ऑगस्टस के जीवन चरित्र एवं उपलब्धियों का वर्णन | Augustus ke jeevan charitra aur uplabdhiyon ka vernan| Augustus ka yogdan

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Que)  प्राचीन रोम के इतिहास में आगस्टस के योगदानों का मूल्यांकन कीजिए।      (OR)

Que) ऑगस्टस के जीवन चरित्र एवं उपलब्धियों का निरूपण कीजिए।

Ans) 

सामान्य परिचय — 
आक्टेवियन ने आगस्टस के नाम से शासन करना आरम्भ कर दिया। आगस्टस’ का अर्थ होता है, महामहिम। सेनेट पर उसका ऐसा जादू चला कि बिना माँगे ही प्रिंसेप (प्रमुखाधीश), इम्परेटर (महाधिपति) आदि उपाधियों से विभूषित किया। प्रिंसिपेट का अर्थ होता है राज्य का प्रथम नागरिक। उसके युग (31 ई० पू० 14 ई०) को प्रिंसिपेट (Principate) काल कहा जाता है। उसे पेटर पेट्रिआई (Pater patrii) या राष्ट्रपिता कहा जाने लगा। उसकी धार्मिक उपाधि पोन्टिफिक्स मैक्जीमस (Pontifix Mazimus) थी।

आगस्टस के सुधार- 

आगस्टस की सफलता ने रोम के विद्रोह और क्रान्ति को पूर्णतया नष्ट कर दिया और भूमध्य सागरीय संसार के लिए एक नवीन तथासुखपूर्ण जीवन का आरम्भ किया जो लगभग दो शताब्दियों तक रहा। उसने इटली को 11 भागों में बाँट कर एक प्रायटर भी नियुक्त किया। उसने शासन-व्यवस्था को एक नये ढंग से स्थापित किया। उसने आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का समाधान किया। इसके साथ ही नैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में भी सुधार किया और कला तथा साहित्य के संवर्धन में प्रोत्साहन दिया।

राजनीतिक सुधार – 

आगस्टस रोम की प्राचीन परम्पराओं और नियमों का सम्मान करते हुए रोम के शासन पर नियन्त्रण रखना चाहता था। उसके शासन की आत्मा एकतन्त्रात्मक थी परन्तु शरीर गणतन्त्रात्मक था। असेम्बली और सेनेट दोनों संस्थायें बनी रहीं। सेनेट की संख्या 900 से घटा कर 600 कर दी जिससे अयोग्य व्यक्ति निकल गये। न्याय शासनका संगठन किया तथा रोम की नागरिकता सीमित कर दी। अपनी सहायता के लिए मन्त्रिमंडल का गठन किया जिसमें अधिकतर उसके मित्र और सहयोगी थे। शासन के पदों पर व्यापारिक वर्ग को नियुक्त किया तथा कुछ को गवर्नर भी बनाया।
प्रान्तों को दो भागों में विभाजित किया गया-सेनेटोरियल (Senatorial) तथा इम्पीरियल (Impereal)। सेनेटोरियल प्रान्तों में गवर्नर सेनेट द्वारा नियुक्त किये जाते थे। इम्पीरियल प्रान्तों के गवर्नर आगस्टस द्वारा नियुक्त किये जाते थे। वे उसी के प्रति उत्तरदायी थे। इन गवर्नरों की निरंकुशता को दूर करने के लिए अर्थ-विभाग इनके हाथ से छीन लिया गया तथा उसे प्रोक्यूरेटर (procurator) नामक अधिकारी को सौंप दिया गया जो अपने कार्यों के लिए सम्मट् आगस्टस के प्रति उत्तरदायी था। गवर्नरों की अर्थलोलुपता कम करने के लिए वेतन निश्चित कर दिया गया।
 

रोम नगर का सुधार- 

आगस्टस ने रोम नगर को सुन्दर नगर बनाने की योजना बनाई थी। उसने रोम नगर को 14 भागों तथा 265 मंडलों में विभाजित किया था। प्रत्येक मंडल में चार स्थानीय मजिस्ट्रेट, तीन सिपाही तथा तीन राजकीय रक्षक होते थे जो मंडल के शासन को सुचारु रूप से चलाते थे। नगर को आग और जलप्लावन से बचाने का प्रबन्ध किया गया। आगस्टस के प्रयत्न से रोम ने नवीन रूप धारण किया। वह गर्व के साथ स्वयं कहता था कि मेरे शासन काल के पहले रोम ईंटों का नगर था परन्तु मैंने उसे संगमरमर का बना दिया।
सामाजिक सुधार- आगस्टस ने रोमन समाज में व्याप्त दुर्गुणों को रोकने और उन्हें दूर करने के लिए अनेक नियम बनाये। इसका उद्देश्य रोमन जनता के नैतिक स्तर का विकास और अन्य सामाजिक संस्थाओं का विकास करना था। उसने रोम के अनैतिक प्रथाओं को बन्द कर दिया और धनी वर्ग के विलासपूर्ण जीवन पर प्रतिबन्ध लगा दिया। उसके ये सामाजिक कानून ‘जूलियन ‘लाज’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के लिये विवाह अनिवार्य कर दिया गया। विवाह की अवस्था पुरुष के लिये 25 वर्ष तथा स्त्री के लिये 20 वर्ष निश्चित कर दी गई जो व्यक्ति इस अवस्था के भीतर अपना विवाह नहीं कर लेते उन्हें कर देना पड़ता था तथा कई रूपों में क्षति उठानी पड़ती थी। व्यभिचार को नियन्त्रित करने के लिये प्राणदण्ड की व्यवस्था हो गई।  उसने 8 ई० के लगभग अपनी पुत्री जूलिया तथा दरबारी कवि ओविड को यौन अपराध में देश निष्कासन का दण्ड दिया। उसने स्क्रिबोनिया नामक दुराचारिणणी पत्नी को भी निकाल दिया था।

