पेरिक्लीज युगीन यूनान की उपलब्धियां का विवरण दीजिए | Various achievement of Greek in the age of Pericles in Hindi

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पेरिक्लीज युगीन यूनान की उपलब्धियां का विवरण दीजिए | Various achievement of Greek in the age of Pericles in Hindi



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पेरिक्लीज का परिचय –

पारसीक युद्ध के 18 वर्ष पश्चात् एथेन्स में पेरीक्लीज युग प्रारम्भ होता है। पेरिक्लीज एथेन्स के कुलीन परिवार में उत्पन्न हुआ था। उसका पिता जान्थियस माइकेल युद्ध का सेनापति था और उसकी माँ महान् सुधारक क्लीस्थेनीज की वंशजा थी। उसके सम्बन्ध में उसके समकालीन इतिहासकार थ्युसीडाइडीस ने लिखा है कि शान्तिकाल में उसने कुशल एवं मध्यस्थ होकर शासन किया। उसने एथेन्स की समस्त संकटों से रक्षा की और उसके संरक्षण में एथेन्स अपनी महानता की पराकाष्ठा पर पहुँच गया। इसी प्रकार युद्ध काल में एथेन्स की शक्ति का निपुणता से उपयोग किया।

पेरिक्लीज युगीन यूनान की उपलब्धियां 

पेरिक्लीज पांचवी शती ई. पू . का सबसे प्रभावशाली व्यक्ति था। इसके समय में न केवल एथेस की  जनतांत्रिक प्रणाली पूर्णता पर पहुँची बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से यूनान भी महत्वपूर्ण बन गया । पेरिक्लीज काल मे यूनान की उपलब्धियां का वर्णन इस प्रकार है –

1) एथेन्स का स्वर्णकाल

पेरिक्लीज का काल एथेन्स का स्वर्णकाल कहा जाता है, क्योंकि वह अपने समय के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में विकास कर लिया था। बर्न्स के मत में इस काल में जनतन्त्र ने पूर्णता प्राप्त कर ली थी। काल्डवेल के अनुसार “नगर को सुन्दर बनाकर उसने नगरराज्य को गौरवान्वित किया और देव-पूजा की भावना बनाकर कला साहित्य एवं दर्शन के क्षेत्रों में उल्लेखनीय विकास किया।” वीच के मत में पेरिक्लीज ने सफलतापूर्वक विज्ञान, दर्शन, कला और राजनीति में अपनी भावनाओं का विकास किया।

एथेन्स का जीवन अन्य संस्कृतियों से कुछ भिन्न था। इसके जीवन की प्रमुख विशेषता यह थी कि उसमें सामाजिक एवं आर्थिक समानता विद्यमान थी। यद्यपि कि गरीबों की संख्या अधिक और धनिकों की कुछ ही थी किन्तु सभी वर्गो के मजदूरों कारीगरों, दासों आदि के वेतन समान थे। लगभग सभी नागरिक या दास एक ही प्रकार के कपड़े पहनते थे। भोजन करते और समान रूप से उत्सवों में भाग लेते थे। दूसरी विशेषता यह थी कि कम आय के कारण शिक्षक, शिल्पकार, वास्तुकार, बढ़ई और मजदूर सादा-जीवन व्यतीत कर रहे थे। सन्तोषपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए कठोर परिश्रम से नहीं हिचकते थे। पेरिक्लीज ने उन्हें यह शिक्षा दी कि उत्साह ही स्वतन्त्रता है और स्वतन्त्रता ही सुख है। अतः उसने स्वतन्त्रता की शक्ति प्रदान करके उन्हें सुखी बनाया। उसकी कुशल राजनीति के निर्देशन में उन्होंने शीघ्र ही साम्राज्य का निर्माण कर लिया। उसकी प्रेरणा से जमीन और समुद्र दोनों का द्वार उद्घाटित कर दिये गए।

2) साहित्य


पेरिक्लीज काल मे यूनान के साहित्य का स्वर्ण युग है। यद्यपि होमर काव्य में काव्य के सभी स्वरूप सूक्ष्म रूप से पाये जाते थे किन्तु उसका पूर्ण विकास उसी काल में हुआ। कालिदास ने लिखा है कि नाटक का उद्देश्य विनोद ही नहीं अपितु नाट्य देवों का प्रिय चाक्षुष (नेत्र सम्बन्धी) यज्ञ है। यूनानियों में भी यही बात पायी जाती है। उनकी विशेषता यह है कि वे देवताओं के उत्सवों पर अभिनय के लिए लिखे जाते थे। अभिनय के साथ ही उनका उद्देश्य भी प्रचारात्मक था। अनेक नाट्यगृह थे। जिनमें समय-समय पर अत्यन्त समारोह के साथ नाटकों का अभिनय किया जाता था। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे दुःखान्त थे।

