हेलेनिस्टिक सभ्यता यूनानी सभ्यता का विकृत रूप नहीं है अपितु यह एक नवीन सामाजिक तथा सांस्कृतिक व्यवस्था थी जो यूनानी तथा पूर्वीय (Oriental) तत्वों के सम्मिश्रण से प्रादुर्भूत हुई थी। हेलेनिस्टिक सभ्यता का समकालीन सभ्यताओं से अन्तर भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनसे उसकी समानता महत्वपूर्ण है। हेलेनिस्टिक काल का राजनीतिक दृष्टिकोण मुख्यतः सार्वभौमिक था जो आधुनिक काल की राष्ट्रीय प्रवृत्ति से भिन्न था। इसके साथ ही हेलेनिस्टिक काल में कोई औद्योगिक क्रान्ति नहीं हुई। उसका विज्ञान भी सीमित क्षेत्रो में ही विकसित हुआ। हेलेनिस्टिक सभ्यता की विशेषतायें थी- एक विश्व साम्राज्य की स्थापना, जिसने धर्म, देश एवं समाज की सीमाओं की छिन्न-भिन्न कर दिया, एक नगरीय आर्थिक प्रणाली का विकास और उसके साथ-साथ पूंजीवाद का उद्भव, व्यापार एवं व्यवसाय का अन्तर्राष्ट्रीयकरण।
हेलेनिस्टिक सभ्यता की प्रमुख विशेषतायें-
राजनीतिक संगठन –
हेलेनिस्टिक काल में साम्राज्यवादी प्रवृत्ति विद्यमान थी। इसका प्रारम्भ स्वयं सिकन्दर ने किया था। उसने यूनान की भौगोलिक सीमा को लाँघ कर पूर्वी विश्व में प्रवेश किया और एशिया माइनर, मिस्त्र, सीरिया, परसिया तथा पश्चिमोत्तर भारत के प्रदेशों को अपने साम्राज्य का अंग बनाया।
हेलेनिस्टिक काल राजाओं के दैविक अधिकारों से सम्पन्न निरंकुश तन्त्र का युग था।
हेलेनिस्टिक काल की शासन-व्यवस्था क्षत्रप प्रणाली पर आधारित थी। क्षत्रपीय शासन व्यवस्था का अनुकरण हेलेनिस्टिक शासकों ने परसिया की शासन- व्यवस्था से किया था। सिकन्दर ने जिन प्रदेशों की जीता उन विभिन्न राज्यों को क्षत्रपतियों में बाँट कर क्षत्रप नियुक्त किया था यह व्यवस्था कालान्तर में भी विद्यमान थी। यूनान के लिये यह नई बात थी।
सामाजिक व्यवस्था
सामाजिक क्षेत्र में पर्याप्त परिवर्तन हुआ। सिकन्दर के साथ यूनान से बहुत से यूनानी पूर्व में आये और नवीन स्थानों पर स्थायी रूप से बस गये। उनके समाज में राजकुल के अतिरिक्त अभिजात वर्ग था जिसमें मुख्यतः राजनीतिक शरणार्थी, सैनिक, नौसैनिक और विद्वत्समाज सम्मिलित था। शिक्षा जिमनेशियम, इफीबेट (Ephebate) और व्यक्तिगत, सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाओं द्वारा दी जाती थी। आप्रवासी यूनानियों को ही ऊँचा पद दिया जाता था। पूर्वीय राजतंत्रों की देशीय जनता या श्रमिक वर्ग शारीरिक श्रम द्वारा जीविकोपार्जन करते थे। दासों की दशा अतिसोचनीय थी। यूनान के लोग अधिकांशतः अपनी संस्कृति और सभ्यता के पोषक थे। उनमें नगरीय व्यवसायी वर्ग, श्रमजीवी वर्ग और दास वर्ग पूर्ववत् विद्यमान थे। परगेमम में दास-प्रथा अधिक प्रचलित थी।
आर्थिक व्यवस्था
