एन्टोनियों ग्राम्सी का आधिपत्य का सिद्धांत | Gramsci hegemony theory in hindi

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परिचय (Introduction) –

नव-मार्क्सवादी समाजशास्त्री के रूप में एन्टोनियों ग्राम्शी एक प्रमुख विचारक हैं। ग्राम्शी का जन्म 22 जनवरी, 1891 को इटली के एक गरीब परिवार में हुआ था। 

बचपन में वे शारीरिक रूप से कमजोर व बीमारियों से पीड़ित थे। ग्राम्शी की शिक्षा तुरीन विश्वविद्यालय में हुई थी।

ग्राम्शी की राजनीति में काफी रुचि थी। वे राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय रहा करते थे। राजनीतिक सक्रीयता एवं गरीबी के कारण उन्होंने अपनी शिक्षा पूर्ण किए बिना ही विश्वविद्यालय छोड़ दिया। 

अपनी प्रतिभा के बल पर के एक प्रतिभाशाली पत्रकार, एक प्रमुख राजनेता, आन्दोलनकारी, संसद सदस्य तथा इटली के साम्यवादी दल के नेता बन गए।

सन् 1920 में मुसोलिनी के शासनकाल में वे राजनैतिक सक्रीयता के कारण बंदी बना लिए गए। जहाँ कुछ वर्षों बाद यानि 16 वर्ष की अल्प आयु में 27 अप्रैल, 1997 को उनकी मृत्यु हो गयी। कारावास में ही उन्होंने राजनीति, दर्शन, साहित्य, भाषा, विज्ञान तथा साहित्य समालोचना पर कई लेख लिखे।

यह लेख उनकी मृत्यु के पश्चात् “प्रिजन नोट बुक्स’ के रूप में सन् 1971 में प्रकाशित हुआ। वर्तमान समय में नव-मार्क्सवाद के रूप में जो उनकी पहचान बनी है उसका कारण जेल में लिखी गयी उनकी कृति” “प्रिजन नोट बुक्स” ही है। इस पुस्तक में उन्होंने बुद्धिजन, इटली का इतिहास, राजनीतिक दल, फासीवाद, आधिपत्य (Hegemony) आदि लेख लिखे हैं। इन लेखों के कारण ग्राम्सी मार्क्सवादी चर्चाओं का एक प्रमुख विचारक बन गया।

 ग्राम्सी का आधिपत्य का सिद्धांत 

ग्राम्सी के द्वारा प्रतिपादित आधिपत्य की अवधारणा ग्राम्सी की महत्वपूर्ण व मौलिक देन कही जा सकती है। ग्राम्सी के अनुसार “आधिपत्य एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समाज का कोई वर्ग (विशेषकर सत्ताधारी वर्ग) अपने जीवन-मूल्यों और आदर्शों को बाकी समाज पर थोपता है। इसका परिणाम यह होता है कि बाहर से तो समाज में सर्वसम्मति “का वातावरण दिखता है, पर वास्तव में समाज बंटा हुआ रहता है।”

ग्राम्सी कहते है कि सभी समाजों में दो वर्ग होते हैं एक वर्ग वह जो उत्पादन के साधनों का स्वामी होता है, तथा दूसरा वर्ग वह जिसके पास केवल श्रम शक्ति होती है। वह वर्ग जो उत्पादन के साधनों का स्वामी होता है, वह दूसरे वर्ग अथवा श्रमशक्ति रखने वाले वर्ग पर शासन करता है तथा उसका शोषण करता है। अतः मार्क्सवादी प्रयोजन में, पूंजीवादी राज्य पूँजीपतियों की प्रबंधनकारी समिति है जो समाज में शोषणकारी प्रक्रियाओं को सहायता भी करती है तथा वैधता भी प्रदान करती है। यह आर्थिक शक्ति (अथवा उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व) सत्तारुढ़ि दल को सत्ता पर अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाती है। ग्राम्सी ने मार्क्स की इस सोच को चुनौती दी थी।

उन्होंने तर्क दिया कि शासकीय वर्ग अनेक विविध तरीकों से अपना आधिपत्य स्थापित करता है। इन तरीकों में बल का प्रयोग, उसकी आर्थिक शक्ति का उपयोग, शासितों की सहमति आदि का उल्लेख किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, पूंजीवादी वर्ग अपना प्रभुत्व मात्र बल के माध्यम से स्थापित नहीं करता, अपितु अन्य अनेक गैर- उत्पीड़क तरीकों द्वारा भी अपना अधिकार बनाए रखता है। उनकी रचनाओं में दो गैर-उत्पीड़क तरीकों का वर्णन इस प्रकार मिलता हैः एक, शासकीय वर्ग की यह योग्यता है जिसके माध्यम से यह वर्ग जनसाधारण पर अपने मूल्य तथा विश्वास व्यवस्थाएँ थौंपता है। ग्राम्सी का कहा है कि शासकीय वर्ग समाजीकरण के विभिन्न तरीकों द्वारा शासितों पर अपनी संस्कृति लागू करने का प्रयास करता है। शासकीय वर्ग शासितों के मन-मस्तिष्क पर अपनी संस्कृति अनेक तरीकों से थोपना का यत्न करता है। अतः ग्राम्सी के अनुसार, सांस्कृतिक आधिपत्य शासकों की शासन शक्ति का आधार है, दूसरे, ग्राम्सी दावा करते हैं कि शासकीय वर्ग सदैव अपने संकीर्ण वर्ग हित को पूरा नहीं करता। अपनी शासकी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए शासकीय वर्ग समाज के अन्य अनेक वर्गों के साथ समझौते आदि करता है और उस प्रक्रिया में एक ऐतिहासिक गुट बनाता है। इस सामाजिक ऐतिहासिक गुट बनाने की रणनीति के कारण तथा फलस्वरूप शासकीय वर्ग शासितों पर शासन करने की सहमति प्राप्त कर लेता है। 

निष्कर्ष 

इस तरह हम देखते है कि ग्राम्सी का यह सिद्धांत रूढिग्रस्त मार्क्सवादी सोच से हट करके है, जिसमें पूँजीपतियों में निहित शासन करने की शक्ति का आधार यह होता है कि पूँजीपतियों के पास उत्पादन के साधानों पर नियंत्रण होता है। ग्राम्सी के तर्क में आर्थिक कारक की अपेक्षा विचार तथा संस्कृति कारक केन्द्रीय स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। दूसरे, ग्राम्सी का यह तर्क है कि शासकीय वर्ग का आधिपत्य उस वर्ग का अन्य वर्गों के साथ समझौते आदि के कारण होता है, यह तर्क भी रूढ़िग्रस्त मार्क्सवादी सोच से अलग है जिसमें राज्य को पूँजीपतियों की प्रबंधन समिति कहा गया है। ग्राम्सी तो सर्वहारा द्वारा अन्य वर्गों के साथ समझौते द्वारा पूंजीवादी शासक को हटाने का भी पक्ष लेते हैं। वे एक ऐतिहासिक गुट के निर्माण की ज़रूरत पर बल देते हैं।

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