Q- छठी शताब्दी ईसा पूर्व के गणराज्यों की विवेचना कीजिए ।
Ans– छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, उत्तरी भारत में बड़ी संख्या में राज्य थे और इनमें से कुछ का राजाओं द्वारा नहीं बल्कि गण या संघ द्वारा शासन होता था जिनका छोटे गणराज्यों या कुलीनतंत्रों के रूप मे गठन हुआ। वह बुद्ध का युग था इसलिए इस काल के गणतांत्रिक राज्यों को ‘बुद्ध के युग के गणतंत्र’ कहा गया है। ये न केवल भारत के बल्कि विश्व के सबसे प्राचीन मौजूदा राज्य थे और इसलिए भारत भी उन देशों में से एक है जो प्राचीन काल में गणतांत्रिक रूप का प्रयोग किया है ।
बुद्ध काल में कई गणराज्यों के अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं जो इस प्रकार हैं-
(1) कपिलवस्तु के शाक्य – यह गणराज्य नेपाल की तराई में स्थित था जिसकी राजधानी कपिलवस्तु थी । शाक्य गणराज्य के उत्तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में रोहिणी नदी तथा दक्षिण और पश्चिम में राप्ती नदी स्थित थी । कपिलवस्तु की पहचान नेपाल में स्थित आधुनिक तिलौराकोट से की जाती है। कपिलवस्तु के अतिरिक्त इस गणराज्य में अन्य अनेक नगर थे-चातुमा, सामगाम, खोमदुस्स, सिलावती, नगरक, देवदह, सक्कर आदि। शाक्य गणराज्य में लगभग 80 हजार परिवार थे। शाक्य लोग अपने रक्त पर बड़ा अभिमान करते थे और इसी कारण वे अपनी जाति के बाहर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित नहीं करते थे। गौतम बुद्ध का जन्म इसी गणराज्य में हुआ था। बुद्ध से सम्बन्धित होने के कारण इस गणराज्य का महत्व काफी बढ़ गया। किन्तु राजनैतिक शक्ति के रूप में शाक्य गणराज्य का कोई महत्व नहीं था और यह कोशल राज्य की अधीनता स्वीकार करता था।
2) सुमसुमार पर्वत के भग्ग – सुमसुमार पर्वत का समीकरण मिर्जापुर जिले में स्थित वर्तमान चुनार से किया गया है। ऐसा लगता है कि भग्ग ऐतरेय ब्राह्मण में उल्लिखित ‘भर्ग’ वंश से सम्बन्धित थे। भग्ग गणराज्य के अधिकार-क्षेत्र में विन्ध्य क्षेत्र की यमुना तथा सोन नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित था। भग्ग लोग वत्सों की अधीनता स्वीकार करते थे। ज्ञात होता है कि सुमसुमार पर्वत पर वत्सराज उदयन का पुत्र बोधि निवास करता था।
(3) अलकप्प के बुलि – यह गणराज्य आधुनिक बिहार प्रान्त के शाहाबाद आरा और मुजफ्फरपुर जिलों के बीच स्थित था। बुलियों का वेठद्वीप (वेतिया) के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था। यही संभवतः उनकी राजधानी थी। बुलि लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।
4) केसपुत्त के कालाम– यह गणराज्य कोशल के पश्चिम में स्थित था। वैदिक साहित्य से ज्ञात होता है कि कालामों का सम्बन्ध पञ्चाल जनपद के ‘केशियो’ के साथ था। कालाम लोग कोशल की अधीनता स्वीकार करते थे।
5 ) रामगाम (रामग्राम) के कोलिय– यह शाक्य गणराज्य के पूर्व में स्थित था। दक्षिण में यह गणराज्य सरयू नदी तक विस्तृत था । शाक्य और कोलिय राज्यों के बीच रोहिणी नदी बहती थी। दोनों राज्यों के लोग सिंचाई के लिए इसी नदी के जल पर निर्भर करते थे। नदी के जल के लिए उनमें प्रायः संघर्ष भी हो जाता था। एक बार गौतम बुद्ध ने ही इसी प्रकार के एक संघर्ष को शान्त किया था। कोलिय गण के लोग अपनी पुलिस शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। कोलियों की राजधानी रामग्राम की पहचान वर्तमान गोरखपुर जिले मे स्थित रामगढ़ ताल से की गयी है।
(6) कुशीनारा के मल्ल – कुशीनारा की पहचान देवरिया जिले में स्थित वर्तमान कसया’ नामक स्थान से की जाती है। बाल्मीकि रामायण में मल्लों को लक्ष्मण के पुत्र चन्द्रकेतु मल्ल का वंशज कहा गया है।