दुखान्त नाटक का संस्थापक एस्काइलस (Aeschylus 525-456 ई० पू०) था जिसने सम्भवतः अस्सी नाटकों की रचना की थी। उनमें कुछ  के नाम है-दि परसियन्स (The Persians), सेबिन अगेन्स्ट थेबीज (Seven against Thebes) एवं प्रोमेथियस बाउण्ड (Prometheus bound) इन सबकी विषयवस्तु अपराधी को दण्डित करने से सम्बन्धित हैं। सबसे बड़ा नाटककार सोफोक्लीज (sophocles 469-406 ई० पू०) था जिसने सौ से भी अधिक नाटक लिखा था। उसकी शैली चमत्कृत हैं और उसमें दार्शनिकता की भरमार है। उसका दृष्टिकोण शान्ति और सन्तुलन में सन्निहित था और मानव दुर्बलताओं के प्रति उसकी अतीव संवेदना थी। तीसरा प्रमुख नाटककार यूरीपिडीज, (Euripiedes 480-406 ई० पू०) था। वह देवताओं की आलोचना करने में नहीं हिचकता था। अतः वह सन्देहवादी कहा गया है। अपने नाटकों में सर्वप्रथम उसी ने भिखमङ्गों एवं कृषकों को स्थान दिया। अतः वह व्यक्ति विचारों का पोषक था। उसने रूढ़िवादी प्रवृत्ति की आलोचना कर जनसामान्य को श्रद्धेय स्थान दिया। वह दासों का समर्थक युद्ध का विरोधी और स्त्रियों के सामाजिक उत्सवों में प्रतिबन्ध का कटु आलोचक था। सुखान्त नाटककारों में अरिस्टोफेनीज प्रमुख था। अपने प्रहसनों एवं सङ्गीतात्मक नाटकों में उसने तत्कालीन दर्शन, धर्म, राजनीति, समाज और परिवार की सुन्दर एवं चुभती भाषा में आलोचनायें की।

इस काल के साहित्य का दर्शन से घनिष्ट सम्बन्ध था और प्रायः कवि स्वयं दार्शनिक था। यही कारण है कि दार्शनिक विचार साहित्य के सभी क्षेत्रों में व्याप्त हैं। विलडूरेन्ट के शब्दों में जब काव्य की कलात्मक में गहन विचारों का संयोग हुआ तो स्वर्ण युग का साहित्य उस ऊँचाई पर पहुँच गया जहाँ वह शेक्सपीयर के पहले नहीं पहुँच सका था। इस काल में पहले की गीत परम्परा चलती रही। यह काल गीति-काव्य के लिए विख्यात है। विलडूरेन्ट ने पेरिक्लीज काल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि काव्य के क्षेत्र में माना है। पिण्डर प्रमुख कवि था। उसने खिलाड़ियों की विजयों और हेलेनिक सभ्यता के गौरव का अपनी गीतों में चारुचित्रण किया। सैफो ने अपनी कृतियों में वसन्त आदि ऋतुओं का मनोहारी चित्र खींचा है और प्रणय का सुन्दर वर्णन किया है।

पेरिक्लीज काल में दो प्रसिद्ध इतिहासकार हुये। हेरोडोटस इतिहास का पिता कहा गया है। जिसने तत्कालीन संसार के विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर सर्वप्रथम वैज्ञानिक इतिहास की नींव डाली। ध्यूसीडाइडीज (Thucydides 460-400 ई० पू०) यूनान का सर्वश्रेष्ठ इतिहासकार है। उसका इतिहास उस स्थान से आरम्भ होता है जहाँ हेरोडोटस का इतिहास समाप्त होता है। उसने पेलोपोनेसियन युद्धों का विवेचनात्मक इतिहास लिखकर यूनान की तत्कालीन स्थिति पर सुन्दर प्रकाश डाला है।

3) कला

मूर्तिकला, चित्रकला और वास्तुकला तीनों ही पेरिक्लीज काल में चरम विकसित थे। कला में इतनी अधिक उपलब्धि कहीं नहीं हुई थी। पेरिक्लीज की यह धारणा थी कि यूनानियो की भावनायें सुन्दर मंदिरों के निर्माण में ही व्यक्त हो सकती हैं। उसके काल में वास्तुकार एक्टिनस (Ictinus) के निर्देशन में निर्मित पार्थेनन का मन्दिर विशेष उल्लेखीय है। कला की विशेषता मानव-प्रेम, सादगी, आदर्श और मधुरता है। इस प्रकार पेरिक्लीज ने यूनान की कलात्मक प्रतिभा के विकास का अवसर दिया जिससे वे सुन्दर भवनों एवं महान् मन्दिरों का निर्माण कर सके। 

4) दर्शन


पेरिक्लीज ने दार्शनिकों को आश्रय दिया। वह दार्शनिक एनेक्सागोरस का मित्र था और ज्ञान-विज्ञान का जिज्ञासु था। वह कहा करता था कि उसने एथेन्स को यूनान की पाठशाला बना दी थी जहाँ समस्त यूनान के विद्वान् एवं शिक्षक एकत्र होते थे। इस युग में व्यवसायी सोफिस्ट शिक्षकों की अधिक उन्नति हुई। उन्होंने भाषण एवं गद्यलेखन को विशेष प्रोत्साहन दिया। पेरिक्लीज ज्ञान, सौन्दर्य एवं शक्ति का पिपासु था। उसने अन्त में कहा था कि उसके कारण किसी एथेनियन को दुःखी नहीं होना पड़ा। वास्तविक रूप में तो उसकी तुलना जियस देव से की जाती थी।

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