सामाजिक अध्ययन के शिक्षण हेतु यह एक सक्रिय विधि है। जानकारी अथवा ज्ञान प्राप्ति हेतु हम साधन, स्रोतों की सहायता लेते हैं, जो हमें अपनी परिस्थिति विशेष में प्राप्त हो। जिसकी सहायता से हमें ज्ञान अथवा सूचना की प्राप्ति हो उसे ही स्रोत विधि कहा जाता है।स्रोत भूतकालीन घटनाओं के द्वारा छोडे गये शेष चिन्ह हैं। इस विधि के अनुरूप विद्यार्थी विभिन्न स्रोत साधनों के द्वारा सामाजिक अध्ययन को सही प्रकार से समझ पाते हैं जिसमें शामिल है-जीवनी, ऐतिहासिक काल, सिक्के, धातु, पत्थर इत्यादि।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की विषय सामग्री के प्रस्तुतीकरण एवं शिक्षण अधिगम हेतु स्रोतों का अध्ययन सामाजिक अध्ययन में शिक्षक द्वारा किया जाता है।
इतिहास में घटित भूतकालीन घटनाओं को जानने हेतु विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक साक्ष्यों तथा स्रोतों की आवश्यकता होती है जो निम्न प्रकार से हैं-
1. पुरातात्विक स्त्रोत – पुरातत्व विज्ञान प्राचीन इतिहास के योगदान हेतु अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके अन्तर्गत प्राचीन ऐतिहासिक जानकारी ऐतिहासिक शिलालेखों के द्वारा प्राप्त की जा सकती है। स्रोतों के रूप में लिखित अथवा मुद्रित सामग्री जैसे, पांडुलिपियों, आज्ञा पत्र, दस्तावेजों, जीवन गाथाओं, आत्मकथा, वंशावली, धार्मिक, लौकिक इत्यादि शामिल हैं।
2. साहित्य स्त्रोत: साहित्यिक स्रोत तीन प्रकार हैं-
(1) धार्मिक साहित्य धार्मिक साहित्यों में वेद, काव्य, पुराण, बौद्ध साहित्य, जैन साहित्य, धर्म शास्त्र, कुरान इत्यादि शामिल हैं।
(2) लौकिक साहित्य इस साहित्य में कविता, उपन्यास, नाटक, कला, जीवनी, आत्मकथा, भविष्य इत्यादि शामिल होते हैं। इनके द्वारा मानव के जीवन की सामाजिक सांस्कृतिक एवं आर्थिक जानकारी मिलती है।
(3) विदेशी साहित्य – विदेशी इतिहासकारों ने भी विभिन्न देशों के इतिहास के बारे में लिखा है जिससे विभिन्न देशों की सांस्कृतिक, राजनैतिक, सामाजिक जानकारी मिलती है। इन इतिहासकारों में फाह्यान, मेगस्थनीज, ह्वेनसांग तथा अलबरुनी इत्यादि शामिल हैं।
3. वस्तु या सामग्री संबंधी स्त्रोत- इनके अन्तर्गत विभिन्न स्थानों पर खुदाई करने से प्राप्त अवशेष, मूर्तियां, ताम्रपत्र लेख, सिक्के, यंत्र, पत्थर, शिलालेख इत्यादि शामिल हैं।
स्त्रोत विधि के लाभ (Meris of source Method)
1. यह विधि विद्यार्थियों के ऐतिहासिक शोध के लिए उपयोगी है।
2. यह विधि प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थियों हेतु उपयुक्त हो सकती है।
3. यह विधि विद्यार्थियों में विचारों को एकत्रित करना, तुलना करना एवं उसका विश्लेषण करना सिखाती है।
4. यह विधि सक्रियता तथा विचार के भावों को विकसित करती है।
5. सामाजिक अध्ययन को अच्छी तरह से समझने हेतु विश्वसनीय जानकारी आसानी से प्राप्त हो जाती है।
6. स्रोत विधि के द्वारा हम भूतकाल में हुई घटनाओं के बारे में जान सकते हैं तथा उन्हें समझ सकते हैं।
7. यह उपयोगी मानवीय क्रियाशीलता प्रदान करती है जैसे मानसिक अभ्यास, कल्पनाशील तथा विचार इत्यादि। ये क्रियाएँ केवल पुस्तकों द्वारा विकसित नहीं हो सकती हैं।
स्रोत विधि के दोष (Demerits of Source Method) –
(i) प्राचीन अवशेषों को एकत्रित करना बहुत मुश्किल है। इससे समय, शक्ति व धन का अपव्यय होता है।
(ii) स्रोत संदर्भ विधि का उपयोग उच्च कक्षाओं में ही अधिक उपादेय होता है,छोटी कक्षाओं में नहीं।
(iii) यह विधि कुशाग्र बुद्धि के बालकों के लिये ही उपयुक्त है। सामान्य मन्द बुद्धि के बालकों के लिये इसका प्रयोग व्यावहारिक नहीं है।
iv) इस विधि के लिये विशेषज्ञ अध्यापकों की आवश्यकता होती है, विद्यालय स्तर पर इनका अभाव रहता है इस कारण इसका प्रयोग संदिग्ध है।
(v) यह विधि समय अधिक लेती है इस कारण पाठ्यक्रम पूर्ण नहीं हो पाता है।