यूनानी सभ्यता की देन पर एक निबंध लिखिए।
Write an essay on legacy of Greek civilization.
Introduction –
प्राचीन यूनानी सभ्यता का यूनान में ही नहीं प्रत्युत समस्त विश्व में महत्व है। प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण प्राचीन यूनानी प्राचीन विश्व में एक महान साम्राज्य के संस्थापक तो बन सके पर बौद्धिक, कलात्मक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों में इन्होंने जो प्रगति की, उससे न केवल प्राचीन यूनान आदर्श सभ्यता का केन्द्र बना, प्रत्युत परवर्ती विश्व भी प्रभावित हुआ। इसी कारण प्राचीन विश्व की अनेक जातियों द्वारा स्थापित महान साम्राज्य आज मिट गए हैं, पर यूनानियों द्वारा स्थापित बौद्धिक साम्राज्य आज भी जीवित है।
यूनानी सभ्यता की प्रमुख क्षेत्रों में योगदान इस प्रकार है –
1) राजनीतिक क्षेत्र में देन-
प्राचीन विश्व में जनतंत्र के प्रथम आविष्कर्ता एवं प्रयोगकर्ता यूनानी ही थे। जनतंत्रात्मक शासनप्रणाली विश्व की सभ्यता को यूनान की एक महान देन है। प्रशासन में सभाओं, मतदान प्रणाली, मताधिकार, व्यवस्थापिका तथा न्याय संस्थाओं का समुचित विकास सर्वप्रथम यूनान में ही किया गया। शासनतंत्र में संविधान की महत्ता एवं अनिवार्यता का अनुभव सर्वप्रथम इन्होंने ही किया। प्लेटो तथा अरस्तू के राजनीति ग्रंथ अपने में अनुपम है। प्लेटो ने सर्वप्रथम विश्व के समक्ष आदर्श राज्य की कल्पना की तथा अरस्तू ने विभिन्न शासनपद्धतियों का वर्गीकरण किया। यूरोप के राजनीतिक सिद्धान्तों का प्रथम प्रतिपादन प्लेटो के रिपब्लिक तथा अरस्तू के पॉलिटिक्स में मिलता है।
2) साहित्य एवं भाषा की देन –
यूनानियों का साहित्य और भाषा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। ग्रीक भाषा ने लैटिन (रोमन) भाषा को प्रभावित किया ही है, पर सर्वाधिक प्रभाव अंग्रेजी भाषा पर पड़ा। इतिहासकारों का कथन है कि अंग्रेजी के दो तिहाई शब्द यूनानी भाषा से लिये गये हैं। ग्रीकों के अनेक शब्द ज्यों के त्यों प्रयुक्त हैं, जैसे डेमोक्रेसी, पोलिटिक्स, इकोनामिक्म, ज्योमेटी आदि। ‘आटो’ से आरम्भ होने वाले सभी अंग्रेजी शब्द प्रायः यूनानी भाषा के हैं। ट्रेवर का मत है कि समस्त प्रभावों से अधिक प्रभाव रोमन साहित्य पर पड़ा। यूनानी भाषा एवं साहित्य के अध्ययन के बिना रोम के साहित्य का अध्ययन दुष्कर है। अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध कवि मिल्टन के ‘पैराडाइज लास्ट’ पर महाकवि होमर का प्रभाव है। मिल्टन के अनुसार दुःखान्त नाटकों की रचना करनी हो तो सोफोक्लीज और यूरोपिडीज के यूनानी नाटकों का अध्ययन आवश्यक है। प्लेटो की विचारधारा का प्रभाव मिल्टन, स्पेन्सर, वर्डस्वर्थ और शेली पर है। एलिजाबेथियन की कामेडी पर अरस्तू की दार्शनिक प्रवृत्तियों की छाप है। इतिहासकार हेरोडोटस और थ्यूसीडाइडीज की कृतियाँ अंग्रेजी के गद्य और इतिहास रचना में अनुकृत है। नाट्य कला का जितना विकास यूनान ने किया उतना विश्व में उस समय तक अन्यत्र नहीं हुआ। यूनानी दुःखान्त नाट्य-कला रोम पहुँची और उसके बाद समस्त यूरोप में फैल गई। ग्रीक भाषा ‘क्वाइने’ हेलेनिस्टिक जगत की प्रमुख भाषा थी।
3) कला की देन-
पाश्चात्य विश्व पर यूनानी कला के ‘शिव’ और ‘सुन्दर’ के संतुलन का यथेष्ट प्रभाव है। कालान्तर में रोमन कला ने उसे अपनाया। पेरिस की स्थापत्य और मूर्ति कला में आज भी यूनानी कला के बाह्य सौन्दर्य को व्यक्त करने वाली प्रवृत्ति की झलक है। यूनानी चित्रकारों ने फ्रेस्को, एन्कास्टिक और टेम्पेरा विधियों की सहायता से चित्र बनाये थे जो परवर्ती कला के प्रतिमान थे। इनका ईसाई धर्म के गिरिजाघरों पर प्रभूत प्रभाव देखा जा सकता है।
