अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction)
अभिक्रमित अनुदेशन विद्यार्थियों द्वारा स्वतः शिक्षण एवं सीखने की विधि मानी जाती है। इसका विकास मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में किए गये प्रयोगों के आधार पर हुआ है। अमेरिका के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों प्रो. बी. एफ. स्किनर को इस विधि के प्रतिपादन का श्रेय जाता है। इस विधि का व्यक्तिगत शिक्षण में विशेष महत्त्व है।
अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ (Meaning of Programmed Instruction)
अभिक्रमित-अनुदेशन व्यक्तिगत अनुदेशन की वह प्रविधि है जिसमें पाठ्य-वस्तु को छोटे-छोटे पदों पर सीखने वाले अर्थात् छात्र को प्रस्तुत किया जाता है। वह सक्रिय रहता है तथा अपनी गति से पढ़कर सीखता जाता है। साथ ही सीखे हुए ज्ञान का परीक्षण भी करता जाता है कि उसने सही अथवा गलत ज्ञान प्राप्त किया है। इससे उसको सीखने में पुनर्बलन प्राप्त होता है।
परिभाषाएं
सुसन मारकल के अनुसार, अभिक्रमित अध्ययन अनुदेशन सामग्री को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करने की एक विधि है; जिसमें प्रत्येक छात्र में निरंतर अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाया जाता है तथा उसका मापन भी किया जाता है।
एस. एम. कोरे के अनुसार, अभिक्रमित अनुदेशन एक ऐसी शिक्षण प्रक्रिया है जिसमें बालक के वातावरण को सुव्यवस्थित कर पूर्व-निश्चित व्यवहारों को उसमें विकसित किया जाता है।
बी. एफ. स्किनर ‘अभिक्रमित अध्ययन या अधिगम शिक्षण की कला तथा सीखने का विज्ञान है।’
एस्पिक व विलियम्स ‘अभिक्रमित अनुदेशन अनुभवों की नियोजित श्रृंखला है जो उद्दीपक अनुक्रिया संबंध के संदर्भ में प्रभावी मानी जाने वाली दक्षता की ओर अग्रसर करती है।’
अभिक्रमित अध्ययन सामग्री की विशेषताएँ (Characteristics of Programmed Learn- ing Meterial) –
अभिक्रमित अध्ययन में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ देखी जा सकती हैं-
1. अभिक्रमित अध्ययन में पाठ्यसामग्री को छोटे-छोटे अंशों में विभाजित किया जाता है।
2. इन छोटे-छोटे अंशों को श्रृंखलाबद्ध किया जाता है।
3. अभिक्रमित सामग्री में प्रत्येक पद अपने आगे वाले पद से तार्किक क्रम में स्वाभाविक रूप से जुड़ा होता है।
4. सीखने वाले को सक्रिय सतत् प्रयास करने पड़ते हैं।
5. छात्रों को स्वगति से सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं।
6. छात्रों को तत्काल अपनी प्रगति के विषय में सूचना दी जाती है कि उनका प्रयास सही था या गलत। इस प्रकार तत्काल पृष्ठपोषण (Feedback) उन्हें मिलता रहता है।
7. इस प्रक्रिया में उद्दीपन, अनुक्रिया तथा पुनर्बलन में तीनों तत्व क्रियाशील रहते हैं।
8. अभिक्रमित अनुदेशन प्रक्रिया मनोवैज्ञानिक अधिगम सिद्धान्तों पर आधारित है।
9. अभिक्रमित सामग्री पूर्व-परीक्षित तथा वैध होती है।
10. अभिक्रमित अनुदेशन छात्रों की कमजोरियों तथा कठिनाइयों का निदान कर उपचारात्मक अनुदेशन की भी व्यवस्था करता है।
अभिक्रमित अधिगम के आधारभूत सिद्धान्त (Basic Principles of Programmed Learning) –
अभिक्रमित अधिगम के आधुनिक जन्मदाता बी. एफ. स्किनर (B. F. Skinner) ने निम्नलिखित पाँच सिद्धान्त बताये हैं-
1. लघुपदीय सिद्धान्त (Principle of Small Steps) –
इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षण सामग्री का विश्लेषण कर उसे छोटे-छोटे अर्थपूर्ण पदों या अंशों में विभक्त कर दिया जाता है तथा छात्र के समक्ष एक समय में एक छोटा पद या अंश ही प्रस्तुत किया जाता है जिससे वह उसे सरलतापूर्वक समझ सके। शिक्षण सामग्री के इस छोटे-छोटे पद या अंश को ‘फ्रेम’ (Frame) नाम से पुकारा जाता है।
2. सक्रिय अनुक्रिया सिद्धान्त (Principle of Active Response) –
सक्रिय अनुक्रिया सिद्धान्त का आशय है कि जिस पाठ्यवस्तु को विद्यार्थी ने अध्ययन किया था, उसे समझकर सक्रिय अनुक्रिया करना होता है जिससे यह ज्ञात हो सके कि वह सीखने के लिए कितना सक्रिय है अर्थात् छात्र को उत्तर देना रहता है।
3. तत्कालीन जाँच अथवा प्रतिपुष्टि का सिद्धान्त (Principle of Immediate Feedback or Confirmation)-
यह सिद्धान्त परिणाम या उत्तर की तात्कालिक जाँच पर आधारित है क्योंकि अभिक्रमित अधिगम सामग्री में सही उत्तर उपलब्ध रहता है जिसे देखकर अधिगमकर्ता अपने उत्तर की पुष्टि कर सकता है। सही उत्तर मिल जाने पर उसे आन्तरिक सन्तुष्टि एवं बल मिलता है जिससे क्रिया में तीव्रता आती है।
4. स्वगति का सिद्धान्त (Principle of Self-Pacing)-
अभिक्रमित अधिगम के अन्तर्गत विद्यार्थी का इसका पूर्ण अवसर प्रदान किया जाता है कि वह स्वयं अपनी गति के अनुसार सीख सके तथा उसे कक्षा के अन्य विद्यार्थियों के साथ चलने पर मजबूर नहीं किया जाता है। इस तरह यह विद्यार्थियों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ध्यान रखता है।
5. विद्यार्थी परीक्षण का सिद्धान्त (Principle of Student Testing)-
परीक्षण सिद्धान्त का आशय है कि इसके माध्यम से अधिगमकर्ता स्वयं अपनी गति से अपना परीक्षण सीखने की इस क्रिया में कर सकेगा, साथ ही यह भी जान जायेगा कि उसने कितना सीखा है तथा कितना सीखना अभी बाकी है जिससे उसे अपने उद्देश्य का पता रहे, क्योंकि शिक्षा जीवन की सतत् प्रक्रिया ही नहीं अपितु एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है। यह अभिक्रमित अधिगम के प्रयोग द्वारा अपनायी जा सकती है और इसके द्वारा हम सीखने व सिखाने की प्रक्रिया को बल प्रदान कर सकते हैं।
अभिक्रमित अनुदेशन की सीमाएँ (Limitations of Programmed Learning)
अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार
रेखीय अथवा बाह्य अभिक्रम(LINEAR OF EXTRINSIC PROGRAMMING)
बी. एफ. स्किनर को रेखीय शैली के प्रतिपादक के रुप में जाना जाता है। इसलिए इस शैली को स्किनर शैली भी कहते है। यह स्किनर द्वार प्रतिपादित क्रिया प्रसूत अनुबन्धन सिद्धान्त पर आधारित है।
एक रेखीय अभिक्रम में अनुदेशन सामग्री अथवा विषय-वस्तु को छोटे-छोटे विभिन्न सार्थक पदों या फ्रेमों में श्रृंखलाबद्ध कर दिया जाता है। इन पदों को व्यवस्थित क्रम में एक-एक करके अधिगमकर्ता के सामने रखा जाता है। अधिगमकर्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सक्रिय रुप से इन पदों के प्रति अपनी बाह्य अनुक्रिया व्यक्त करे।
अधिगमकर्ता जैसे ही किसी पद या फ्रेम के प्रति अपनी अनुक्रिया व्यक्त करता है वैसे ही उसे अपनी अनुक्रिया सही होने की सूचना मिल जाती है। इससे उसके व्यवहार को प्रोत्साहन अथवा पुनर्बलन मिलता है और वह अभिप्रेरित होकर दूसरे पद की विषयवस्तु को सीखने का प्रयास करता है।
