माध्यमिक शिक्षा आयोग की मुख्य सिफारिशें |मुदलियार आयोग की मुख्य सिफारिशें

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माध्यमिक शिक्षा आयोग की मुख्य सिफारिशें | मुदलियार आयोग की मुख्य सिफारिशें

माध्यमिक शिक्षा आयोग, 1952-53 (Secondary Education Commission, 1952-53) या (मुदालियर आयोग)

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त यद्यपि विश्वविद्यालय शिक्षा के विकास के सम्बन्ध में एक आयोग का गठन किया जा चुका था तथापि शैक्षिक क्षेत्रों में यह महसूस किया जा रहा था कि माध्यमिक शिक्षा का सम्बन्ध में विस्तृत ढंग से विचार किया जाना चाहिए जिससे माध्यमिक शिक्षा को अधिक प्रभावशाली बनाको जा सके। 

सन् 1949 में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद् ने सरकार से आग्रह किया कि वह माध्यमिक शिक्षा के अध्ययन के लिए एक आयोग का गठन करें। सन् 1951 में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद अपने इस सुझाव को पुनः दोहराया। 

केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद की इस सिफारिश को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने 23 सितम्बर सन् 1952 को डॉ० ए० लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन किया।

उद्देश्य

इस आयोग के गठन का मुख्य उद्देश्य तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का अध्ययन करके उनके सम्बन्ध में सुझाव देना था। 

प्रश्नावली व साक्षात्कारों की सहायता से माध्यमिक शिक्षा की विविध समस्याओं का परिचय पाकर आयोग ने उनका समाधान खोजने का प्रयास किया। 

आयोग ने 29 अगस्त 1953 को 240 पृष्ठों का अपना प्रतिवेदन भारत सरकार को प्रस्तुत किया। 

सिफारिशें

आयोग द्वारा माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में दी गई प्रमुख सिफारिशें अंग्राकित थीं –

माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Secondary Education)

आयोग ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य लोकतान्त्रिक नागरिकता का विकास करना, नेतृत्व की शिक्षा प्रदान करना, व्यावसायिक कौशल में वृद्धि करना, व्यक्तित्व का विकास करना तथा देश-प्रेम की भावना का विकास करना होना चाहिए।

2. माध्यमिक शिक्षा का पुनर्गठन (Reorganisation of Secondary Education)

आयोग ने स्कूल शिक्षा का पुनर्गठन करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि प्राथमिक या जूनियर बेसिक शिक्षा 4 वर्ष की हो, सीनियर बेसिक शिक्षा 3 वर्ष की हों तथा उच्च माध्यमिक शिक्षा 4 वर्ष की हो। इस आयोग ने इन्टरमीडिएट समाप्त करने तथा स्कूल शिक्षा व प्रथम उपाधि स्तर पर एक-एक वर्ष बढ़ाने का प्रस्ताव दिया।

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3. बहु-उद्देश्य विद्यालय (Multi Purpose Schools)

व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा पर बल देते हुए आयोग ने बहुउद्देश्य स्कूल खोलने का सुझाव दिया जिससे पाठ्यक्रम में विविधता आ सके तथा छात्र अपनी रुचि, क्षमता व आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर सकें।

4. कृषि शिक्षा (Agriculture Education)

आयोग ने सभी राज्यों के द्वारा ग्रामीण विद्यालयों में कृषि शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष प्रावधान करने की सिफारिश की।

5. तकनीकी शिक्षा (Technical Education)

आयोग ने बड़ी संख्या में तकनीकी स्कूल खोलने का सुझाव दिया। प्रशिक्षुत्व (Apprenticeship) प्रशिक्षण को तकनीकी शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग बनाने पर भी जोर दिया गया।


6. आवासीय शिक्षा (Residential Schools)

मुदालियर आयोग ने आवासीय विद्यालय विशेषकर चुने हुए ग्रामीण क्षेत्रों में, खोलने की प्रबल अनुशंसा की।

7. विकलांगों की शिक्षा (Education of Handicapped)

आयोग ने विकलांग बालकों की आवश्यकताओं के अनुरूप बड़ी संख्या में विशेष शिक्षा के विद्यालय खोलने की सिफारिश की।

8. सहशिक्षा (Co-education)


आयोग ने कन्या विद्यालयों तथा सह शिक्षा स्कूलों में गृह विज्ञान शिक्षा की विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराने का सुझाव दिया। लड़कियों के लिए पृथक् विद्यालयों की माँग वाले स्थानों पर कन्या विद्यालय खोलने के प्रयास करने का सुझाव भी दिया गया।


9. त्रिभाषा सूत्र (Three-Language Formula)

मुदालियर आयोग ने त्रिभाषा सूत्र का समर्थन किया तथा माध्यनिक विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा रखने का सुझाव दिया।

मिडिल स्कूल शिक्षा स्तर पर कम से कम दो भाषाएँ पढ़ाई जानी चाहिए। जूनियर बेसिक शिक्षा स्तर के अन्त में अंग्रेजी व हिन्दी पढ़ाई जानी चाहिए, परन्तु किसी भी एक वर्ष में दोनों भाषाएं शुरू नहीं करनी चाहिए। उच्च माध्यमिक स्तर पर कम से कम दो भाषाएँ पढ़ाई जानी चाहिए जिनमें से एक मातृभाषा जयनी क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए।

10. पाठ्यक्रम (Curriculum)

