मैलिनॉस्की का विनिमय सिद्धांत | Malinowoski ka vinimay siddhant

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 मैलिनॉस्की का विनिमय सिद्धांत | Malinowoski ka vinimay siddhant मैलिनॉस्की का विनिमय सिद्धांत

मैलिनॉस्की ने मलेशिया और आस्ट्रेलिया में प्रचलित कई व्यवस्थाओं के रूप में ‘कुला’ की व्याख्या की, जो उपहार-विनिमय की एक विख्यात प्रथा है। यह प्रथा न्यूगिनी, ट्रोब्रियाण्डा-द्वीप, एम्लेट द्वीप, लाफेल द्वीप तथा डोबू में पायी जाती है। इन लोगों की संस्कृतियाँ भिन्न-भिन्न हैं, फिर भी वे कुला के प्रचलन व उसकी सतत्ता में सहयोग देते हैं। मैलिनॉस्की की मान्यता है कि कुला प्रथा में प्रत्येक सक्षम व्यक्ति शंख के आभूषणों द्वारा दूससे व्यक्ति से विनिमय या साझा स्थापित करता है। ये आभूषण दो प्रकार के होते हैं-लाल शंख का हार, (सोलबा) तथा श्वेत शंख के बाजूबन्द (म्वाली) कुला में विनिमय करने वाले दोनों पक्ष अलग-अलग वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं। यदि एक ने हार दिया है तो दूसरा बाजूबन्द देगा। आदान-प्रदान दोनों पक्षों के मिलने पर एक साथ नहीं होता ओर उसका प्रतिपादन उसी समय न करके अगली भेंट में दिया जाता है। मैलिनॉस्की कहते हैं कि यदि विनिमयकर्ता या साझेदार पड़ोसी है तो भेंट जल्दी-जल्दी भी दी और ली जा सकती है। विनिमय सदैव एक क्रम में होता है। जैसे- सोलबा में सदैव घड़ी की सुई की दिशा में जबकि म्वाली में इसके ठीक विपरीत क्रम में दिया जाता है।

कुला विनिमय चार प्रकार से होता है –

1. एक ही कुला समुदायों में विभिन्न व्यक्तियों में परस्पर आदान-प्रदान।

2. पड़ोसी द्वीपों के समुदायों के मध्य परस्पर विनिमय ।

3. समुद्र के पार एक-दूसरे के निकटस्थ समुदायों में बिना किसी समारोह आयोजन के आदान-प्रदान। 

4. समुद्र पार के समुदायों में समारोह आयोजित करके होने वाला विनिमय।

मैलिनॉस्की कहते हैं कि कुला में जिन वस्तुओं का विनिमय या आदान-प्रदान होता है, वे अधिक महंगी होती हैं तथा इन सामग्रियों या वस्तुओं की कीमत के आधार पर उनके स्वामी का इतिहास सभी लोग जानते हैं। व्यक्ति को अगर पूर्व अनुमान लग जाता है या सूचना मिल जाती है कि कोई वस्तु उसके यहां रही है या उसको दी जायेगी तो व्यक्ति को उस वस्तु का उत्साहपूर्वक इन्तजार रहता है। कुला की वस्तु को कोई भी व्यक्ति ज्यादा समय तक अपने पास नहीं रख सकता। कुछ अवसर विशेष पर पहनकर या कुछ अवधि तक अपने पास रखकर वह व्यक्ति उस सामग्री को या वस्तु को किसी अन्य साझेदार को दे देता है। एक बार स्थापित कुला सम्बन्ध लम्बी अवधि तक बने रहते हैं। अतः कुला सम्बन्ध स्थाई होते हैं।

मैलिनॉस्की की मान्यता है कि कुला की वस्तु सदैव महंगी हो, यह आवश्यक नहीं है, किन्तु उन्हें रखने वाले समुदाय की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है। इस कुला की वस्तु को प्राप्त करना गौरव समझा जाता है और लड़ाकू जनजातियों में आर्थिक लेन-देन द्वारा संघर्ष के अवसर कम हो जाते हैं। दूरस्थ द्वीपों में रहने वाले कुला साझेदार आपस में मित्र होते हैं जो अवसर आने पर शत्रुओं से एक-दूसरे की रक्षा करते हैं।

ट्रोब्रियाण्डा द्वीप वासी नावों को लेकर अपने कुला साझेदारों से मिलने जाते हैं। जाने से पूर्व वे कई जादुई क्रियाएँ व धार्मिक संस्कार करते हैं। कुला यात्राओं पर जाते समय लोग खाली हाथ जाते हैं तथा केवल पुरुष ही जाते हैं स्त्रियाँ नहीं। आसपास के गांवों के या एक ही गांव के पुरुष एक ही मुखिया के अधीन होते हैं। मुखिया ऐसी कुला यात्राओं का खर्च स्वयं वहन करता है। कुला समूह की सदस्यता प्रत्येक व्यक्ति नहीं प्राप्त कर सकता केवल वही व्यक्ति कुला समूह का सदस्य होता है, जिसे कुला से सम्बन्धित जादू का ज्ञान हो ।

