उपलब्धि/ सम्प्रति परीक्षण निर्माण के चरण | Construction of Achievement test in hindi

Spread the love

उपलब्धि/ सम्प्रति परीक्षण निर्माण के चरण | Construction of Achievement test in hindi


उपलब्धि परीक्षण निर्माण के चरण

सम्प्राप्ति परीक्षण के निर्माण की प्रक्रिया को चार मुख्य सोपानों में बांटा जा सकता है-

  • (1) परीक्षण की योजना बनाना (Planning the Test)
  • (2) प्रश्नों की रचना करना (Preparing the Items)
  • (3) प्रश्नों का चयन करना (Selecting the Items)
  • (4) परीक्षण का मूल्यांकन करना (Evaluating the Test)

1) परीक्षण की योजना बनाना (Planning the Test)

योजना बनाना परीक्षण निर्माण का प्रथम सोपान है। परीक्षण की योजना बनाने वाले इस प्रथम सोपान के अन्तर्गत परीक्षण से संबंधित अनेक निर्णय लिये जाते हैं। परीक्षण के लिए विषयवस्तु, शिक्षण उद्देश्यों, प्रश्नों के प्रकार, प्रश्नों की संख्या, समयावधि, अंकन विधि, परीक्षण का प्रारूप जैसी विभिन्न बातों को निर्धारित किया जाता है। 

परीक्षण की विषयवस्तु, शिक्षण उद्देश्य, प्रश्नों के प्रकार तथा प्रश्नों की संख्या को निश्चित किया जाता है । इसके उपरांत विशिष्टीकरण सारणी (Table of Specifications या Blue-Print तैयार की जाती है। विशिष्टीकरण सारणी में विषयवस्तु के विभिन्न प्रकरणों तथा शिक्षण उद्देश्यों को दिये जाने वाले भार (weight) को स्पष्ट किया जाता है।

उदाहरणार्थ-कक्षा आठ के विद्यार्थियों के लिए अंकगणित के उपलब्धि परीक्षण का निर्माण करने के लिए विशिष्टीकरण तालिका (ब्लूम की ज्ञानात्मक क्षेत्र की टेक्सोनोमी पर आधारित) को अग्रलिखित रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है-

उपलब्धि/ सम्प्रति परीक्षण निर्माण के चरण | Construction of Achievement test in hindi

2) प्रश्नों की रचना करना (Preparing the Items)

परीक्षण निर्माण का दूसरा सोपान प्रश्नों की रचना करना है। इस सोपान में परीक्षण निर्माण के प्रथम सोपान अर्थात परीक्षण की योजना के अन्तर्गत लिये गये निर्णयों को कार्यरूप दिया जाता है। 

दूसरे शब्दों में विशिष्टीकरण सारणी का अनुसरण करके प्रश्नों की रचना की जाती है। प्रश्नों के लिए निर्देश तैयार कर लिये जाते हैं। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि प्रश्नों तथा निर्देशों में प्रयुक्त भाषा व संकेत आदि छात्रों के स्तर के अनुरूप हों।

जितने प्रश्न अंतिम परीक्षण में रखने होते हैं, प्रायः उसके दो गुने प्रश्नों की रचना की जाती है। प्रश्नों की रचना करते समय पूर्ववर्ती परीक्षणों में सम्मिलित किये गये प्रश्नों से संकेत प्राप्त किये जा सकते हैं।

3) प्रश्नों का चयन करना(Selecting the Items)

परीक्षण निर्माण के द्वितीय सोपान के अन्तर्गत बनाये गये सभी प्रश्न उपयुक्त हों, यह आवश्यक नहीं है। इसलिए उन प्रश्नों में से अच्छे प्रश्नों का चयन किया जाता है। परीक्षण के अन्तिम रूप में केवल चयनित प्रश्नों को ही रखा जाता है। 

इसलिए परीक्षण निर्माण के तीसरे सोपान के अन्तर्गत प्रश्नों की विस्तृत जांच की जाती है, उनमें आवश्यक सुधार किया जाता है तथा केवल उपयुक्त प्रश्नों का चयन किया जाता है। इसीलिए इस सोपान को परीक्षण का जांच स्तर (Tryout Stage) भी कहा जाता है। 

