रोमन कानून पर विस्तृत टिप्पणी | Detailed note on Roman law in Hindi
रोम की परवर्ती सभ्यता के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण देन कानून के क्षेत्र में है। रोमन कानून पारसीक, हिब्रू अथवा इस्लामी कानूनों की भांति दैवी (डिवाइन) न होकर मानवीय थे। अर्थात इसका निर्माण किसी देवता अथवा पैगम्बर (देवदूत) ने नहीं, अपितु मनुष्य ने किया था। इसी कारण आविर्भावकाल से लेकर अन्त तक यह लचीला बना रहा और समय-समय पर आवश्यकतानुसार इसमें संशोधन तथा परिवर्द्धन किए जाते रहे।
रोमन कानूनों के स्रोत, लोक प्रचलित व्यवहार, सेन्टुरियल असेम्बली तथा ट्राइबल असेम्बली द्वारा बनाए गए विधान, समय-समय पर सम्राटों द्वारा निर्गत आज्ञाएं (इडिक्ट्स) तथा निर्णय (डिसीजन), प्रायटरों की विज्ञप्तियां (इडिक्टम प्रायटोरियम), विधि-विशेषज्ञों की टीकाएं तथा निबन्ध, दार्शनिकों की सैद्धान्तिक मीमांसा आदि थे।
पांचवीं शतीं ई.पू. के मध्य तक रोमन कानूनों का कोई लिखित स्वरूप नहीं था। केवल अभिजातों (पैट्रिशियन) को ही इसकी जानकारी थी। वें ज्यादातर इसका प्रयोग अपने हित तथा निम्न वर्गों (प्लेबियन्स) के दमन के लिए करते थे। पैट्रिशियन पुरोहित ही कानून विशेषज्ञ थे तथा वे ही इसकी व्याख्या करते थे। इस प्रकार इस पर उनका एकाधिकार था। किंन्तु जब प्लेबियनों के प्रति अत्याचार बढ़ गया, तो उन्होंने एकजुट होकर इसके विरुद्ध बगावत कर दी तथा कानून निर्माण की मांग की। उनकी मांग पर सीनेट ने 454 ई.पू. में तीन सदस्यीय एक समिति यूनान के सोलन तथा अन्य विधिनिर्माताओं के कानूनों, के अध्ययन के लिए भेजी। इस समिति के यूनान से वापस आने के बाद दस व्यक्तियों की एक समिति को कानून लिपिबद्ध करने के लिए नियत किया गया। इस समिति ने अप्पियस क्लाडियस के नेतृत्व में प्राचीन रोमन कानूनों, रीति- रिवाजों, प्रथाओं एवं यूनानी कानूनों को मिला कर रोमन कानूनों को बनाकर लकड़ी कीं बारह पार्टियों पर अंकित कर असेम्बली के सामने प्रस्तुत किया। असेम्बली ने इसमें मामूली संशोधन कर स्वीकृत कर असेम्बली के सदस्यों के सामने रखा। यह प्रतीयमानतः तुच्छ घटना रोमन इतिहास एवं मानवीय इतिहास की युगान्तकारी घटना थी।
अगले लगभग नौ सौ वर्ष तक ये कानून रोमन कानून के आधार बने रहे। इनमें पहली बार सिविल कानूनों को दैवी कानूनों से पृथक किया गया।
प्रारभ में रोमन कानून अत्यन्त कठोर थे। इसमें अभिजात तथा निम्न वर्ग के लोगों को समान नागरिक तो माना गया, किन्तु परस्पर विवाह करने की अनुमति न दी गयी। किन्तु चार वर्ष बाद दोनों को विवाह करने की अनुमति सम्बन्धी कानून बना दिए गए। पिता को अपनी सन्तति को पीटने, कैद करने, बेंचने तथा वध करने का अधिकार था। निन्दा, चोरी, फसल चुराने, रात्रि में पड़ोसी की फसल नष्ट करने, आगजनी, हत्या, रात्रि में राजद्रोह से सम्बन्धी सभा करने आदि जैसे जघन्य अपराध के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता था। चोरी करने वाले को दास भी बना लिया जाता था। पिता की हत्या करने वाले को एक बोरी में भरकर, मुरगा, बन्दर अथवा कुत्ते के साथ नदी में डुबो दिया जाता था।
इस प्रकार कानून के लिखित रूप होने तथा उसके लागू किये जाने से प्लेबियनों के अधिकार बढ़ गये। अब कांसल, मजिस्ट्रेट तथा देवालयों के संरक्षक इस वर्ग से चुने जाने लगे। जैसे-जैसे सम्पत्ति बढ़ती गयी तथा जीवनविधा जटिल होती गयी सीनेट, सभा, मजिस्ट्रेट तथा राजकुमार नए-नए आदेश तथा कानून बनाते गये और नयी कानूनी संस्थाएं फलती-फूलती गयीं। 287 ई.पू. में लेक्स हार्टेन्सिया के माध्यम यह निश्चित किया गया कि सभा स्वतंत्र रूप से कानून बनाए। इसे स्वीकृत तथा लागू करने के लिए किसी संस्था अथवा अधिकारी की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।
