धर्मनिरपेक्षीकरण
धर्मनिरपेक्षता आधुनिक एवं केन्द्रीय विचारधारा है जो सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों को तर्क एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित करते हुए धर्म के अवैज्ञानिक प्रभाव के उन्मूलन पर बल देती है । इस विचारधारा पर आधारित परिवर्तन की प्रक्रिया को धर्मनिरपेक्षीकरण के रूप में जाना जाता है।ब्रायन आर . विल्सन के अनुसार धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया परिवर्तन की ऐसी प्रक्रिया को इंगित करती है जिसके अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ धार्मिक अवधारणाओं की पकड़ या प्रभाव से बहुत हद तक मुक्त हो जाती हैं । इस तरह,
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत प्रतिदिन के जीवन पर धार्मिक नियंत्रण का कम होना , धार्मिक विश्वासों के प्रति विरोधात्मक स्थितियों का विकास और कर्मकाण्डीय प्रक्रिया का तर्क द्वारा स्थानापन्न किया जाना , शामिल किया जाता है ।
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के निम्नलिखित लक्षणों की चर्चा की जा सकती है ।
1- धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में विचार , स्वतंत्रता एवं तर्कयुक्त चिंतन पर जोर दिया जाता है ।
2 . इस प्रक्रिया के अंतर्गत अलौकिक एवं अधिप्राकृतिक सत्ता का विरोध तथा इहलौकिकता में विश्वास बढ़ता जाता है और लोग भौतिक जीवन की प्रगति में अधिक विश्वास करने लगते हैं।
3. इस प्रक्रिया के तहत जगत के अध्ययन एवं जीवन की समस्याओं के समाधान में धर्म के प्रति उदासीनता और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ती जाती है तथा मानव जीवन के अध्ययन एवं उनकी समस्याओं के समाधान हेतु तार्किक एवं वैज्ञानिक सिद्धांतों में विश्वास धार्मिक विश्वासों पर आच्छादित हो जाता है ।
4. इस प्रक्रिया का एक प्रमुख पहलू धर्म का धर्मनिरपेक्षीकरण है जिसके अंतर्गत सभी धर्म अपने सिद्धांतों व व्यावहारिक प्रक्रियाओं को अपने सदस्यों की बदलती आवश्यकताओं एवं समाज की बदलती स्थिति के अनुरूप ढाल लेते हैं । यूरोप में प्रोटेस्टेंटवाद का विकास या फिर आधुनिक धार्मिक संस्थाओं द्वारा आधुनिक अस्पतालों , धर्मनिरपेक्ष शिक्षण संस्थानों आदि का संचालन इस प्रक्रिया को परिलक्षित करते है।
धर्मनिरपेक्षीकरण का उद्भव एवं इसके कारण
धर्मनिरपेक्षता का उद्भव यूरोप के दैनिक जीवन में प्रभावी धर्म या चर्च के प्रभाव के उन्मूलन के रूप में हुआ माना जाता है । मध्यकाल का यूरोपीय समाज एक धर्म प्रधान समाज था और सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में धर्म का प्रभाव प्रबल था । 13 वीं 14 वीं सदी तक आते – आते धर्म और राज्य के बीच गठबंधन ने धर्म के अंतर्गत अनेक रूढ़ियों एवं कुरीतियों को विकसित किया जो राज्य और धर्म द्वारा किए जाने वाले शोषण को वैधता प्रदान करती थी । यूरोप के सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में धर्म के इसी प्रभाव के उन्मूलन के रूप में धर्मनिरपेक्षता एवं धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का उद्भव हुआ जिसके लिए निम्नलिखित घटनाओं को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है ।
1. पुनर्जागरण आंदोलन ने तर्कसंगत ज्ञान वृद्धि को संभव बनाया । फलतः , कला एवं ज्ञान के प्रति रूचि व तर्कसंगत खोज के साथ ही ज्ञान के क्षेत्र में पुनर्व्याख्या एवं आलोचना का दौर आरम्भ हुआ । छापेखाने के आविष्कार के कारण इन विचारों की जन सामान्य के लिए सरलता से उपलब्धता संभव हो सकी और धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया को बल मिला ।
