भाषा प्रयोगशाला, एक प्रयोगशाला कक्ष है जहाँ भाषा दक्षता (Language Skills) का शिक्षण किया जाता है। भाषा प्रयोगशाला का उपयोग विदेशी भाषाओं के शिक्षण के लिए, पठन के लिए और शुद्धीकरण के लिए किया जाता है। सामान्य रूप से भाषा प्रयोगशाला एक प्रकार की कक्षा होती है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लगे रहते हैं तथा इनका प्रयोग भाषा में ग्रुप ट्यूशन देने के लिए किया जाता है।
भाषा प्रयोगशाला में प्रत्येक विद्यार्थी के बैठने का स्थान या बूथ उपलब्ध रहता है। प्रत्येक बूथ में एक-एक हैड सेट (Head Set) फिट रहता है। जिसमें माइक्रोफोन तथा ईयरफोन (Earphone) लगे रहते हैं। जो कक्ष के केन्द्र में बैठे भाषा शिक्षक के कंसोल-टेबल (Console Table) से जुड़े रहते हैं। केन्द्र के मास्टर कंसोल पर टेप रिकॉर्डर या सी.डी. प्लेयर के माध्यम से विशेष रूप से निर्मित पाठ्यवस्तु ऑडियो सिग्नल उन विद्यार्थियों को प्रसारित किए जाते है जो अलग-अलग अपने बूथों पर बैठे उस भाषा सीखने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं। इस प्रकार विद्यार्थी हेडफोन द्वारा शब्दों को सुनता है तथा बोले गए वाक्यों का अध्ययन करता है। इसके उपरान्त कुछ विराम देकर विद्यार्थी बोलने वाले शब्दों को दो-तीन बार दोहराता है। बाद के पाठों में प्रश्न के उत्तर के अभ्यास होते हैं। कई प्रयोगशाला कार्यों को स्क्रीन पर भी दिखाया जाता है, जिसे सभी विद्यार्थी देख सकते हैं।
वर्तमान समय में भाषा प्रयोगशाला शिक्षण के क्षेत्र में सहायक सामग्रियों की भाँति सहायक मात्र है न कि अध्यापक। यह शिक्षा का प्रतिस्थापन है।
परिभाषाएं –
रॉबर्ट लेडो (Robert Lado) के अनुसार, ‘भाषा प्रयोगशाला भाषा शिक्षण का केन्द्र है जिसमें छात्रों के सुनने, बोलने, तथा लिखने आदि के लिए नियन्त्रित वातावरण प्रदान किया जाता है।”
ए. एस. ह्यास (A.S. Hayas) के अनुसार, भाषा प्रयोगशाला एक कक्षा कहलाता है जिसमें विदेशी भाषा के अधिगम को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष प्रकार के उपकरण जुटाए गए हैं। सामान्यतः कार्य साधारण व्यवस्था में इतना प्रभावशाली नही बन सकता।”
भाषा प्रयोगशाला की मुख्य विशेषताएँ (Main Characteristics of Language Laboratory)
भाषा प्रयोगशाला की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1) स्व-गति निर्धारण-भाषा प्रयोगशाला में क्योंकि छात्र को टेप को चयन करने की सुविधा होती है, इस कारण वह उसका चयन अपने व्यक्तिगत हितों को दृष्टिगत रखते हुए कर सकता है और उसको अपनी क्षमता और आवश्यकता के अनुरूप चला सकता है। जिसकी गति का निर्धारक वह स्वयं होता है और गति को अपने अनुरूप तीव्र एवं मन्द करने की सुविधा उसे उपलब्ध होती है।
2 ) स्व-श्रवण नियन्त्रण – अभ्यास के समय छात्रों को टेप चलाने, पीछे ले जाने अथवा आगे ले जाने, बार-बार सुनने आदि की सुविधा रहती है, जिससे वह वांछनीय अनुकरण कर सके। इसका निर्धारण छात्र स्वयं ही करता है कि उसने कितनी शुद्धता तक अनुकरण कर लिया है।
3) पुस्तकालय संचालन—–इसके माध्यम से छात्र के लिए यह संभव होता है कि वह केन्द्रीय स्थान से किसी भी एक टेप को चयनित कर लें जिससे कि वह निर्धारण और स्वमूल्यांकन करने की स्थिति में आ जाता है। इस क्रिया से उसकी वैयक्तिकता का अधिकतम प्रकाशन सम्भव है।
भाषा प्रयोगशाला का महत्त्व (Importance of Language Laboratory)
भाषा प्रयोगशाला के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है।
1) बार-बार शुद्ध विषय-वस्तु को सुनने से शुद्ध उच्चारण अधिगम में सहायता प्राप्त होती है।
2) छात्र को अभिप्रेरणा मिल जाती है। वह कार्य के लिए तत्पर हो जाता है।
3) छात्र अपनी गति से तथा क्षमता के अनुसार सीखता है।
4) शब्दों के उच्चारण में सहायता मिलती है। चूंकि छात्र का उच्चारण किसी दूसरे छात्र कों सुनाई नहीं देता, वह बिना संकोच के कार्य करता है।
5) छात्र पाठ को बार-बार दोहराता है ।
6) छात्र अभ्यास द्वारा अपनी गलतियों को ठीक कर सकता है।
7) छात्र में क्रियाशीलता एवं सक्रियता बढ़ती है।
भाषा प्रयोगशाला के लाभ (Merits of Language Laboratory)
भाषा प्रयोगशाला के लाभ निम्नलिखित हैं-
1) छात्र अपनी गति से अधिगम कर सकता है।
2) छात्र अपनी आवश्यकतानुसार पाठ की पुनरावृत्ति कर सकता है।
3) छात्र को अभ्यास हेतु अधिक समय मिलता है।
4) यह अधिक प्रेरणादायक है तथा उच्चारण की शुद्धता को अत्यधिक प्रभावित करता है।
5) उच्चारण अशुद्धता को चिह्नित कर सकता है।
6) मूल निवासी द्वारा किए गए उच्चारण से अनुकरण कर सकता है।
7) सक्रिय अधिगम सम्भव होता है।
भाषा प्रयोगशाला के दोष (Demerits of Language Laboratory)
1) 16, 20 या 32 से अधिक छात्र एक ही समय में कार्य नहीं कर सकते। अधिक छात्रों को एक शिक्षक सही निर्देशन नही कर पाता है।
2) भाषा प्रयोगशाला का प्रयोग भाषा पढ़ने तथा लिखने में नहीं हो सकता है। इससे केवल उच्चारण संभव है।
3) यह खर्चीली पद्धति मानी जाती है।
4) देश तथा विदेशों मे जो अन्य भाषायें सिखायी जाती है, उनके विद्वान मिलना कठिन हो जाते है।
5) विशिष्ट अध्यापकों का अभाव है जिसके कारण इसका संचालन ठीक ढंग से नही हो पाता है।
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