परीक्षण की जांच के दो स्तर प्रारम्भिक जांच स्तर (Pre- tryout Stage) तथा वास्तविक जांच स्तर (Tryout Stage) होते हैं –

प्रारम्भिक जांच स्तर में परीक्षण की भाषा संबंधी त्रुटियों व भ्रान्तियों को दूर किया जाता है। इसके लिए परीक्षण की कुछ प्रतियां तैयार कर ली जाती हैं तथा इन्हें व्यक्तिगत रूप से छात्रों पर प्रशासित किया जाता है। छात्रों के द्वारा इंगित की गई कठिनाईयों अथवा अस्पष्टताओं के आधार पर कुछ प्रश्नों को परीक्षण से निकाल दिया जाता है, कुछ में संशोधन किया जाता है तथा शेष को यथावत् रखा जाता है। कभी-कभी विशेषज्ञों से भी परीक्षण के ऊपर उनके विचार व सुझाव आमंत्रित किये जाते हैं, जिससे परीक्षण में सुधार किया जा सके।

वास्तविक जांच स्तर के अन्तर्गत परीक्षण के विभिन्न पदों की तकनीकी विशेषताओं को ज्ञात किया जाता है तथा इन तकनीकी विशेषताओं के आधार पर प्रश्नों को चयनित किया जाता है, संशोधित किया जाता है अथवा अस्वीकार कर दिया जाता है। प्रश्नों की तकनीकी विशेषताएं ज्ञात करने के लिए पद विश्लेषण (Item analysis) नामक प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है। पद विश्लेषण के आधार पर प्रश्नों का चयन अथवा प्रश्नों को स्वीकार/अस्वीकार किया जाता है।

4) परीक्षण का मूल्यांकन करना (Evaluating the Test)

परीक्षण निर्माण का चतुर्थ व अंतिम सोपान परीक्षण का मूल्यांकन करना है। पद विश्लेषण के आधार पर अन्तिम रूप से चयनित प्रश्नों को परीक्षण के रूप में व्यवस्थित कर लिया जाता है। इस प्रकार में परीक्षण का अंतिम प्रारूप तैयार हो जाता है। इस परीक्षण की तकनीकी विशेषताओं तथा विश्वसनीयता, वैधता तथा मानकों को सुनिश्चित किया जाता है। 

साधारणतः 80 से अधिक विश्वसनीयता गुणांक वाले परीक्षण को एक अच्छे परीक्षण के रूप में स्वीकार किया जाता है। परीक्षण के उद्देश्य के आधार पर परीक्षण की वैधता भी सुनिश्चित की जाती है।

सम्प्राप्ति परीक्षण के लिए साधारणतः पाठ्यवस्तु वैधता को स्थापित करते हैं। परीक्षण पर प्राप्त अंकों की व्याख्या के लिए मानक ज्ञात किये जाते हैं। सम्प्राप्ति परीक्षण के लिए प्रायः कक्षा मानकों या शतांशीय मानकों या प्रमापीकृत प्राप्तांक मानकों की गणना परीक्षण निर्माता करता है।

परीक्षण निर्माता का अन्तिम कार्य परीक्षण निर्देशिका को तैयार करना है। परीक्षक निर्देशिका (Test Manual) में परीक्षण के निर्माण से सम्बन्धित जानकारी रहती है। परीक्षण का उद्देश्य, मापी जाने वाली योग्यता की परिभाषा, विशिष्टीकरण तालिका, पद विश्लेषण के आंकड़े, प्रशासित करने व अंकन करने की विधियां, विश्वसनीयता, वैधता तथा मानक आदि का वर्णन परीक्षण निर्देशिका में किया जाता है। परीक्षण निर्देशिका की सहायता से अन्य व्यक्ति परीक्षण के सम्बन्ध में विभिन्न सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं तथा आवश्यकतानुसार उसका उपयोग कर सकते हैं।

Read also 

इतिहास शिक्षण की विधियां


Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top