2. यूरोप की वैज्ञानिक क्रांति ने तर्कसंगत , पद्धतिबद्ध तथा प्रयोगसिद्ध ज्ञान के महत्व में वृद्धि को संभव बनाया । फलतः , इस ज्ञान के आधार पर विश्व संबंधी पूर्व पारलौकिक व्याख्याओं एवं धारणाओं को चुनौती मिली जिससे धर्म के प्रभाव में कमी आयी । इस क्रांति से मनुष्य का विश्व और प्राकृतिक जगत के बारे में वस्तुनिष्ठ एवं तर्कसंगत ज्ञान में वृद्धि हुई और इस संदर्भ में धर्म पर निर्भरता में कमी आई ।
3. सोलहवीं सदी में ईसाई धर्म के अंतर्गत सुधार आंदोलन द्वारा ईसाई धर्म में विद्यमान मध्ययुगीन कुरीतियों को समाप्त करने व बाईबिल के अनुरूप सिद्धांतों तथा रीतियों के पुनर्स्थापना पर बल दिया गया तथा इन सिद्धांतों एवं रीतियों को प्रोटेस्टेंटवाद नाम दिया गया । प्रोटेस्टेंटवाद ने ईश्वर को व्यक्तिगत बना दिया और व्यक्तिगत सांसारिक क्रिया को ईश्वर की आस्था के प्रतीक के रूप में प्रोत्साहित करके धर्म को अधिकाधिक व्यावहारिक एवं तर्कसंगत बनाने का प्रयास किया ।
4. यूरोप में होने वाले व्यापार एवं वाणिज्य के विकास तथा औद्योगिक क्रांति के कारण मध्यमवर्ग का विकास संभव हुआ । इस मध्यमवर्ग ने अपने अस्तित्व को स्थापित करने की प्रक्रिया में धर्म आधारित परंपरागत विचारधारा एवं व्यवस्था का विरोध किया । साथ ही , औद्योगीकरण ने व्यक्ति को विवेकसम्मत आर्थिक क्रियाओं की ओर प्रेरित कर समाज को अधिकाधिक तर्कसंगत बनाने का प्रयास किया ।
5. ब्रायन विल्सन ने अपनी पुस्तक : साम्यवाद जैसी विचारधारा और ट्रेड यूनियन जैसे संगठनों के विकास को भी धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव के कारण के रूप में स्वीकार किया है । उन्होंने यह दर्शाया है कि इस विचारधारा और ऐसे संगठनों के विकास ने धार्मिक व्याख्याओं को चुनौती दी और समस्याओं का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करके तर्क संगत विचार और विश्वदृष्टि के विकास में सहायता पहुंचायी है । स्पष्ट है यूरोप में धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया एक लंबी , जटिल एवं ऐतिहासिक घटना है जो कई तत्वों का संयुक्त परिणाम रही है ।
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के समक्ष समकालीन चुनौतियाँ
हालाँकि धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया कभी भी निर्बाध नहीं रही है। परंतु अगर हाल के वर्षों के संदर्भ में इसे देखा जाए तो आज यह विश्व के लगभग सभी देशों में कई चुनौतियों का सामना कर रही है , जैसे –
1 . धार्मिक रूढ़िवाद और धार्मिक पुनरूत्थानवाद समकालीन विश्व की प्रमुख घटना है जो धर्मनिरपेक्षीकरण की विद्यमान प्रक्रिया के समक्ष प्रमुख चुनौती प्रस्तुत कर रही हैं । इन दोनों घटनाओं के तहत व्यक्ति अपने धर्म के प्रति अधिकाधिक केन्द्रित होता जा रहा है और निरंतर अपने मूल धार्मिक विश्वासों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास कर रहा है ।
2. वैश्वीकरणजनित पहचान के संकट ने लोगों को पहचान की तलाश में अपने धर्म की ओर उन्मुख किया है जिससे धार्मिक रूढ़िवाद निरंतर मजबूत हो रहा है ।
3. धर्म के आधार पर होने वाले साम्प्रदायिक तनाव , संघर्ष एवं दंगे भी धार्मिक भावनाओं को भड़का कर अपने धर्म के प्रति लोगों को अधिक रूढ़िवादी बना रहे हैं । इस संदर्भ में अगर देखा जाए तो भारत का हिंदू – मुस्लिम संघर्ष , इराक एवं पाकिस्तान का शिया – सुन्नी संघर्ष , 1990 का युगोस्लाविया संघर्ष , मध्यपूर्व में होने वाले इस्लाम , जुडाईज्म और ईसाइयत के बीच संघर्ष आदि ने भी धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया को बाधित किया है ।