धीरे धीरे कानूनविदों के शिक्षित होने, न्यायाधीशों के निदेशन तथा अवैध निर्णयों के विरुद्ध नागरिकों की संरक्षा के कारण कानूनों को व्यवस्थित तथा सुगम बनाने की आवश्यकता महसूस की गयी। अतः ग्रैक्कन बन्धुओं तथा मरियन की क्रान्ति के विक्षोभ में कांसल पब्लियस मुसियस स्कीबोल (कांसल 133 ई.पू.) तथा इसके पुत्र कांसल क्विण्टस (95 ई.पू.) ने रोमन कानूनों को बोधगम्य बनाने का प्रयास किया। एक अन्य कांसल सिसरो ने विधिदर्शन पर लिख कर एक आदर्श विधिसंहिता का निर्माण किया। सिसरो मानता था कि सम्यक तर्क ही वास्तविक कानून है। इसका बहुत कुछ सम्बन्ध प्रकृति से है तथा मानव स्वभाव में अन्तर्हित है। यह चिर तथा शाश्वत है। इसके विरुद्ध नियम बनाना तथा इसका उल्लंघन करना निरंकुशता का परिचायक है। सेनेका ने भी सिसरो का समर्थन किया। इस तरह नये कानून निर्माण की दिशा में सक्रियता बढ़ी।
ईसवी सन् की दूसरी तथा तीसरी शताब्दी का रोम के इतिहास में कानून निर्माण के क्षेत्र में विशिष्ट महत्व है। जूलियस सीजर चाहता था कि न्याय एवं औचित्य के सिद्धान्त पर कानून तैयार कराया जाय। किन्तु उसकी इच्छा अपूर्ण रह गयी। सीजर के बाद इस दिशा में आगस्ट्स ने सक्रियता दिखायी। इसने विधि विशेषज्ञों की सहायता से जूलियन ला नाम से कानून बनाया। इसमें व्यभिचार, भ्रष्टाचार, उत्कोच विलासिता, विवाहहीनता, सन्तानहीनता, तलाक आदि को कम करने के लिए कानून बनाये गये। विवाह सम्बन्धी कानूनों को लेक्स जूलिया डी मेरीटाण्डिस आर्डिनीबस शीर्षक के अन्तर्गत रखा गया। इसके अनुसार पिता को अपनी व्यभिचारिणी पुत्री तथा उसके अभिषंगी को मार डालने, पति को पत्नी को जार के साथ मार डालने तथा व्यभिचारिणी स्त्री को सदा के लिए देश से निकाल देने का अधिकार दिया गया। प्राचीन कानूनों को व्यवस्थित कर 9 ई. के आस-पास लेक्स पैपिथा पोपिया के नाम से प्रकाशित किया गया। इसमें जूलियन ला को कुछ सरल बनाया गया।
कानून निर्माण के जो एक पूर्ण क्षेत्र में आगस्टस के बाद दूसरी शती ई. के प्रथम चरण में प्रगति हुई। हेड्रियन ने शिक्षित शासक था, न्यायविदों को एकत्र कर प्रायटरों के विविध वार्षिक आदेशों के स्थान पर एक स्थायी कानून ( परपेचुवल इडिक्ट) तैयार करवाया और इसे सभी भावी न्यायाधीशों के लिए पालनीय बताया। यद्यपि यूनानी सोलन के समय से ही कोई श्रेष्ठ विधिशास्त्र नहीं बना पाये थे, किन्तु इटली तथा एशिया के नगरराज्यों ने उत्कृष्ट नागरसंहिता (म्युनिसिपल कोड) विकसित कर ली थी। हेड्रियन को इन देशों की यात्रा के दौरान इन कानूनों से परिचित होने का अवसर मिला। इसने बारीकी से इनका अध्ययन किया और इनके अनुसार रोम के कानूनों को सुधारने तथा समन्वित करने की कोशिश की। इसके उत्तराधिकारी एण्टोनिनस के समय भी संहिताकरण (कोडीफिकेशन) का काम चलता रहा तथा स्टोइक दर्शन के प्रभाव में रोमन कानून बनाए गए। एण्टोनिनस के समय तक रोमन मानने लगे कि कानून तथा सदाचार एक दूसरे से गहरे रूप से जुड़े हैं।
