यूनानी कला पर एक निबंध लिखिए| essay on the Greek art in hindi

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यूनानी कला पर एक निबंध लिखिए| essay on the Greek art in hindi

यूनानी कला यूनानी सभ्यता की आत्मा है। इसके द्वारा हम हेलेनिक यूनानियों के विषय में बहुत कुछ जान सके हैं। यूनानी मनुष्य को विश्व में सर्वोत्कृष्ट मानते थे। मनुष्य इनकी दृष्टि में प्रकृति का प्रतीक था। इनका विश्वास था कि मनुष्य तथा देवताओं में केवल रूप का अन्तर है, इसीलिए मनुष्य का सौंदर्यपूर्ण चित्रण कर ये उसमें देवेत्व आरोपित करना चाहते थे। यूनानी वास्तुकला एवं स्थापत्यकला में सन्तुलन, संगति, शैली एवं संयमन का अभूतपूर्व समन्वय है। यूनानी कला संयमित एवं मर्यादितं थी। शरीर का जितना सूक्ष्म ज्ञान कलाकार को रहता था, उतना ही वह उसमें आदर्शपूर्ण यथार्थ, भाव-भंगिमा एवं गति प्रदान करने की चेष्टा करता था। अद्वितीय सौंदर्य प्रदर्शन में इन्हें नग्न मूर्तियों के निर्माण में भी तनिक हिचक नहीं होती थी। यूनानी कला समष्टिवादी थी। इसमें व्यक्ति-विशेष को कोई महत्व नहीं मिला था। मानवीय आकृतियां किसी व्यक्ति विशेष की नहीं, अपितु समस्त जाति की उत्कृष्टता की द्योतक थीं।

स्थापत्य कला

स्थापत्य प्राचीन यूनान में मूर्तियाँ और रिलीफ-चित्र प्रायः मन्दिरों को सजाने के लिए बनाए जाते थे और उनको रंगा जाता था, इसलिए उसकी मूर्तिकला, चित्रकला और बास्तुकला एक दूसरे से घनिष्ठतः सम्बद्ध थी और प्रत्येक कलाकार इन सब में पारंगत होने की चेष्टा करता था । इस युग की चित्रकला के नमूने आजकल प्राप्य नहीं हैं, लेकिन साहित्य में इसका वर्णन मिलता है । छठी शताब्दी ई० पू० तक यूनानी मूर्तिकार अधिकांशतः काष्ठप्रतिमाएँ बनाते थे । इनमें सुवर्ण, हस्तिदन्त और बहुमूल्य पाषाण जड़े जाते थे । दूसरा प्रमुख माध्यम था कांस्य । बाद में उन्होंने शनैः शनैः पाषाण मूर्तियाँ बनाना सीखा । उनकी प्राचीनतर मूर्तियों पर मिस्त्री और एशियाई प्रभाव सुस्पष्ट है । ये पूर्णतः निष्क्रिय और भावविहीन मुद्रा में बनाई गई हैं और देखने में जीवन-हीन लगती हैं । सर्वप्रथम आयोनियन कलाकारों ने झीने वस्त्र की सलवटों द्वारा शारीरिक सौंदर्य को अभिव्यक्त करने की कला का आविष्कार किया। पाँचवीं सदी ई० पू० के प्रारम्भ तक उनकी मूर्तियों में सजीवता आने लगी थी और वे क्लासिकल मूर्तियों से मिलती-जुलती होने लगी थी । छठी शताब्दी ई० पू० की मूर्तियों में ‘कोउरोस’ और ‘कोरे’ नाम से प्रसिद्ध मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। ये क्रमशः बायाँ पैर बढ़ाए, हाथ लटकाए, मुट्ठियाँ बाँधे, नग्नावस्था और भावविहीन मुद्रा में खड़े युवकों और सुन्दर जूड़े बाँधे, एक हाथ से वस्त्र उठाती और दूसरे से देवता को कुछ भेंट अर्पित करती हुई युवतियों की मूर्तियाँ हैं ।

वास्तुकला

यूनानी वास्तुकला का उत्कर्ष मन्दिरों के निर्माण के हेतु हुआ । ये पहले काष्ठ और ईंटों के बनाए जाते थे, पाषाण कला का आविर्भाव होने पर पाषाण के बनाए जाने लगे । इनकी रूपरेखा बहुत साधारण और आधार योजना आयताकार होती थी । वस्तुतः यूनानियों ने स्तम्भों को भवनों की सौंदर्य-वृद्धि का माध्यम बना लिया था । छठी सदी ई० पू० तक वे दो शैली (ऑर्डर) के स्तम्भों का विकास कर चुके थे- डोरिक और आयोनियन । डोरिक शैली यूनान और पश्चिमी उपनिवेशों में लोकप्रिय थी और आयोनियन ईजियन प्रदेश और एशियाई उपनिवेशों में । इस युग में एथेंस की वास्तुकला मुख्यतः डोरिक शैली की थी। ईरानी आक्रमण के समय जब आयोनियन कलाकार एथेंस आकर बसे तो वहाँ आयोनियन शैली भी प्रचलित हो गई । पाँचवीं सदी ई० पू० के प्रारम्भ तक एथेंस के कलाकार दोनों शैलियों में पारंगत हो चुके थे और पेरिक्लियन-युग की महान् सफलता के लिए तैयार हो गए थे।

चित्रकला

यद्यपि यूनानी चित्रकार मूर्तिकार की बराबरी न कर सके, फिर भी इस क्षेत्र में इनका योगदान कम नहीं था। यूनानी चित्रकला के प्राचीन उदाहरण नहीं मिल पाये हैं किन्तु साहित्य में इनका उल्लेख मिलता है। प्लिनी के अनुसार आठवीं शती ई.पू. में चित्रकला का विकास इतना अधिक हो गया था कि लीडिया के शासक को एक चित्र के लिए उसके बराबर सुवर्ण देना पड़ता था। यूनानी चित्रकला के विकास के चार स्तर मिलते हैं। जिनमें तीन का सम्बन्ध हेलेनिक युग से तथा चौथे का हेलेनिस्टिक युग से है। विकास के प्रथम स्तर में इसका प्रयोजन भाण्डों को अलंकृत करना था। यह स्तर विकसित नहीं माना जा सकता। पांचवीं शती ई.पू. तक यूनानी चित्रकला, वास्तुकला एवं मूर्तिकला से अपृथक रूप से जुड़ गई। अब इसका उपयोग भवनों तथा मूर्तियों को अलंकृत करने के लिए किया जाने लगा। चौथी शती ई.पू. में इसका प्रयोग घरेलू तथा व्यक्तिगत उपयोग की वस्तुओं में किया गया जिससे इसका महत्व कम हो गया।

यूनानी चित्रकला का पूर्ण विकास पेरिक्लीजकाल में हुआ। इस समय यहां चित्रकला की तीनों – फ्रेस्को, डिस्टेम्पर तथा एनकॉस्टिक-विधियां प्रचलित थीं। पेरिक्लीजकालीन चित्रकारों में सर्वाधिक प्रसिद्ध पॉलीग्नोटस था। इसने अपने जीवनकाल में अनेक चित्रों का निर्माण किया जिनमें ट्रॉय का विनाश, रेप ऑव दी ल्युसिपिडाई तथा ओडिसियस इन हेडीज विशेष प्रसिद्ध है।

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