आर्थिक सुधार- 

आगस्टस ने आर्थिक व्यवस्था में भी सुधार किया। राजतंत्र काल में जनता पर अनेक प्रकार के कर लगते थे। उनके लिये कोई निश्चित आधार नहीं था और न उन करों को वसूलने का निश्चित ढंग ही था। इसके कारण प्रजा में शोषण होता था। आगस्टस ने इस ओर ध्यान दिया। उसने दो प्रकार कर निर्धारित किये-भूमिकर और आयकर । भूमिकर धन तथा अनाज दो रूपों में वसूल किया जाता था और आयकर प्रतिशत आय के कारण विभिन्न हुआ करते थे। इन प्रमुख करों के अतिरिक्त सड़कों, बाजारों और बन्दरगाहों आदि पर चुंगी वसूलने की भी व्यवस्था की गई। धातु-खनन, नमक बनाने तथा मछली आदि के व्यापार राज्य के उद्योग घोषित किये गये और इनसे राजकीय आय प्राप्त होने लगी।

धार्मिक सुधार- 

धार्मिक स्थिति को सुधारने के लिये उसने रोम में पुनः पुरोहिती को आदरणीय स्थान देने का प्रयत्न किया। धार्मिक सुधार का एकमात्र उद्देश्य राजनीतिक था। वह लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहता था और धार्मिक व्यवस्था का संस्थापक तथा स्वयं देवता बनने का लाभ देखता था। पुण्यात्माओं की समाधियाँ जिनका निवास कभी-कभी खेतों, झोपड़ियों और इटली के चौराहों पर था किन्तु दीर्घकालीन क्रान्तियों और निराशावाद के तथा पूर्वी सम्प्रदाओं के कारण इनकी अवहेलना हो रही थी। उनका पुनर्गठन करना आवश्यक कर दिया।
     धर्म और सम्प्रदायों की रक्षा के हेतु उसने पेट्रीशियन पुरोहितों, स्कूलों को पुनर्जीवित किया और इसमें नये पेट्रीशियनों को भर्ती किया तथा स्वयं को सभी स्कूलों का प्रधान घोषित किया। दूसरे प्रयत्न के द्वारा राज्य के सम्प्रदायों द्वारा समस्त रोम और इटली के मन्दिरों की मरम्मत करवाई तथा नये मन्दिरों का निर्माण कराया। इससे बेरोजगारी की समस्या भी हल हो गई और धीरे-धीरे समृद्धि बढ़ाने लगी। उसने मार्स (Mercury) और हरकुलिस (Hercules) नामक नये देवों की पूजा को प्रोत्साहन दिाय। अपने धार्मिक और नैतिक कार्यों में आगस्टस को बर्जिल और होरेस का अधिक सहयोग मिला था।

सेना का सुधार- 

रोम साम्राज्य के किसी भी विभाग में सुधार की उतनी आवश्यकता नहीं थी जितनी सेना विभाग के सुधार की। आगस्टस ने साम्राज्य की सीमाओं पर और खतरों के मोर्चों पर सेनायें नियुक्त की। राइन डैन्यूज तथा दजला नदियों के तट पर यथा-स्थान उसने सेनायें रखीं थीं। अफ्रीका और स्पेन आदि भागों में कुशल सेनापति भेजे गये। सेना में निम्नलिखित सुधार किये गये।।
स्थायी सेना (legionary troops) में रोमन नागरिक नियुक्त किये जाते थे। उनकी सेवा की अवधि 20 वर्ष थी। इन्हें कार्यकाल में वेतन तो दिया ही जाता था सेवायुक्त होने पर 3000 दिनारी और कुछ भूमि दी जाती थी। दूसरी प्रकार की सेना सहायक सेना (Auxiliary force) थी। जिसकी संख्या स्थायी सेना के ही बराबर थी। इसमें प्रान्तों के योद्धा नियुक्त होते थे जिन्हें 25 वर्ष सेवा के बाद रोम की नागरिकता प्रदान की जाती थी। इस प्रकार आगस्टस प्रान्तों के सभी साधनों का उपयोग किया और वहाँ के लोग भी अपने को साम्राज्य का अभिन्न अंग समझने लगे।  इसके अतिरिक्त आगस्टस ने लिगाटी (legati) की स्थापना की जिसमें प्रायटोरियन श्रेणी के सीनेटर थे और जो आगस्टस के प्रति प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी थे। ये ही लोग सेना के ट्रिब्यनों के स्थान पर स्थायी सेना के सेनापति होते थे।
 

निष्कर्ष —

रोमन इतिहास में आगस्टस का काल स्वर्ण-काल कहा जाता है। इस काल में विशाल रोम-साम्राज्य में सर्वाधिक शान्ति और सुव्यवस्था थी। इसके विभिन्न सुधारों ने राज्य को स्थायित्व प्रदान किया जिसके कारण साम्राज्य का बहुमुखी विकास हुआ। शान्ति और समृद्धि ने कला और साहित्य के संवर्द्धन को प्रोत्साहन दिया। उसके दरबार में महान् कवियों को आश्रय मिला। आर्थिक और सामाजिक सुधारों के अच्छे परिणाम हुए। कला और साहित्य की संरचना स्वर्णयुग का आभास कराती है।
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