दूसरी शताब्दी ई. के अन्य न्यायविदों में साल्वियस जूलियनस, गायस, पापियन, पौलस, उल्पियन आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनके समय रोम की विधिसंहिता अपनी उच्चता हासिल की। अब कानून की पढ़ाई 22 के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा। प्रत्येक पढ़े-लिखे नागरिक से यह उम्मीद की जाने लगी कि वह कानून की थोड़ी-बहुत जानकारी रखे। कानून के जानकार निःशुल्क लोगों को कानूनी परामर्श देते थे। कानून निर्माण की प्रक्रिया दूसरी शती ई. के बाद भी जारी रही। चौथी शती के प्रारंभ में डिओक्लीशियन ने इडिक्ट ऑव प्राइसेस नामक राजाज्ञा निर्गत की, जिसमें वस्तुओं के क्रय-विक्रय मूल्य तथा श्रमिकों के पारिश्रमिक निर्धारित किये गये। 438 ई. में थिओडोसियस ने तीन सौ वर्ष पुराने कानूनों को संग्रहीत कर थिओडोसियन कोड नाम से प्रकाशित किया। रोमन कानूनों के संग्रह में सम्राट जस्टिनियन (527-565 ई.) का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है। विल ड्युरैण्ट ने ठीक ही लिखा है कि इतिहास जस्टिनियन के युद्धों को सही ही भूल जाता है, और उसके कानूनों के कारण उसे याद रखता है। कानूनों को स्पष्ट करने के लिए इसने दस न्यायविदों का ट्रिबोनियन की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया। इस आयोग ने हेड्रियन के समय से चले आ रहे सभी कानूनों को एकत्र कर कोडेक्स जस्टिनियनस नाम से प्रकाशित किया। इसके बाद न्यायविदों के विचारों को डाइजेस्टा नाम से संग्रहीत किया गया तथा कानून की सामान्य पुस्तक इण्स्टीट्यूट्स का प्रकाशन हुआ। जस्टिनियन के निजी विधान नवेलिया में संग्रहीत किये गये।
रोमन कानून तीन प्रकार के थे –
(i) रोमन नागरिक कानून (इयुस-सिविल द ला ऑव रोमन सिटिजन)
(ii) राष्ट्रीय कानून (इयुस जेनियम-द ला ऑव द नेशन्स) तथा
(iii) प्राकृतिक कानून (इयुस नेचरले-द ला ऑव नेचर)।
रोमन नागरिक से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो रोमन जाति में जन्म लेने के कारण अथवा दत्तक विधि से स्वाधीन करने के कारण अथवा शासकीय अनुमति से स्वीकार कर लिया गया है। इस प्रकार की नागरिकता की तीन श्रेणियां थी। प्रथम श्रेणी में ऐसे नागरिक थे जिन्हें मत देने, कार्यालयों में काम करने, स्वतंत्र नागरिकों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने तथा रोमन कानूनों के अधीन व्यापारिक ठेकेदारी करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त था। दूसरी श्रेणी उन नागरिकों की थी जो विवाह सम्बन्ध तथा ठेकेदारी तो कर सकते थे किन्तु मताधिकार से वंचित थे। तीसरी श्रेणी ऐसे स्वतंत्र नागरिकों की थी जो मताधिकार तथा ठेकेदारी के अधिकार तो रखते थे, किन्तु विवाह सम्बन्ध स्थापित करने तथा पूद ग्रहण के अधिकार से वंचित थे। पूर्ण नागरिकों को व्यक्तिगत कानूनों में कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे।
नागरिक कानूनों में नागरिकों को जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त था, वह यह कि उनकी तथा उनकी सम्पत्ति तथा अधिकारों की सुरक्षां एवं प्रताड़ना अथवा उपद्रव से रक्षा पाने का अधिकार।
रोमन नागरिक कानूनों में राज्य की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्व दिया गया। रोमन नागरिक कानून लिखित तथा अलिखित दोनों प्रकार के थे। इनमें सीनेट द्वारा घोषित नियम, प्रिंसेप के निर्णय, प्रायटरों के आदेश तथा प्रथाएं सम्मिलित थीं। राष्ट्रीय कानून रोमन नागरिकों तथा विदेशियों पर समान रूप से लागू किये जाते थे। प्राकृतिक कानूनों की संकल्पना को रोमन सभ्यता की महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा सकता है।
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