंत्र और स्वाभाविक प्रक्रिया है । 

( 9 ) अनुसंधान विश्वसनीय प्रक्रिया है । यह ज्ञान वृद्धि में सहायक होता है । 

( 10 ) अनुसंधान मानव गरिमा , गोपनीयता और स्वायतता का सम्मान करना है । 

( 11 ) अनुसंधान एक कलात्मक और सृजनशील प्रक्रिया है । 

( 12 ) अनुसंधान मानवीयता के गुणों से परिपूर्ण होता है । 

( 13 ) अनुसंधान कार्य भविष्य के लिये उपयोगी होता है । 

सामाजिक शोध में नैतिक मुद्दे ( Ethical Issue in Social Research ) : –

सामाजिक शोध में नैतिक मुद्दों का संबंध शोधकर्ता के नैतिक कर्तव्यों से है । सामाजिक शोध करते समय शोधकर्ता के लिए क्या उचित है अथवा ऐसी कौन सी बातें जिनसे उसे बचने की आवश्यकता है । उसे इस बात का ध्यान रखना है कि उसने जिन सूचना दाताओं पर शोध किया हैं उनके प्रति उसके कुछ नैतिक कर्तव्य है । शोध का संबंध व्यक्तियों से हैं अतः इसमें कुछ नैतिक मानकों का पालन करना आवश्यक है ताकि अध्ययन हेतु चयनित सूचनादाताओं को कोई नुकसान या हानि न हो चिकित्सा विज्ञान संबंधित शोध में यह नुकसान अत्यंत गंभीर परिणाम वाला हो सकता है क्योंकि यह किसी सूचनावाता या रोगी की मृत्यु तक में प्रतिफलित हो सकता है । अमेरिका जैसे देशों में चिकित्सा विज्ञान के समानान्तर समाजशास्त्र जैसे विषय में भी अमेरिकी समाजशात्रीय संघ ( American Sociological Association ) द्वारा सामाजिक शोध हेतु आचार संहिता ( Code of Ethics ) निर्धारित की गई है । इस आचार संहिता में सर्वाधिक महत्वपूर्ण नैतिक दिशा – निर्देश शोध की गोपनीयता और विश्वसनीयता से संबंधित है । 

सामाजिक शोध में निम्नलिखित मुद्दों को प्रमुख माना है – – – 



( 1 ) सूचित स्वीकृति ( Informed Consent )

शोधकर्ता का सर्वप्रथम यह नैतिक कर्तव्य है कि सूचनादाताओं को शोध से संबंधित पूरी जानकारी उपलब्ध कराये । साथ ही सूचनादाताओं को सूचित करते हुए शोध के क्या उद्देश्य है उत्तरदाताओं को क्या लाभ हो सकता है तथा सूचना देने में उसे किस प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ सकता है । 

( 2 ) विश्वसनीयता ( Confidentiality ) 

शोधकर्ता का नैतिक कर्तव्य है कि किसी भी सूचनादाता द्वारा दी गई व्यक्तिगत सूचना को उनके नाम से सार्वजनिक न करें । शोधकर्ता को इस विश्वसनीयता के बारे में अति सचेत रहना चाहिए । 

( 3 ) गोपनीयता ( Privacy ) :

 सामाजिक शोध में एक प्रमुख नैतिक मुद्दा गोपनीयता से संबंधित है । सूचनादाताओं द्वारा दी गई सूचनाओं को गोपनीय रखना शोधकर्ता का नैतिक कर्तव्य है । सूचनाओं को सार्वजनिक करने में सूचनादाताओं का नुकसान हो सकता है । 

( 4 ) प्रायोजित शोध ( Sponsored ) 

यदि शोध प्रायोजित है तो इसका प्रायोजन शोध के निष्कर्षों को अपने हितों की पूर्ति हेतु तोड़ – मरोड़ कर प्रस्तुत करता है इसलिए शोधकर्ता को प्रायोजक से इस संबंध में अनुबंध करना चाहिये तथा यदि संभव हो तो सूचनादाताओं को शोभ के प्रायोजक का पता नहीं चलना चाहिए । 

( 5 ) वैज्ञानिक कदाचार एवं धोखा ( Scientific misconduct and fraud ) 

शोधकर्ता का यह नैतिक कर्तव्य है कि यह संकलित सामाग्री को किसी प्रकार से तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत न करें । न ही उसे इस मामले में किसी प्रकार के लापरवाही करनी चाहिए और न ही पक्षपात पूर्ण सामाग्री प्रस्तुत करनी चाहिए । इससे बचने हेतु अध्ययन के निष्प की जाँच हेतु शोध की पुनरावृति एवं सहयोगियों की सम लिया जाना अनिवार्य है । 

( 6 ) शरीरिक या मानसिक कष्ट ( Physical or mental distress ) 