आर्थिक क्षेत्र में हेलेनिस्टिक काल में अनेक नई व्यवस्थाओं का विकास हुआ इसका प्रमुख कारण सिकन्दर की विजय थी जिससे सिन्धु नदी से लेकर नील नदी तक व्यापार का कार्य होने लगा। परसिया से सोने का जो विपुल भंडार मिला था उसे व्यापार में लगाया गया जिससे वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हुई। राज्य सरकारों ने भी अपनी मालगुजारी बढ़ाने के लिये उद्योग तथा व्यापार को प्रश्रय दिया। हेलेनिस्टिक काल में विशाल नगरों की स्थापना हुई। दजला के किनारे सेल्यूकिया एक प्रमुख एवं घनी आबादी का नगर हो गया। मिस्र की सिकन्दरिया अत्यन्त महत्व की नगरी थी जो सबसे विशाल थी। उसका पुस्तकालय, प्रकाशस्तंभ आदि विश्व प्रसिद्ध थे। हेलेनिस्टिक काल की आर्थिक अवस्था के विकास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बैंकों की स्थापना की। बैंकों पर सरकार का अधिकार था। बैंकों से व्यापार आदि के लिये ऋण मिलता था जिससे पूँजी का विस्तार हुआ।
कला –
हेलेनिस्टिक कला का जिस काल में सृजन हुआ उसमें ‘सुन्दरम्’ की अपेक्षा यथार्थता, दृढ़ता और औपचारिकता का सम्मिश्रण है। उनमें यूनानी और पूर्वीय कला के तत्वों को प्रदर्शित किया गया है। हेलेनिस्टिक कला में विशालता का समावेश है। उनके भवन एवं मूर्तियाँ विशाल है। हेलेनिस्टिक कालीन कला का विषय व्यापक है। वह केवल धार्मिक वस्तुओं और मूर्तियों के निर्माण के इर्द-गिर्द नहीं थी, बल्कि अधार्मिक भवनों के निर्माण में उन्मुख थी। यह कला धर्मनिरपेक्ष थी। सरकारी कार्यालयों का निर्माण अधिक हुआ और मंदिरों के निर्माण में कम रुचि दिखाई गई। प्रकृति-चित्रण का महत्व नाममात्र का हो गया। कलाकार ने सिकन्दरिया के प्रकाशगृह और पुस्तकालय के निर्माण में रुचि प्रदर्शित की। राजमहलों, अभिजात वर्ग के घरों और प्रेक्षागृहों को सजाने के लिये मूर्तियों का निर्माण किया गया। जियस की वेदी के भास्कर चित्र, ट्राय के पुजारी लाओकून की मूर्ति और मरते हुए गाल की प्रतिभा अत्यन्त सजीव और स्वाभाविक है।
हेलेनिस्टिक कला यथार्थवादी, मानवतावादी और इस पृथ्वी से निकटतया संबंधित थी; जबकि यूनानी कला आदर्शवादी और मानव जीवन से परे थी।
साहित्य
हेलेनिस्टिक काल में साहित्य के क्षेत्र में 1100 से भी अधिक लेखकों और विद्वानों ने अपना योगदान दिया। हेलेनिस्टिक काल में विश्व ने साहित्य का स्वर्णिम विहान देखा था। उसकी प्रगति का कारण यह था कि साहित्यकारों ने साम्यभाषा क्वाइने (Kione) के माध्यम से साहित्य की रचना की जो हेलेनिस्टिक जगत् में शिष्ट लोगों की भाषा थी और दूर-दूर तक फैली थी। कागज (पेपाइरस) की उपलब्धि से और अधिक सुविधा हुई। पुस्तकों की सुरक्षा के लिये विशाल पुस्तकालयों की स्थापना की गई। सिकन्दरिया के पुस्तकालय में सात लाख पुस्तकें संग्रहीत थी। इसी प्रकार अन्तियोक परगेमम, रोड्स और सिमनी