परिचय –
डॉ. एम. एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज में परिवर्तन की प्रक्रियाओं का अध्ययन करने हेतु संस्कृतीकरण एवं पश्चिमीकरण की अवधारणाओं को प्रस्तुत किया। इसे इस दिशा में प्रथम व्यवस्थित प्रयत्न माना जा सकता है।
डॉ. श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण शब्द का प्रयोग उन परिवर्तनों को प्रकट करने के लिए किया है जो भारत में 19वीं व 20वीं शताब्दी में अंग्रेजी शासन काल की अवधि में हुए।
पश्चिमीकरण – अर्थ
पश्चिमीकरण से तात्पर्य पश्चिम देशों विशेषकर ब्रिटिशों के संपर्क से आरंभ हुए परिवर्तनों और प्रभावों की श्रृंखला हैं जो गैर पश्चिम देशों विशेषकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों जैसे भाषा, धर्म , प्रद्यौगिकी, विज्ञान, राजनीति,आर्थिक, संस्कृति और मूल्य आदि में दिखाई देता है।
परिभाषा
डॉ. श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक “Social change in Modern India” में पश्चिमीकरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है, “150 वर्षों के अंग्रेजी राज के फलस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों के लिए मैंने ‘पश्चिमीकरण’ शब्द का प्रयोग किया है और यह शब्द प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, वैचारिक मूल्यों, आदि विभिन्न स्तरों पर होने वाले परिवर्तनों का समावेश करता है।”‘
लिंच (Lynch) के अनुसार “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक, खान-पान, तौर-तरीके, शिक्षा, विधियां और खेल, मूल्यों, आदि को सम्मिलित किया जाता है।”
पश्चिमीकरण की विशेषताएं (लक्षण) (CHARACTERISTICS OF WESTERNIZATION)
श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की निम्नांकित विशेषताओं का उल्लेख किया है:
(1) नैतिक रूप से तटस्थ
पश्चिमीकरण नैतिक रूप से तटस्थ अवधारणा है, अर्थात् यह धारणा यह नहीं बताती कि पश्चिम के प्रभाव के कारण भारत में होने वाले परिवर्तन अच्छे हैं या बुरे। यह तो केवल परिवर्तनों को बतलाती है, अच्छाई व बुराई के मूल्यों से यह अवधारणा स्वतन्त्र है।
(2) एक व्यापक अवधारणा
पश्चिमीकरण एक व्यापक अवधारणा है जिसमें भौतिक और अभौतिक संस्कृति से सम्बन्धित सभी परिवर्तन आ जाते हैं। इसके अन्तर्गत पश्चिम के प्रभाव के कारण उत्पन्न होने वाले वे सभी परिवर्तन आ जाते हैं जो प्रौद्योगिकी, धर्म, परिवार व जाति, राजनीति, प्रथाओं, आदर्शों, विश्वासों, मूल्यों, फैशन, खान-पान, रहन-सहन, यातायात एवं संचार, कला, साहित्य, शिक्षा, न्याय, प्रशासन एवं अन्य संस्थाओं में घटित हुए हैं।
(3) एक वैज्ञानिक अवधारणा
पश्चिमीकरण की अवधारणा चूंकि मूल्य की दृष्टि से एक तटस्थ अवधारणा है, अतः यह वैज्ञानिक अवधारणा है। इसके द्वारा हम किसी भी समाज में घटित होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण कर सकते हैं।
(4) अनेक प्रारूप
पश्चिमीकरण के हमें अंग्रेजी, अमरीकी, रूसी और विभिन्न यूरोपीय देशों के प्रारूप या आदर्श देखने को मिलेंगे। सभी प्रारूपों में कुछ तत्व तो समान रूप से पाये जाते हैं। चूंकि अंग्रेजों ने ही भारतीयों को पश्चिमी संस्कृति के विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं भौतिक पक्षों से परिचित कराया, अतः भारत में अंग्रेजी आदर्श ही विद्यमान हैं, यद्यपि वर्तमान में अमरीकी और रूसी प्रारूप भी प्रभावशाली होते जा रहे हैं।
(5) जटिल तथा बहुस्तरीय प्रक्रिया
श्रीनिवास कहते हैं कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है जिसका प्रभाव सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, प्रौद्योगिकी एवं अन्य स्तरों पर देखा जा सकता है।
(6) चेतन और अचेतन प्रक्रिया
पश्चिमीकरण का प्रभाव भारतीय समाज पर चेतन और अचेतन दोनों ही प्रकार से पड़ा है। कई पश्चिमी तत्वों को तो हम जान-बूझकर प्रयत्नपूर्वक ग्रहण करते हैं और कई हमें अप्रत्यक्ष तथा अचेतन रूप से प्रभावित करते हैं और वे हमारे व्यवहार तथा दैनिक जीवन के अंग बन जाते हैं।