मैलिनॉस्की ने “अग्रानाट ऑफ दी वेस्टर्न पेसिफीक” में बताया कि कुला व्यवस्था एक आर्थिक क्रिया ही नहीं वरन् सामाजिक प्रतिष्ठा तथा धर्म, जादू, बल एवं व्यक्ति के पारिवारिक व्यापार और इतिहास का प्रतीक है। कुला समूह में सम्मिलित होने वाले व्यक्ति को नियमों का पालन करना होता है और नियमों की अवहेलना करने पर व्यक्ति को कुला समूह से बहिष्कृत कर दिया जाता है, साथ ही उस व्यक्ति की आलोचना भी की जाती है।

मैलिनॉस्कीकुला से मिलती-जुलती ‘वासी प्रथा’ का भी ट्रोब्रियाण्डा द्वीप के भीतरी भागों में बसे गांवों व तटीय गांवों में वस्तु विनिमय के रूप में अध्ययन किया। जहाँ ऐसा पाया जाता है कि तटीय गांवों में रहने वालों को द्वीप में जाकर खेती करने की स्वीकृति नहीं दी जाती है। इसी प्रकार द्वीप के भीतर गांवों को तट पर जाकर मछली पकड़ने की स्वीकृति नहीं दी जाती है। अतः इन दोनों गांवों में आवश्यकता की पूर्ति के लिए विनिमय होता है। फसल के समय भीतर गांव वाले तटवासियों  को एक प्रकार की फसल ‘याम’ लाते हैं और तटीयवासी जिसके बदले में उनको मछलियां देते हैं। अतः कुला में जहां सांस्कृतिक वस्तुओं का आदान-प्रदान हाता है, वहां ‘वासी’ में भोज्य पदार्थों का।

मैलिनॉस्की ने एक अन्य मुद्रा रहित विनिमय का जनजातियों में उल्लेख किया है, जबकि विनिमय करते समय बाजार में सौदेबाजी होती है। एक व्यक्ति अपने कुला साझेदार से ‘गिमवाल’ सम्बन्ध नहीं रखता। कुला में प्रतिष्ठा की वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है जबकि ‘गिमवालों’ में घर-गृहस्थी की छोटी-मोटी चीजों का। जब कोई व्यक्ति अपने मुखिया को वस्तुएँ भेंट करता है। तो उसे ‘पोकाला’ कहते हैं। मुखिया इसके बदले में व्यक्ति को राजनीतिक एवं धार्मिक सेवाएं प्रदान कर सकता है, या सम्भव है कुछ भी न दे । मुखिया द्वारा दी गई भेंट को ‘येवला’ कहते हैं। ट्रोब्रियाण्डा द्वीपवासियों में वर्ष में एक बार भाई अपनी विवाहित बहिन के पति को लगभग तीन-चौथाई फसल भेंट करता है, इसे ‘उरीगुबू’ कहते हैं।

मैलिनॉस्की द्वारा उल्लिखित सभी विधियां जनजातियों, आदिम समाजों व ट्रोब्रियाण्डा द्वीप में प्रचलित है। व्यापार व विनिमय की इन विधियों द्वारा पारस्परिकता के सिद्धान्त की झलक मिलती है।

आदिम समाजों में विनिमय के लिए उपहार के अलावा व्यापार का एक रूप मूक-विनिमय भी प्रचलित है, जिसमें मोल-भाव नहीं किया जाता। लंका के बेड्डा तथा उत्तर प्रदेश के राजी लोगों में ऐसा देखा गया है कि स्वयं द्वारा उत्पादित वस्तुएँ रात्रि के अन्धकार में एक स्थान पर रख आते हैं और जिन वस्तुओं की इनको आवश्कता होती है उसका संकेत छोड़ जाते हैं। दूसरा समूह संकेत में चाही वस्तुएँ वहाँ छोड़ देता है और पहले से रखी सामग्री ले जाता है। पहले वाला समूह दूसरे दिन आकर स्वयं द्वारा चाही वस्तुएँ ले जाता है जिसे शान्त व्यापार भी कहा जा सकता है। अफ्रीका के उत्तर पश्चिमी तट पर निवास करने वाले आदिवासियों में भी मूक व्यापार का प्रचलन है। आदिम जनजातीय समाजों में बाजार-विनिमय की व्यवस्था अवश्य पाई जाती है। हालांकि सभ्य समाजों की तरह उसमें जटिलता एवं प्रबलता नहीं होती।

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