4) धर्म एवं दर्शन की देन –
यूनानी सभ्यता के पहले धर्म को दर्शन से पृथक् नहीं माना जाता था। दोनों एक दूसरे में मिले-जुले थे। सर्व प्रथम यूनानियों ने ही दोनों को पृथक् किया। ईसाई धर्म और गिरजाघर पर यूनानी प्रभाव है। इनके निर्माता ग्रीक थे। प्लेटो और अरस्तू ने दर्शन के क्षेत्र में नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर दर्शन-शास्त्र की विभिन्न शाखाओं को जन्म दिया। उनके प्रयत्नों से दर्शन शास्त्र सभी विषयों का प्राण बन गया।
आज भी विश्वविद्यालयों में उसी भावना के प्रेरणा के स्वरूप विज्ञान और कला-विषयों पर महारथ हासिल करने वाले विद्वानों को जो उपाधियाँ प्रदान की जाती है उनका नाम ‘डॉक्टर आफ फिलासफी’ रखा जाता है।
5) वैज्ञानिक प्रभाव-
यूनानियों द्वारा अन्वेषित गणित और खगोल शास्त्र के सिद्धान्तों ने गणित के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। पाइथागोरस दर्शन के अतिरिक्त गणितज्ञ भी था उसके द्वारा निर्धारित ज्योमेट्री के थ्यूरम (प्रमेय) को पाइथागोरियन थ्यूरम कहा जाता है जिसके अनुसार “समकोण त्रिभुज के कर्ण भर बना वर्ग त्रिभुज की शेष दो भुजाओं पर बने वर्गों के योग के बराबर होता है।”
एनेक्जेगोरस ने बताया कि- (1) चन्द्रमा प्रकाशमान है तथा इसमें मैदान और पहाड़ है (2) अन्य ग्रहों की अपेक्षा चन्द्रमा पृथ्वी के निकट है। (3) अन्य ग्रहों पर भी पृथ्वी की भाँति जीव हैं। पृथ्वी, जल, आकाश, वायु तथा अग्नि इन पाँचों तत्वों से विश्व बना है। प्रारम्भ में यूनान में चिकित्सा में केवल मन्त्रों और ताबीजों की प्रथा थी। परन्तु पेरिक्लीज काल में इसमें विकास हुआ । एम्पिडोक्ली एक पद्धति चिकित्साशास्त्री था। इसने चिकित्साशास्त्र का प्रचलन किया तथा निम्न बातों को बताया :-
(1) रक्त हृदय से तथा उसकी ओर प्रवाहित होता है।
(2) त्वचा के छिद्र श्वसन-क्रिया में पूरक का कार्य करते हैं
इसके अतिरिक्त गणित के क्षेत्र में यूक्लिड का, भौतिकशास्त्र के क्षेत्र में आर्किमिडीज का और ट्रिग्नामेट्री पर हिप्पार्कस का प्रभाव है। वनस्पति विज्ञान पर अरस्तू और चिकित्साशास्त्र को हिप्पार्कस की महत्वपूर्ण देन है। आर्किमिडीज ने यन्त्र से चलने वाले पानी की जहाज का निर्माण किया था। वह यूनानी शासक हाइरों के राज दरबार में पला था। उसके द्वारा निर्धारित तैरने वाली वस्तु के भार का सिद्धान्त आज भी मान्य है। अरस्तू के शिष्य थियोफ्रेस्टस ने वनस्पति शास्त्र पर The Hitory of Plants और Causes of Plants नामक पुस्तकें लिखी थी। स्ट्रेटो ने जन्तु विज्ञान पर ग्रन्थ लिखा। इरैटोस्थनीज ने भूगोल विद्या का विकास किया। इन सबका विश्व सभ्यता पर बड़ा प्रभाव है।
निष्कर्ष –
इस प्रकार उपरोक्त वर्णन के आधार पर हम कह सकते हैं कि यूनानी सभ्यता की राजनीतिक, साहित्य, भाषा,धर्म, दर्शन, विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यूनानी संस्कृति ने पाश्चात्य सभ्यता के सबसे अधिक प्रभावित किया है। ट्रेवर ने यूनानी संस्कृति को पाश्चात्य सभ्यता की जननी कहा है। अंग्रेजी – कवि शेली ने यूरोपियनों के लिए लिखा है कि “हम सभी यूनानी हैं। हमारी कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान आदि मूलतः यूनान की संस्कृति पर आधारित है। यही कारण है कि पाश्चात्य व्यक्ति यूनान को द्वितीय पितृभूमि मानता और मानते है कि पाश्चात्य विश्व का क्रमशः यूनानीकरण हुआ है।”
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