आयोग ने माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम के क्षेत्र को विस्तृत बनाने का सुझाव दिया। आयोग ने कहा कि पाठ्यक्रम छात्रों की सभी शक्तियों का विकास करने वाला हो। उसमें विविधता का समावेश हो, यह सामाजिक जीवन से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हों, पाठ्यक्रम के विषय एक दूसरे से सम्बन्धित हो, तया पह छात्रों को अवकाश के समय का सदुपयोग करना भी सिखलाएँ। पाठ्यक्रम निर्माण के मूलभूत सिद्धान्तों की चर्चा भी आयोग ने की।

11. पाठ्य-पुस्तकें (Text Books)

पाठ्यपुस्तकों के स्तर को ऊँचा करने तथा इनके लेखन व प्रकाशन आदि के लिए आयोग ने राज्य स्तरीय पाठ्यपुस्तक मंडल बनाने की सिफारिश की। आयोग ने पाठ्यपुस्तकों में जल्दी-जल्दी परिवर्तन करने को हतोत्साहित किया।


12. शिक्षण विधियाँ (Teaching Method)

आयोग ने कहा कि शिक्षण विधि का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं होना चाहिए वरन् मूल्यों, दृष्टिकोणों व कार्य आदतों का विकास करना भी होना चाहिए। शिक्षण को मौखिक व स्मरण से हटाकर उद्देश्यपूर्ण तथा वास्तविक परिस्थितियों पर आधारित बनाया जाना चाहिए। क्रिया विधि तथा प्रोजेक्ट विधि के सिद्धान्तों को अपनाना चाहिए। प्रत्येक स्कूल में अच्छे पुस्तकालय होने चाहिए।

13. अनुशासन (Discipline)

अनुशासन को बढ़ाने के लिए अध्यापक छात्र सम्पर्क, हाउस प्रणाली तथा छात्र परिषद को स्कूलों में लागू करना चाहिए।

14. धार्मिक व नैतिक शिक्षा (Religious and Moral Education) 

स्कूलों में धार्मिक शिक्षा स्वैच्छिक आधार पर दी जा सकती है।

15. पाठयेत्तर क्रियाएं (Extra-Curricular Activities)

पाठयेत्तर क्रियाओं को शिक्षा का एक अभिन्न अंग मानकर स्कूल में इनकी व्यवस्था की जानी चाहिए। सभी अध्यापकों को इन क्रियाओं में समय देना चाहिए।

16. परामर्श व निर्देशन (Guidance and Counselling)

शैक्षिक परामर्श व निर्देशन पर बल दिया जाना चाहिए। सभी स्कूलों में प्रशिक्षित परामर्शदाताओं की सेवाएँ धीरे-धीरे उपलब्ध करानी चाहिए।


17. स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education)

सभी राज्यों में विद्यालय चिकित्सा सेवा (School Medical Service) शुरू की जानी चाहिए। सभी छात्रों की चिकित्सा जाँच तथा तदनुसार उपचार किया जाना चाहिए।

18. अध्यापक (Teachers)

अध्यापक के वेतन तथा सेवाशतों में सुधार किया जाना चाहिए। उनके प्रशिक्षण की भी उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।

19. परीक्षा प्रणाली (Examination System)

परीक्षा सुधार की चर्चा करते हुए आयोग ने मूल्यांकन की नवीन अवधारणा को अपनाने, परीक्षा को वस्तुनिष्ठ बनाने, ग्रेड प्रणाली को प्रारम्भ करने तथा छात्रों के संचयी प्रगति-पत्र तैयार करने जैसी महत्वपूर्ण सिफारिशें की।

20. संगठन तथा प्रशासन (Organization and Administration)

आयोग ने प्रत्येक राज्य में ऐसा माध्यमिक शिक्षा परिषद (Board of Secondary Education) बनाने का सुझाव दिया जिसमें 25 से अधिक सदस्य न हों तथा शिक्षा निदेशक जिसका अध्यक्ष हो। परिषद की एक उपसमिति परीक्षा के कार्य को देखे। आयोग ने राज्य परिषदों के गठन का भी सुझाव दिया।


21. निरीक्षण (Inspection)

आयोग के विचार में निरीक्षक का मुख्य कार्य समस्याओं का अध्ययन करके सुझाव देना होना चाहिए। 

22. छात्र-संख्या (Number of Students) 

प्रत्येक कक्षा में 30 से 40 छात्र होने चाहिए। प्रत्येक स्कूल में 500 से 750 के बीच छात्र होने चाहिए।

23. अवधि (Duration)

वर्ष में कम से कम 200 कार्य दिवस होने चाहिए। प्रत्येक सप्ताह में कम से कम 45 मिनट के 35 कालांश होने चाहिए।

24. वित्त-व्यवस्था(Finance) 

आयोग की संस्तुतियों के अनुसार तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा के विकास के लिए औद्योगिक शिक्षा उपकर (Industrial Education Cess) लगाना चाहिए। केन्द्र को माध्यमिक व्यय का एक भाग वहन करना चाहिए। 


निष्कर्ष 

उपरोक्त के अवलोकन से स्पष्ट है कि माध्यमिक शिक्षा योजना माध्यामिक शिक्षा के दोषों को दूर करने तथा इसके स्तर को उन्नत बनाने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किये थे। इन सुझाने में कुछ को स्वीकार भी कर लिया गया। माध्यमिक शिक्षा की चहुँमुखी प्रगति में इस आयोग के सुझावों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसीलिए माध्यमिक शिक्षा आयोग को स्वतन्त्र भारत के शैक्षिक संवृत्त में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।

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