शिरोपरि प्रक्षेपी/ओवर हैड प्रोजेक्टर -संरचना,कार्य प्रणाली,शैक्षिक उपयोगिता,लाभ |Overhead Projector sanrachna,upyog in hindi

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शिरोपरि प्रक्षेपी/ओवर हैड प्रोजेक्टर -संरचना,कार्य प्रणाली,शैक्षिक उपयोगिता,लाभ |Overhead Projector sanrachna,upyog in hindi

प्रोजेक्ट विभिन्न प्रकार के होते हैं, जिनका प्रयोग शिक्षा में किया जाता है, जैसे- ओवर हैड प्रोजैक्टर (OHP), स्थिर प्रोजैक्टर (Stull Proiector) और एलईडी प्रोजैक्टर (LED Projector) आदि। इनमें से ओवर हेड प्रोजेक्टर (OHP) एक बहुत ही प्रसिद्ध प्रोजेक्टर है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह वह प्रोजेक्टर है इसमें दर्शायी जाने वाली सामग्री दर्शाने वाले के पीछे सिर के ऊपर प्रदर्शित होती है। ओवर हेड प्रोजेक्टर को अध्यापक कक्षा में अपनी मेज पर ही रखकर प्रयोग कर सकता है। जब भी आवश्यकता होती है, अध्यापक OHP द्वारा अनुदेशन सामग्री को पर्दे पर प्रक्षेपित कर सकता है और अपना कार्य सरल बना सकता हैं। इस प्रोजेक्टर द्वारा ट्रान्सपेरेन्सीज (Transparencies) का प्रयोग करके सूचनाओं को पर्दे पर प्रक्षेपित (Project) किया जाता है। इसके लिए कक्षा शिक्षण से पहले ही ट्रान्सपेरेन्सीज बनानी पड़ती है जिन्हें हाथ के द्वारा भी बनाया जा सकता है। समस्त प्रोजेक्टर्स में OHP सबसे सरल होता है। इसका प्रयोग करने में शिक्षकों को कोई परेशानी नहीं होती। इसकी सहायता से 18 x 22.5 CM की ट्रान्सपरेन्सी को बड़ा करके 1.5 X 1.5 मीटर के आकार में परदे पर देखा जा सकता है।

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TRANSPARENCIES 

ओ.एच.पी. की संरचना (Construction of O.H.P.)

शिरोपरि प्रक्षेपी की संरचना का सिद्धान्त इस तथ्य पर आधारित है कि “पारदर्शिता पर बनी शिक्षण-सामग्री को प्रकाश के संचरण द्वारा पर्दे पर प्रदर्शित करना है।” इस यंत्र की सहायता से पारदर्शिता पर चित्रित आकृति, लेखन सामग्री, नक्शे, चार्ट, छपी सामग्री इत्यादि को प्रोजेक्ट किया जाता है जिससे शिक्षण प्रक्रिया सरल, रोचक व बोधगम्य बन जाती है।

इस यंत्र की संरचना में निम्नलिखित भाग होते हैं-

1) कैबिनेट (Cabinet)- 

शिरोपरि प्रक्षेपी का कैबिनेट प्रोजेक्टर की क्षमता के अनुसार होता है व कैबिनेट प्लास्टिक या स्टील का बना होता है। शिक्षक द्वारा 39cm, 32.5cm, 26.5cm आकार का कैबिनेट प्रयोग किया जाता है।

2) प्रोजेक्शन लैम्प (Projection Lamp) – 

प्रत्यक्ष प्रोजेक्शन के लिए ‘हैलोजन लैम्प’ व अप्रत्यक्ष प्रोजेक्शन के लिए ट्यूबयूल प्रोजेक्शन लैम्प का प्रयोग किया जाता है जो कि पारदर्शिता एसीटेट की बनी होती है, जिसके द्वारा पर्दे पर प्रोजेक्शन किया जाता है।

3) फोकस समायोजन (Adjustment of Focus)-

कैबिनेट में शीशे की प्लेट से निकलने वाले प्रकाश को स्क्रीन पर केन्द्रित करने के लिए विशेष प्रकार के लेन्स होते हैं। जिनके द्वारा फोकस व्यवस्था को आवश्यकतानुसार समायोजित किया जाता है।

4) शीत करने की व्यवस्था (Arrangement of Cooling) – 

लैम्प से उत्पन्न ऊर्जा से होने वाली हानि जैसे शीशे की प्लेट को टूटने से बचाने के लिए पंखा लगा होता है जो बल्ब को ठण्डा रखता है। कैबिनेट के अंदर 35°C से अधिक ताप होने पर बल्ब का जलना स्वतः बन्द करने के लिए, थर्मोस्टेट का भी प्रयोग किया जाता है।


ओ.एच.पी. की कार्य प्रणाली (Working System of O.H.P) 

इस यंत्र की कार्य-प्रणाली निम्न सोपानों में उल्लेखित की जा सकती है-

सोपान 1- 

इस यंत्र में प्रोजेक्शन हैड में एक दर्पण, प्रोजेक्शन लेन्स होता है। इस प्रोजेक्शन हैड को स्पष्ट प्रतिबिम्ब प्राप्त करने हेतु आगे-पीछे खिसका कर प्रतिबिम्ब को समायोजित किया जाता है।

