मेसोपोटामिया सभ्यता की विशेषताएँ | Mesopotamia sabhayta ki visheshaye
मेसोपोटामिया की सभ्यता (Mesopotamian Civilization)
मेसोपोटामिया दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘मेसो’ और ‘पोटामिया’, जिसका शाब्दिक अर्थ है दो नदियों के बीच का क्षेत्र । दजला और फरात दो नदियों के बीच के क्षेत्र को, जो अभी इराक है, मेसोपोटामिया कहा जाता था। पश्चिमी एशिया में स्थित इस स्थान पर 5000 ई० पू० के लगभग एक उन्नत सभ्यता का उदय हुआ। दजला और फरात नदियों के बीच का क्षेत्र स्वाभाविक रूप से उर्वर था जहाँ पर खेती के लिये पर्याप्त पानी, भोजन के लिये पर्याप्त सामग्री आदि सभी वस्तुएं उपलब्ध थीं। ईंट बनाने के लिये मिट्टी, पेड़ों से लकड़ी . आदि सब उपलब्ध थी, इसी कारण यहां पर एक विकसित सभ्यता का उदय हुआ। मेसोपोटामिया को इसकी अर्द्धचन्द्र सी आकृति तथा खेती की दृष्टि से अत्यधिक उर्वर होने के कारण उपजाऊ अर्द्धचन्द्र भी कहा गया है।
मेसोपोटामिया एक क्षेत्र का नाम है तथा प्राचीनकाल में इस प्रदेश का दक्षिणी भाग ‘सुमेर’ कहलाता था जो मेसोपोटामिया की सभ्यता का मुख्य केन्द्र था। सुमेर के उत्तर-पूर्व की तरफ के भाग को बाबुल (बेबीलोन) तथा अक्कद कहते थे और उत्तर की ऊँची भूमि असीरिया कहलाती थी। इस प्रकार वहां पर एक नहीं तीन सभ्यताओं का विकास हुआ। जिन तीन जातियों ने इस सभ्यता का विकास किया वे थीं सुमेरियाई, बेबीलोनियाई और असीरियन । इन्हीं के नाम पर इस क्षेत्र की सभ्यता को सुमेरिया, बेबीलोनिया और असीरिया की सभ्यता कहा जाता है। तीनों को संयुक्त रूप से मेसोपोटामिया की सभ्यता कहा जाता है।
19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में पुरातत्व वेत्ताओं ने जो खुदाईयाँ करवाई। उनसे मिली हुई बहुत सी सामग्री के आधार पर यह जानकारी प्राप्त हो पाई कि प्राचीन काल में वहां पर ऐसी समृद्ध सभ्यता का अस्तित्व था।
मेसोपोटामिया सभ्यता की विशेषताएँ
(i) हम्मूराबी की विधि संहिता –
बेबीलोन के सम्राट हम्मूराबी ने अपनी प्रजा के लिए एक विधि संहिता बनाई थी जो इस समय उपलब्ध सबसे प्राचीन विधि संहिता है। सम्राट ने इसे एक 8 फुट ऊँची पत्थर की शिला पर उत्कीर्ण कराया था। हम्मूराबी का दण्ड विषयक सिद्धान्त यह था कि “जैसे को तैसा और खून का बदला खून।”
(ii) मेसोपोटामिया का सामाजिक जीवन-
मेसोपोटामिया सभ्यता में राजा पृथ्वी पर देवताओं का प्रतिनिधि माना जाता था राजा व राजपरिवार के बाद दूसरा स्थान पुरोहित वर्ग का था जो संभवतः राजतंत्र की प्रतिष्ठा से पूर्व शासक रहे थे। मध्यम वर्ग में व्यापारी जमींदार एवं दुकानदार थे। समाज में दासों की स्थिति सबसे नीचे थी। लगातार युद्ध होते रहने के कारण समाज में सेना का महत्वपूर्ण स्थान था ।
(iii) आर्थिक जीवन-
(अ) कृषि व पशुपालन इस सभ्यता के लोगों का प्रमुख – व्यवसाय कृषि था। वहाँ के किसान भूमि की जुताई हलों से करते थे और बीज एक कीप द्वारा बोते थे। खेतों की सिंचाई के लिए वे नदियों के बाढ़ के पानी को नहर द्वारा ले जाकर बड़े-बड़े बाँधों में इकट्ठा कर लेते थे। हलों से जुताई हेतु मवेशी काम में लेते थे और उनकी नस्ल सुधार के लिए पशुओं का प्रजनन भी किया जाने लगा था।
(आ) व्यापार व उद्योग
मूलतः एक व्यावसायिक सभ्यता थी वहाँ देवता का मंदिर एक धार्मिक स्थल ही नहीं एक व्यावसायिक केन्द्र भी था। यहीं सर्वप्रथम बैंक प्रणाली का विकास हुआ। मेसोपोटामिया का भारत की सिन्धु-सरस्वती सभ्यता से व्यापारिक सम्बन्ध था । सिन्धु-सरस्वती सभ्यता की कई वस्तुएँ मेसोपोटामिया के उर नगर की खुदाई में मिली हैं।
(iv) धार्मिक मान्यताएँ-