इस प्रकार एक पद से दूसरे पद और दूसरे से तीसरे पर पहुँचता हुआ अधिगमकर्ता विषयवस्तु के सभी अभिक्रमित पदों सम्बन्धी अधिगम अनुभवों को ग्रहण करने में समर्थ बन जाता है और इस तरह प्रविष्ट व्यवहार से अपनी अधिगम यात्रा प्रारम्भ करते हुए वह इच्छित अन्तिम व्यवहार तक पहुँच जाता है।
शाखात्मक अथवा आंतरिक अभिक्रम
शाखात्मक अभिक्रम के विकास का श्रेय अमेरिकन मनोवैज्ञानिक नार्मन ए. क्राउडर को है।
इस प्रकार के अनुदेशन में अधिगमकर्ता को एक फ्रेम (पैराग्राफ) पढ़ने को कहा जाता है फिर एक प्रश्न पूछा जाता है। इस प्रश्न के कई उत्तर दिए जाते है जिनमें केवल एक उत्तर ही सही होता है। यदि विद्यार्थी सही उत्तर देता है तो उसे पढ़ने के लिए अगला फ्रेम (पैराग्राफ) दिया जाता है और यदि वह गलत उत्तर देता है तो उसे पुनः वही फ्रेम (पैराग्राफ) पढ़ना पड़ता है और पुनः उसी प्रश्न का उत्तर देना पड़ता है।
यदि बालक कोई गम्भीर त्रुटि करता है तो उसे उपचारात्मक निर्देश दिए जाते है। यह प्रक्रिया उस समय तक चलती रहती है, जब तक विद्यार्थी ठीक उत्तर नहीं दे देता। इस आंतरिक अभिक्रम अनुदेशन शैली में पदों का आकार बड़ा होता है और केवल बहुविकल्प प्रकार के परीक्षण रहते हैं।
मैथेटिक्स अभिक्रम या अवरोही (MATHETICS PROGRAMMING OR RETROGRESSIVE)
मैथेटिक्स का मौलिक प्रत्यय’ थॉमस एफ, गिलबर्ट’ (1962) ने दिया है। इन्होंने ‘मैथेटिक्स’ नामक एक पत्रिका प्रकाशित की थी और उसमें इस प्रत्यय का सर्वप्रथम उल्लेख किया था। मैथेटिक्स को यूनानी भाषा के शब्द ‘मैथीन’ (Methein) से लिया गया है जिसका अर्थ है-सीखना।
Methetics का अभिप्राय बताते हुए गिलबर्ट (Gilbert) ने कहा है- “अवरोही अभिक्रम जटिल व्यवस्था समूह विश्लेषण तथा पुनर्निर्माण के लिए पुनर्बलन के नियमों का व्यवस्थित प्रयोग है जो शिक्षण सामग्री के पूर्ण अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है।”
गिलबर्ट के कथन से ज्ञात होता है कि अवरोही अभिक्रम बालकों के उग्र, जटिल, क्लिष्ट व्यवहारों के अध्ययन में सहायक होती है, इसमें अधिगम विषयवस्तु का निर्धारण, बाह्य रचना की निर्माण प्रक्रिया आदि बातों का ध्यान रखा जाता है।
अवरोह अभिक्रमित अनुदेशन की प्रक्रिया (Process of Methetics Programming) –
उपर्युक्त के आधार पर अवरोह अभिक्रमित अनुदेशन की प्रक्रिया अग्र प्रकार व्यक्त की जा सकती है-
1. इसमें सर्वप्रथम नैपुण्य पद की तुलना की जाती है जो प्रायः श्रृंखला के अन्तिम पद के रूप में होता है।
2. इसके पश्चात् प्रोग्रामर छात्रों के समक्ष निपुणता प्राप्त कराने वाले सभी पद प्रस्तुत करता है तथा छात्रों को नैपुण्य पद से सम्बन्धित अनुक्रिया करने के लिए जरूरी अनुबोधन प्रदान करता है जिससे कि वे निपुणता के अन्तिम स्तर तक पहुँच सकें।
3. इसको बाद अन्तिम नैपुण्य पद तक पहुँचने से पूर्व अन्य सभी पदों को छात्रों के सामने रखा जाता है, छात्रों को अनुबोधन (Prompts) दिये जाते हैं; वे अनुक्रिया करते हैं फिर उन्हें नैपुण्य पद का अभ्यास करने के लिए कहा जाता है।
4. इसके बाद छात्रों के सामने अन्तिम नैपुण्य पद से ठीक पहले के पद से भी एक पद पूर्व तक ले जाने वाले पदों को प्रस्तुत किया जाता है।
5. इस प्रकार छात्र अनुक्रिया करते रहते हैं। सबसे अन्त में पहले पद के प्रति अनुक्रिया करनी पड़ती है। इस प्रकार धीरे-धीरे उल्टी तरफ से चलकर निपुणता प्राप्त की जाती है। इसे निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है-
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