सोपान 2-

स्लाइडों को रखने हेतु एक बड़ा (25x25cm) काँच छिद्रयुक्त प्रयुक्त किया जाता है।

सोपान 3-

इस यंत्र में 3 स्विच होते हैं-एक स्विच यंत्र को विद्युत से जोड़ता है, एक स्विच पंखे तथा एक स्विच प्रकाश के लिए प्रयुक्त होता है।

सोपान 4-

सर्वप्रथम पंखे (Blower) का स्विच ऑन करें, तत्पश्चात् प्रकाश वाला स्विच ऑन करें।

सोपान 5-

इस यंत्र द्वारा पारदर्शिता के माध्यम से सूचनाओं को क्रमानुसार देना चाहिए व शिक्षण प्रक्रिया को क्रमबद्ध तरीके से विकसित करना चाहिए।

सोपान 6-

इस यंत्र का प्रयोग करने के उपरान्त सर्वप्रथम लैम्प का स्विच ऑफ करें, तदुपरान्त पंखे का स्विच ऑफ करें। इस यंत्र को धूल से बचाना चाहिए व निरन्तर प्रयोग से बचाना चाहिए। हर आधे घण्टे प्रयोग के बाद 5 मिनट का विराम यंत्र को देना चाहिए अन्यथा बल्ब के फ्यूज होने का खतरा बना रहता है। वोल्टेज स्टैबलाईजर का प्रयोग भी करना चाहिए।

ओ.एच.पी. की शैक्षिक उपयोगिता (Educational Application of O.H.P.)

ओ.एच.पी. की शैक्षिक उपयोगिता निम्नवत् हैं-

1) इस यंत्र द्वारा छात्रों का ध्यान विषय वस्तु के प्रति केन्द्रित किया जा सकता है। 

2) इस यंत्र के द्वारा शिक्षण के दौरान भी चित्र बनाकर पर्दे पर प्रक्षेपित किया जा सकता है।

3) इस यंत्र का संचालन शिक्षक द्वारा सुगमतापूर्वक किया जा सकता है।

4) पाठ्य सामग्री को पुनः उपयोग किया जा सकता है।

5) इस यंत्र से पढ़ाते समय शिक्षक शिक्षण के साथ-साथ विद्यार्थियों की क्रियाओं व गतिविधियों का भी अवलोकन कर सकता है।

6) इस यंत्र द्वारा शिक्षण के समय छात्र अपनी जिज्ञासाओं की पुष्टि भी कर सकते हैं । 

7) इस यंत्र के प्रयोग से शिक्षण अधिगम परिस्थितियों को छात्रों के मन के अनुकूल बनाकर, उन्हें अभिप्रेरित भी किया जा सकता है।


ओ.एच.पी. के प्रयोग में सावधानियाँ (Precautions while Using O.H.P.)

इस यंत्र का प्रयोग करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

1) पारदर्शिता पर अंकित शब्दों का आकार 6cm से कम ना हो।

2) अंकित पंक्तियाँ मोटी व समान अन्तर में हों।

3) पारदर्शिता पर ‘मार्कर पैन’ से लिखें।

4) बल्ब को ज्यादा समय तक न जलाएँ, अन्यथा बल्ब फ्यूज हो सकता है।

5) प्रत्येक बार उपयोग के बाद प्रोजेक्टर का ब्लोअर चला दें।

ओवर हेड प्रोजेक्टर के लाभ (Advantages of Overhead Projector) 

ओवर हेड प्रोजेक्टर के लाभ निम्नलिखित हैं-

1) यह यन्त्र अधिक महँगा नहीं होता।

2) इस यन्त्र के प्रयोग के लिए अन्धेरा कमरा नहीं चाहिए। 

3) अध्यापक संकेतक (Pointer) की सहायता से किसी विषय के आवश्यक पक्षों पर विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित एवं केन्द्रित कर सकता है।

4) कक्षा में प्रस्तुत की जाने वाली सूचना को एक क्रम (Hierarchical Order) में बाँटकर प्रदर्शित किया जाता है।

5) यह प्रक्षेपण की न्यूनतम दूरी से पर्दे पर बड़ा बिम्ब प्रस्तुत करता है।

6) इस यन्त्र को चलाना अत्यन्त सरल है।

7) O.H.P. के द्वारा विद्यार्थियों के ध्यान को आकर्षित किया जा सकता है। 

8) O.H.P. पर पाठ सामग्री (Transparencies) का पुनः उपयोग (Reuse) किया जा सकता है। 

9) O.H.P. में प्रयोग की जाने वाली ट्रान्सपेरेन्सीज को प्रदर्शित या संशोधित किया जा सकता है।

10) O.H.P. द्वारा विद्यार्थियों से आमने-सामने सम्पर्क करना सम्भव होता है। 

ओवरहेड प्रोजेक्टर की सीमाएँ (Limitations of Overhead Projector)

ओवरहेड प्रोजेक्टर की निम्नांकित सीमाएँ हैं

1) ओवरहेड प्रोजेक्टर में प्रकाश की आवश्यकता होती है। 

2) ओवरहेड प्रोजेक्टर के माध्यम से जानकारी को बहुत अधिक देर तक पर्दे पर दिखाया नहीं जा सकता है। 

3) विद्युत व्यवस्था में कमी या पाठ के दौरान बिजली चली जाने पर शिक्षण-प्रक्रिया में जाती है।

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