में भी राजकीय पुस्तकालय थे। हेलेनिस्टिक साहित्य में साहित्यिक व्यक्ति का अभ्युदय हुआ। कुछ लोगों ने स्वान्तः सुखाय साहित्य की रचना की और कुछ लोग पुस्तक तथा पुस्तकालय प्रेमी थे। अपोलोनियस तथा कैलीमेकस इसी प्रकार के व्यक्ति थे। इन्होंने पुस्तक शास्त्र को एक विज्ञान के रूप में विकसित किया और अनेक समालोचानाओं, टीकाओं और दुर्लभ शब्दों का संपूर्ण वाङ् मय ही प्रस्तुत कर दिया। यह साहित्य व्यक्तिवादी था। साहित्यकारों ने सामाजिक दायित्व की अपेक्षा व्यक्तिगत भावनाओं, संवेदनाओं, आशाओं एवं निराशाओं तथा समस्याओं और सफलताओं को प्रश्रय दिया। हेलेनिस्टिक साहित्य की एक अन्य विशेषता यह भी थी कि इसमें विश्व-बन्धुत्व की भावना का पोषण प्राप्त होता है। रामराज्य जैसे आदर्श राज्य की कल्पना यूरोपियन साहित्य में की गई। हेलेनिस्टिक काल में गंभीर और पाण्डित्यपूर्ण साहित्य के निर्माण के साथ ही लोकप्रिय साहित्य का भी निर्माण हुआ। लोकप्रिय साहित्य को सस्ता साहित्य कहा जा सकता है जो अर्धशिक्षित सर्वसाधारण के मनोरंजन के लिये था, इसमें ग्राम्य जीवन से संबंधित गीत और भाँड़ साहित्य (Mime) आता है। इतिहास लेखन में पोलिबियस ने महत्वपूर्ण दिशा और यथार्थ इतिहास लिखने की प्रेरणा दी।
धर्म –
हेलेनिस्टिक धर्म की यह विशेषता थी कि इसमें यूनान के ओलम्पियावासी देवों का महत्व कम हो गया। धर्म में बेबीलोन की नक्षत्रपूजा और पूर्वी रहस्यवाद का समावेश हो गया। बुद्धिजीवियों का बहुमत स्टोइक मत, एपिक्यूरियन मत और संशयवाद में विश्वास करने लगा तथा कुछ ने भाग्यवाद तथा अन्धविश्वास का सहारा लिया। मिस्र के आइसिस, सेरापिस और अनुबिल देव की ख्याति बढ़ी। जोरोस्टर (जरथुस्ट्र) मत का प्रभाव बड़ा और उसकी उपशाखायें मिश्रमत तथा ज्ञानवाद का भी प्रचार हुआ। इन धर्मों ने सामान्य-जन को अधिक सान्त्वना प्रदान किया। सिकन्दर की विजयों से यहूदियों का स्थानान्तरण हुआ। वे मूल स्थान छोड़कर और भूमध्यसागरीय प्रदेशों में जा बसे। उन्होंने यूनानी भाषा अपना ली। वे लोगों में घुलमिल गये जिससे यूनानी धर्म में रहस्यवाद का समावेश हुआ। इनका एकेश्वरवाद ईसाई धर्म के लिये भी प्रेरक था।
दर्शन
दर्शन के क्षेत्र में हेलेनिस्टिक काल का अपना विशेष महत्व है। प्लेटो और सुकरात के दर्शन इस काल में महत्वहीन हो गये थे। वे केवल यूनान के लिये उपयोगी सिद्ध हुए थे। ऐसी स्थिति में जेनों ने स्टोइक मत की स्थापना की जिसमें विश्वबन्धुत्व और एकेश्वरवाद का महत्व दर्शाया गया था। एपिक्यूरस ने सुखवाद के द्वारा तत्कालीन जनता को अपनी ओर आकृष्ट किया। एक अन्य मत संशयवाद था जो इन्द्रियजन्य ज्ञान में अविश्वास करता था। ये सभी मत हेलेनिक मत से पृथक् थे और हेलेनिस्टिक काल की उपज थे जिनका महत्व कालान्तर में और अधिक बढ़ा।