टॉयनबी का सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धान्त

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टॉयनबी का सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धान्त Or चुनौती एवं प्रत्युतर का सिद्धान्त

अंग्रेज इतिहासकार अर्नाल्ड जे. टॉयनबी ने विश्व की 21 सभ्यताओं का अध्ययन किया तथा अपनी पुस्तक ‘A Study of History, 1934’ में सामाजिक परिवर्तन का अपना सिद्धान्त प्रस्तुत किया। टॉयनबी के सिद्धान्त को ‘चुनौती एवं प्रत्युतर का सिद्धान्त’ (Theories of ‘Challenge and Response’) ‘भी कहते है।

उनके अनुसार प्रत्येक सभ्यता को प्रारम्भ में प्रकृति एवं मानव द्वारा चुनौती दी जाती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए व्यक्ति को अनुकूलन की आवश्यकता होती है। इस चुनौती के प्रत्युत्तर में व्यक्ति सभ्यता व संस्कृति का निर्माण करता है।

जब भौगोलिक चुनौतियों के स्थान पर सामाजिक चुनौतियाँ दी जाती हैं तो ये चुनौतियाँ समाज की भीतरी समस्याओं के रूप में अथवा बाहरी समाजों द्वारा दी जाती हैं। जो समाज इन चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक कर लेता है, वह जीवित रहता है और जो ऐसा नहीं कर सकता, वह नष्ट हो जाता है।

इस प्रकार एक समाज निर्माण एवं विनाश तथा संगठन एवं विघटन के दौर से गुजरता है। सिन्ध व नील नदी की घाटियों में ऐसा ही हुआ। प्राकृतिक पर्यावरण ने वहां लोगों को चुनौती दी जिसका प्रत्युत्तर उन्होंने निर्माण के द्वारा दिया। गंगा व वोल्गा नदी ने भी ऐसी चुनौती दी किन्तु वहाँ के लोगों ने प्रत्युत्तर नहीं दिया, अतः वहाँ की सभ्यताएँ नहीं पनपी।


समालोचनाः

टॉयनवी का सिद्धान्त वैज्ञानिकता से दूर एक दार्शनिक सिद्धान्त है। किन्तु टॉयनबी स्पेंग्लर की तुलना में अधिक आशावादी है। उन्होंने परिवर्तन की समाजशास्त्रीय व्याख्या करने का प्रयास किया


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