(7) पावा के मल्ल – पावा आधुनिक देवरिया जिले में स्थित पडरौना नाम स्थान था। मल्ल लोग सैनिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। जैन साहित्य से पता चलता है कि मगध नरेश अजातशत्रु के भय से मल्लों ने लिच्छवियों के साथ मिलकर एक संघ बनाया था। अजातशत्रु ने लिच्छवियों को पराजित करने के बाद मल्लों को भी जीत लिया था।
(8) पिप्पलिवन के मोरिय – मोरिय गणराज्य के लोग शाक्यों की ही एक शाखा थे। महावंशटीका से पता चलता है कि कोशल नरेश विडूडभ के अत्याचारों से बचने के लिए वे हिमालय प्रदेश में भाग गये जहाँ उन्होंने मोरों को कूक से गुंजायमान स्थान में पिप्पलिवन नामक नगर बसा लिया। मोरों के प्रदेश का निवासी होने के कारण ही वे ‘मोरिय’ कहे गये। ‘मोरिय’ शब्द से ही ‘मौर्य’ शब्द बना है। चन्द्रगुप्त मौर्य इसी परिवार में उत्पन्न हुआ था। पिप्पलिवन की पहचान गोरखपुर जिले में कुसुम्हों के पास स्थित ‘राजधानी’ नामक ग्राम से किया जाता है।
9) वैशाली के लिच्छवि– यह बुद्ध काल का सबसे बड़ा तथा शक्तिशाली गणराज्य था। लिच्छवि वज्जिसंघ में सर्वप्रमुख थे। उनकी राजधानी वैशाली, मुजफ्फरपुर जिले के बसाढ़ नामक स्थान में स्थित थी। महावग्ग जातक में वैशाली को ‘एक धनी, समृद्धशाली तथा घनी आबादी वाला नगर’ कहा गया है। यहाँ अनेक सुन्दर भवन, चैत्य तथा विहार थे। लिच्छवियों ने महात्मा बुद्ध के निवास के लिए महावन में प्रसिद्ध कूट्टागारशाला का निर्माण करवाया था जहाँ रहकर बुद्ध ने अपने उपदेश दिये थे। लिच्छवि लोग अत्यन्त स्वाभिमानी तथा स्वतन्त्रता- प्रेमी हुआ करते थे। उनकी शासन व्यवस्था संगठित थी। बुद्ध काल में यह राज्य अपनी समृद्धि की पराकाष्ठा पर था। यहाँ का राजा चेटक था। उसकी कन्या छलना का विवाह मगधनरेश बिम्बिसार के साथ हुआ था। महावीर की माता त्रिशला ‘केशि उसकी (लिच्छवि राजा चेटक) बहन थी।
10) मिथिला के विदेह – बिहार के भागलपुर तथ दरभंगा जिला मे विदेह गणराज्य स्थित था। प्रारम्भ में यह राजतन्त्र था। यहाँ के राजा जनक अपनी शक्ति एवं दार्शनिक ज्ञान के लिए विख्यात थे। परन्तु बुद्ध के समय में यह संघ राज्य बन गया। विदेह लोग भी वज्जि संघ के सदस्य थे। उनकी राजधानी मिथिला की पहचान वर्तमान जनकपुर से की जाती है । बुद्ध के समय मिथिला एक प्रसिद्ध व्यापारिक नगर था ।
गणराज्यो की शासन पद्धति –
गणराज्यो की शासन पद्धति के विषय में हमें बहुत कम जानकारी है । इतना स्पष्ट है कि गण की कार्यपालिका का अध्यक्ष एक निर्वाचित पदाधिकारी होता था जिसे राजा कहा जाता था । सामान्य प्रशासन की देख-भाल के साथ-साथ गणराज्य में आन्तरिक शान्ति एवं सामंजस्य बनाये रखना उसका एक प्रमुख कार्य था। अन्य पदाधिकारियों में उपराजा (उपाध्यक्ष), सेनापति, भाण्डागारिक (कोषाध्यक्ष) आदि प्रमुख थे। परन्तु राज्य की वास्तविक शक्ति एक केन्द्रीय समिति अथवा संस्थागार में निहित होती थी। इस समिति के सदस्यों की संख्या काफी बड़ी होती थी।
निष्कर्ष –
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बुद्ध- काल के गणराज्य अत्यन्त शक्तिशाली एवं सुव्यवस्थित थे। उन्होंने अपने सम- कालीन राजतन्त्रों का बड़ा प्रतिरोध किया था। इन गणराज्यो में देश-भक्ति तथा स्वाधीनता की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। किन्तु वे राजतन्त्रों के विरुद्ध अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा नहीं कर सके तथा अन्त में उनका पतन हो गया ।
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