रक्षात्मक युक्तियां का संप्रत्य मुलभूत रूप से सिगमण्ड फ्रायड ने दिया परन्तु उनकी पुत्री अन्ना फ्रायड व नव- फ्रायडिमन द्वारा फ्रायड के इस मुलभूत विचार को विस्तृत किया गया।
रक्षात्मक युक्तियों का तात्पर्य उन कार्यों से हैं जीने एक व्यक्ति अपने वातावरण से समायोजन के लिए अचेतन रूप से प्रयुक्त करता है ये सकारात्मक भी हो सकती हैं और नकारात्मक भी।
ये समस्या का समाधान नही करती हैं पर समस्या के स्वरूप को विकृत कर हमें चिंता से तुंरत राहत देती है और हमारे ‘अहम’ की रक्षा करती हैं जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
रक्षात्मक प्रक्रम का ज्यादा उपयोग आस्वस्थ मानसिकता की ओर संकेत करता है कुछ प्रमुख रक्षात्मक युक्तियों का विवरण निम्नांकित है:
1.युक्तिकरण (Rationalization):-
युक्तिकरण अर्थात सामान्य अर्थ में “बहाने बनाना”। किसी कार्य को करने का वह कारण बताना जो वास्तविकता से अलग है। इस प्रक्रम में व्यक्ति अपनी असफलताओं के लिए, सामाजिक रूप से अस्वीकारणीय व्यवहार के लिए, सामाजिक स्वीकार्य कारण देना। जैसे: एक छात्र परीक्षा में कम अंक आने पर कहता है कि हॉस्टल का वातावरण पढ़ने मे सहयोगी नहीं था।
2.प्रतिगमन (Regression):
प्रतिगमन अर्थात “पीछे की और लौटना” व्यवहार प्रतिगमन का तात्पर्य कम परिपक्व ढंग से व्यवहार करना है अगर एक व्यक्ति बालक की तरह व्यवहार करता है तो वह प्रतिगमन का प्रदर्शन करता हैं जब व्यक्ति जिंदगी में परेशानी व तनावपूर्ण अनुभवों से गुजरते है तो कम परिपक्व व्यवहार कर चिन्ता को कम करने का प्रयास करता है। किसी के कंधे पर सर रखकर रोना भी प्रतिगमन का ही उदारहण है।
3.प्रक्षेपण(Projection):
प्रक्षेपण अपनी कमियों, कमजोरियों को दुसरे व्यक्ति पर आरोपित करना हैं व स्वयं में उन कमियों के होने से इन्कार करना है अर्थात दूसरे लोगो या वातावरण के प्रति अपनी अमान्य प्रस्तुतियों, मनोवृत्तियों एवं व्यवहारों की अचेतन रूप से आरोपित करने की प्रक्रिया को प्रक्षेपण कहा जाता है। जैसे एक छात्र के फेल हो जाने पर किस अन्य बच्चे का उदहारण देता ।
4.विस्थापन (Displacement)
इस रक्षात्मक प्रक्रम में व्यक्ति अपनी भावनाओं को किसी वस्तु विशेष से हटाकर दूसरे व्यक्ति या वस्तु से संबंधित कर लेता है सामान्यतः ये भावनाएं अक्रामता से संबंधित होती है जैसे एक व्यक्ति जो अपने ऑफिस में अपने बॉस से नाराज होने पर अपना गुस्सा बॉस पर नोकरी छूट जाने के भय से नहीं उतार पाता है तो वहां खुद को नियंत्रित कर लेता है पर घर पहुंचने पर अपना गुस्सा अपनी पत्नि, बच्चों या नीकर पर उतार देता है।
5.नकारना (Denial) –
अगर कोई तथ्य या घटना हमारे लिए अत्यन्त अरूचिकर व कष्टप्रद होता है तो हम उसके अस्तित्व को ही मानने से इन्कार कर देते है इस प्रकार हम अपने को थोड़े समय के लिए तकलीफ से बचा लेते हैं। किसी प्रिय जन की मृत्यु, बीमारी की घटनाओं में अक्सर इस रक्षात्मक प्रक्रम का उपयोग होता है।
6.क्षतिपूर्ति (Compensation)
जब व्यक्ति किसी एक क्षेत्र में असफल होता है तो दूसरे क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर पहले क्षेत्र में अपने हार की क्षतिपूर्ति करता है इसे ही क्षतिपूर्ति रक्षात्मक युक्ति कहते है जैसे अगर एक बच्चा पढ़ाई में अच्छा नहीं पर खेलों में अच्छा प्रदर्शन कर उसकी क्षतिपूर्ती करता है। यह एक सकारात्मक प्रतिरक्षा है।
7.दिवास्वप्न (Fantasy or Day dreaming)-
जब व्यक्ति वास्तविक जीवन में अपनी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाता है तो वह अपनी काल्पनिक दुनिया बना कर थोड़ा आराम पाता है उदाहरणार्थ- कोई व्यक्ति पैसे की तंगी से गुजर होता है तो वह काल्पनिक रूप से सोच कर आराम पाता है कि जब उसके पास बहुत सारा धन होगा तो वह उसे कैसे खर्च करेगा यह युक्ति किशोरावस्था में अधिक देखने को मिलती है।
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