शोधकर्ता , सूचनादाताओं को शारीरिक या मानसिक कष्ट देने से बचना चाहिए । शोधकर्ता द्वारा पूछे जानेवाले प्रश्न से सूचनादाताओं को किसी प्रकार का मानसिक कष्ट न हो इसलिए यह कहा जाता है कि साक्षात्कार के समय अथवा साक्षात्कार अनुसूची में सम्मिलित प्रश्नों को पूछते समय शोधकर्ता को बढ़ी सावधानी रखनी चाहिए । 

( 7 ) अतिसंवेदनशील वर्गों का बचाव ( Protecting Vulnerable clients ) 

शोध से संबंधित किसी भी कार्य में उन पर कोई दबाय या जोर जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए । अतिसंवेदनशील में इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है । 

शोध में नैतिक मुद्दों की दृष्टि से रखी जाने वाली सावधानियाँ : –

शोध में नैतिकता को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है । इसलिए प्रत्येक शोध में निम्नलिखित सावधानियाँ रखी जानी चाहिए : –

( 1 ) शोध में की जाने वाली त्रुटियों एवं असावधानियों से बचना चाहिए । 

( 2 ) वैज्ञानिक शोध में ईमानदारी बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए । 

( 3 ) शोध को प्रभावित करने वाले व्यक्तिगत एवं वित्तीय हितों की स्पष्ट रूप से घोषणा करना चाहिए । इससे शोध में वस्तुनिष्ठता आती है । 

( 4 ) शोध से संबंधित किए गए अपने वादों एवं अनुबंधों का पालन करना चाहिए । 

( 5 ) शोध संबंधित सामाग्री परिणामों विचारों , प्रविधियों और संसाधनों को अन्य लोगों के साथ साझेदारी करके शोध में खुलापन बनाये रखना चाहिए । 

( 6 ) शोधकर्ता को पेटेन्ट एवं कॉपीराइट का आदर करना चाहिए एवं सामग्री को दूसरों के ग्रंथों से चोरी नहीं करना चाहिए  ।

( 7 ) शोध का प्रकशन केवल शोधकर्ता अपने स्वयं के कैरियर को आगे बढ़ाने के साथ – साथ ज्ञान के प्रचार – प्रसार के लिए भी किया जाना चाहिए । 

                 ग्रेट ब्रिटेन में आर्थिक एवं सामाजिक शोध परिषद ( Economic and Social Research Council ) ने 2015 में शोध नैतिकता के लिए फेमवर्क प्रकाशित किया है । यह परिषद शोध के लिए एक अग्रणी एवं महत्वपूर्ण संस्थान है।

     

               

इस फेमवर्क में निम्नलिखित 6 दिशा निर्देश को शामिल किया गया है । 

( 1 ) शोध की स्वायत्ता स्पष्ट होनी चाहिए तथा यदि हितों में किसी प्रकार टकराव है तो यह स्पष्ट होनी चाहिए । 

( 2 ) शोध का आयोजन , मुल्यांकन प्रारंभ अखण्डता , गुणवता तथा पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए होना चाहिए । 

( 3 ) शोध में सम्मिलित कर्मचारियों एवं प्रतिभागियों को सामान्यतः शोध के उद्देश्यों पददतियों एवं इससे संभावित प्रयोग के बारे में पूर्ण जानकारी होनी चाहिए । साथ ही प्रतिभागिता के खतरे के बारे में भी उन्हें पता होना चाहिए । 

( 4 ) शोध प्रतिभागियों द्वारा दी गई सूचनाओं की गोपनियता तथा प्रतिभागियों की गुमनामी को सुनिश्चित रखा जाना चाहिए। 

( 5 ) शोघ्र सूचना दाताओं को शोध में बिना किसी दबाव एवं लालच के स्वेक्षा से भाग लेना चाहिए । 

( 6 ) सदैव शोध सूचनादाताओं के हितों कि रक्षा की जानी चाहिए तथा उन्हें किसी भी चीज से नुकसान न हो । 

                      भारत में भी अनेक विश्वविद्यालयी ने शोध की गुणवक्ता एवं नैतिकता को बनाए रखने के लिए शोध समितियों का गठन किया है । इन समितियों के माध्यम से ही सभी शोध एवं शोध – पत्र अंतिम रूप से अनुमोदित होते है । शोध संस्थान संगठन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शोध संबंधित दिशा – निर्देशों का पालन हो रहा है या नहीं दिशा – निर्देशों के पालन होने के स्थिति में ही शोध प्रस्ताव का अनुमोदन किया जाना चाहिए । 

अनुसंधान में त्रुटियाँ ( Errors in Research ) • 

अनुसंधान में प्राय : कभी – कभी कुछ त्रुटियाँ रह जाती है जो की ग्रंथ के नैतिक मूल्यों पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है – 

( 1 ) काल्पनिक अवधारणाएँ ( Imaginary Assumption ) 

( 2 ) निकृष्ट प्रकार के औचित्यीकरण ( Poorest Form of Rationatization )  

( 3 ) पूर्वाग्रह और पक्षपात ( Prejudices and Biases )

 ( 4 ) प्रदूषित तब्य ( Contaminated Facts ) 

( 5 ) भातियाँ ( Fallacies ) 

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