मेसोपोटामिया के लोग अनेक देवताओं में विश्वास करते थे। प्रत्येक नगर का अपना संरक्षक देवता होता था उसे ‘जिगुरात’ कहते थे जिसका अर्थ है “स्वर्ग की पहाड़ी । उर नगर मेसोपोटामिया के सबसे बड़े नगरों में से था। उर नगर में जिगुरात का निर्माण एक कृत्रिम पहाड़ी पर ईंटों से हुआ था उर के जिगुरात में तीन मंजिलें थी और उसकी ऊँचाई 20 मीटर से अधिक थी। मेसोपोटामिया के लोग परलोक की अपेक्षा इस लोक के जीवन में अधिक रुचि रखते थे। उनका ध्यान इस लोक के जीवन की व्यावहारिक समस्याओं पर केन्द्रित था। उनके पुरोहित भी व्यवसाय में रत रहते थे
(v) ज्ञान-विज्ञान-
विज्ञान के क्षेत्र में मेसोपोटामिया के लोगों की उपलब्धियाँ महत्वपूर्ण थीं खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने काफी उन्नति कर ली थी। उन्होंने सूर्योदय, सूर्यास्त तथा चन्द्रोदय और चन्द्रास्त का ठीक समय मालूम कर लिया था । उन्होंने दिन और रात्रि के समय का हिसाब लगाकर पूरे दिन को 24 घण्टों में बाँटा था। साठ सैकेण्ड का मिनट और साठ मिनट के एक घण्टे का विभाजन सबसे पहले इन्होंने ही किया। रेखागणित के वृत्त को उन्होंने 360 डिग्री में विभाजित करना प्रारम्भ किया था। इस तरह मेसोपोटामिया के निवासी विज्ञान और गणित की उन्नत परम्पराओं से अवगत थे।
(vi) स्थापत्य कला-
मेसोपोटामिया के कलाकारों ने मेहराब का भी आविष्कार किया। मेहराब स्थापत्य कला की एक महत्वपूर्ण खोज थी क्योंकि यह बहुत अधिक वजन सम्भाल सकती थी और देखने में आकर्षक लगती थी
(vii) कीलाक्षर लिपि-
मेसोपोटामिया की पहली लिपि का विकास सुमेर में हुआ। सुमेरियन व्यापारियों ने अपना हिसाब-किताब रखने के लिए कीली जैसे चिह्न बनाकर लेखन कला का विकास किया। इसे कूनीफार्म या कीलाक्षर कहते हैं।
मेसोपोटामिया सभ्यता का महत्व
मेसोपोटामिया सभ्यता एक प्राचीन सभ्यता थी जो आज के इराक के क्षेत्र में स्थित थी। यह सभ्यता समृद्ध थी और विभिन्न क्षेत्रों में कला, संस्कृति, वैज्ञानिक अनुसंधान और धार्मिक विचार का उद्भव करने के लिए जानी जाती है।
मेसोपोटामिया सभ्यता का महत्व इसलिए है क्योंकि यह इतिहास की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक थी जो मनुष्य जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आविष्कारों का जन्म दिया। उन्होंने शहर निर्माण, लोहे के औजारों के निर्माण, लेखन और संख्यात्मक विज्ञान के विकास में भी अहम भूमिका निभाई।
इस सभ्यता में सामाजिक व्यवस्था भी उत्कृष्ट थी। वे स्वतंत्र रूप से अपनी ज़मीन का उपयोग कर सकते थे, लेकिन उन्हें समुदाय के साथ भी जोड़ा गया था। इसके अलावा, वे विभिन्न अधिकारों और कर्तव्यों के लिए भी जाने जाते थे।
इस सभ्यता का धार्मिक अर्थ भी बहुत था। मेसोपोटामिया धर्म में देवताओं, पूजा और अनुष्ठान करने का परंपरागत तरीका शामिल था। इन धर्मों के अंतर्गत, मेसोपोटामिया के लोगों को समाज के नियमों, स्वास्थ्य देखभाल, और जीवन के अन्य क्षेत्रों में निरंतर संज्ञान की जरूरत थी।
इस सभ्यता में शिल्पकला का विकास भी बेहद महत्वपूर्ण था। मेसोपोटामिया के कलाकारों ने सभ्यता के विभिन्न क्षेत्रों में मिट्टी, लोहे, संगमरमर और चांदी जैसे उपकरणों का उपयोग करके कलाकृतियों का निर्माण किया। उनकी कलाकृतियों में लकड़ी, स्टोन, इंटरलॉकिंग, ज्वेलरी और जड़ी बूटी का उपयोग किया जाता था।
निष्कर्ष –
इस प्रकार मेसोपोटामिया सभ्यता विश्व के इतिहास के विभिन्न आयामों के विकास में अहम भूमिका निभाई थी। इस सभ्यता के वैज्ञानिक अनुसंधानों ने उद्योग, कृषि और रणनीति में महत्वपूर्ण उन्नतियों का जन्म दिया। इसलिए, मेसोपोटामिया सभ्यता ने विश्व के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया था।
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