महापद्मनन्द की उपलब्धियां
(Achievement of Mahapadmananda)
नंद वंश (344 ई.पू. से 324-23 ई.पू.)
संस्थापक – महापद्मनंद
महापद्म नंद ने शिशुनाग वंश का अंत कर मगध साम्राज्य पर अधिकार किया तथा नंद वंश की स्थापना की। नंद वंश के समय मगध की शक्ति चरमोत्कर्ष पर पहुँची। इस वंश के अधीन नंद एवं उसके आठ पुत्रों ने शासन किया। इस वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक महापद्म नंद एवं घनानंद थे। महापद्म नंद को ‘कलि का अंश’, ‘सर्वक्षत्रांतक’, ‘दूसरे परशुराम का अवतार’, ‘भार्गव’, ‘एकराट’ आदि कहा गया है।
महापद्म नंद के बाद मगध का अंतिम शासक घनानंद हुआ, जिसके समय में 326 ई.पू. में यूनानी शासक सिकन्दर का भारत पर आक्रमण हुआ। 322 ई.पू. में चंद्रगुप्त मौर्य ने घनानंद को पराजित कर नंदवंश को समाप्त किया।
नन्द वंश में कुल 9 राजा हुए और इसी कारण उन्हें ‘नवनन्द‘ कहा जाता है। महाबोधिवंश में उनके नाम इस प्रकार मिलते हैं—
(1) उग्रसेन (2) पण्डुक (3) पण्डुगति (4) भूतपाल (5) राष्ट्रपाल (6) गोविषाणक (7) दशसिद्धक (8) कैवर्त (9) धन।
इसमें प्रथम अर्थात् उग्रसेन को ही पुराणों में महापद्मनंद कहा गया है। शेष आठ उसी के पुत्र थे।
महापद्मनन्द की उपलब्धियाँ –
महापद्मनन्द अभी तक मगध के सिंहासन पर बैठने वाले राजाओं में सर्वाधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ। उसकी विजयों के विषय में हमें पुराणों से विस्तृत सूचना प्राप्त होती है। उसके पास अतुल सम्पत्ति तथा असंख्य सेना थी। वह ”कलि का अंश’, ‘सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला’ (सर्वक्षत्रान्तक), ‘दूसरे परशुराम का अवतार’ था जिसने अपने समय के सभी प्रमुख राजवंशों की विजय की। उसने एकछत्र शासन की स्थापना किया तथा ‘एकराट्र’ की उपाधि ग्रहण की।
महापद्मनन्द की उपलब्धियों का वर्णन इस प्रकार है –
(I) महापद्मनन्द द्वारा उन्मूलित कुछ राजवंशों के नाम इस प्रकार हैं-
(1) इक्ष्वाकु – इस वंश के लोग कौशल में शासन करते थे। वर्तमान अवध का क्षेत्र इस राज्य के अन्तर्गत था। महापद्मनन्द द्वारा कोशल विजय की पुष्टि सोमदेवकृत ‘कथासरित्सागर’ से भी होती है।
2) पाञ्चाल – इस राजवंश के लोग वर्तमान रुहेलखण्ड (बरेली-बदायूँ- फर्रूखाबाद क्षेत्र) में शासन करते थे। ऐसा लगता है कि महापद्म के पहले उनका मगध से कोई संघर्ष नहीं हुआ था।
(3) काशेय – इससे तात्पर्य काशी के वंशजों से है। विम्बिसार के समय से ही काशी मगध का एक प्रान्त था। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जिस समय शिशुनाग ने गिरिब्रज को अपनी राजधानी बनाई, उसने अपने पुत्र को बनारस का उपराजा नियुक्त किया था ऐसा लगता है कि इसी वंश के उत्तराधिकारी की हत्या कर महपद्मनन्द ने काशी को प्राप्त किया।
(4) हैहय- इस राजवंश के लोग नर्मदा नदी के एक भाग पर शासन करते थे। उसकी राजधानी माहिष्मती थी।
(5) कलिंग – यह राजवंश उड़ीसा प्रान्त में शासन करता था। खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से पता चलता है कि किसी नन्द राजा ने कलिंग के एक भाग को जीता था।
(6) अश्मक- इस वंश के लोग आन्ध्र प्रदेश को गोदावरी सरिता के तट पर शासन करते थे।
(7) कुरु – मेरठ, दिल्ली तथा थानेश्वर के भू-भाग पर कुरु राजवंश का शासन था। इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी।
(8) मैथिल- मैथिल लोग मिथिला के निवासी थे। मिथिला की पहचान नेपाल को सोमा में स्थित वर्तमान जनकपुर से की गई है।
(9) शूरसेन- आधुनिक ब्रजमंडल की भूमि पर शूरसेन राजवंश का शासन था। उसकी राजधानी मथुरा में थी।
(10) वीतिहोत्र- पुराणों के अनुसार वीतिहोत्र लोग अवन्ति के प्रद्योतों तथा नर्मदा तटवर्ती हैहयों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित थे। सम्भवतः उनका राज्य इन्हीं दोनों के बीच स्थित रहा होगा।
पुराणों में उपर्युक्त सभी राज्यों के शासकों को समकालीन बताया गया है। तदनुसार ईक्ष्वाकु ने चौबीस वर्ष, पांचाल ने सत्ताइस वर्ष, काशी ने चौबीस वर्ष, हैहया ने अठाइस वर्ष, कलिंग ने बत्तीस वर्ष, अश्मक ने पच्चीस वर्ष, कुरु ने छत्तीस वर्ष, मैथिल ने अठाइस वर्ष, शूरसेन ने तेइस वर्ष तथा वीतिहोत्र ने बीस वर्ष तक शासन किया।
(II) खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से भी महापद्मनन्द के कलिंग की विजय के बारे में पता चलता है। इसके अनुसार नन्द राजा जिनासन की एक प्रतिमा उठा ले गया तथा उसने कलिंग में एक नहर का निर्माण करवाया था।
(III) मैसूर के बारहवीं शती के लेखों से नन्दों द्वारा कुन्तल के जीते जाने का विवरण है।
(IV) क्लासिकल लेखकों के विवरण से पता चलता है कि अग्रमीज का राज्य पश्चिम में नदी तक फैला था। यह भू-भाग महापदमनन्द द्वारा ही जीता गया होगा क्योंकि अग्रमीज को किसी भी विजय का श्रेय नहीं प्रदान किया गया है। उसकी विजयों के साथ ही क्षत्रियों का राजनीतिक प्रभुत्व समाप्त हुआ। इस विशाल साम्राज्य में एकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना की गई।
इस प्रकार महापद्मनन्द ने 28 वर्ष तक शासन किया था और अपनी विजयों के फलस्वरूप महापद्मनन्द ने मगध को एक विशाल साम्राज्य में परिणत कर दिया। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी सीमायें गंगाघाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गई। विन्ध्यपर्वत के दक्षिण में विजय वैजयन्ती फहराने वाला पहला मगध का शासक था। वह निःसंदेह उत्तर भारत का प्रथम महान् ऐतिहासिक सम्राट था।
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