4. वर्तमान में विभिन्न धार्मिक चैनलों की भरमार , धर्म संबंधी विश्वासों एवं मान्यताओं के बाजारीकरण आदि ने भी धर्म के प्रभाव में वृद्धि करके धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया को आहत किया है ।
5 . अगर पीटर बेयर के समकालीन अध्ययनों के संदर्भ में देखें तो धर्म के समकालीन प्रकार्यात्मक पक्षों ने भी धर्म के महत्व की निरंतरता को और धार्मिक विश्वासों को मजबूत बनाकर धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के समक्ष चुनौती प्रस्तुत की है । इजराइल , जापान , ईराक आदि देशों में राष्ट्रवाद के विकास के लिए धर्म का प्रयोग , लैटिन अमेरिका जैसे देशों में ‘ लिबरेशन थियोलॉजी ‘ द्वारा गरीबी उन्मूलन हेतु किया गया कार्य , ‘ धार्मिक पर्यावरण ‘ द्वारा पृथ्वी और इस पर रहने वाले जीवों की रक्षा हेतु किया गया प्रयास , वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के वर्तमान दौर में भावनात्मक संबंध प्रदान करने में धर्म की भूमिका , वैश्वीकरणजनित पहचान के संकट के समाधान में धर्म का महत्व धर्म के समकालीन प्रकार्यों को दर्शाते हैं जो धर्म की निरंतरता को बनाए रखने और धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया को बाधित करने में महत्वपूर्ण हैं।
आलोचनात्मक मूल्यांकन
स्पष्ट है समकालीन विश्व में धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया कई चुनौतियों का सामना कर रही है , बावजूद इसके यह प्रक्रिया सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से धर्म के प्रभावों के उन्मूलन एवं धर्म को अधिकाधिक वैयक्तिक घटना के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण रही है और इस रूप में इसने आधुनिक समाज के निर्माण को सम्पोषित किया है ।आज राज्य के दैवीय अधिकार के सिद्धांत को मान्यता प्राप्त नहीं है।विवाह एवं परिवार के निर्माण का उद्देश्य धार्मिक कर्तव्यों का पालन नहीं रह गया है । स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जागीर व्यवस्था या जाति व्यवस्था को वैधता प्रदान करने वाला धार्मिक आधार कमजोर हो गया है । स्पष्ट है समकालीन समाज पर धर्म का वैसा नियंत्रण नहीं रह गया है जैसाकि मध्ययुगीन समाज में विद्यमान था। आज हम संसार को रहस्यमयी धार्मिक विचारों के आधार पर परिभाषित नहीं करते हैं और प्रकृति एवं जीवन के बारे में तथा इसे संबंधित समस्याओं के समाधान के संदर्भ में वैज्ञानिक दृष्टि एवं तर्कयुक्त चिंतन पर जोर देते हैं । परंतु यह भी सत्य है कि धर्मनिरपेक्षीकरण की यह प्रक्रिया पूरे विश्व में समान रूप से नहीं उभरी है और अनगिनत नए धार्मिक आंदोलन ,आध्यात्मिक जीवन के नये स्वरूप तथा नए धार्मिक विचार पिछले कुछ दशकों में तेजी से उभरे हैं । जैसे – इस्कॉन , साईं बाबा , निरंकारी बाबा , डेरा सच्चा सौदा आदि । अतः निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया अनेक चुनौतियों के बावजूद समकालीन समाज में क्रियाशील है और धर्म के अतार्किक पक्षों का उन्मूलन करके तथा समाज में धर्मनिरपेक्षीकरण को संभव बनाकर आधुनिक समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण रहा है ।
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