आनुवंशिकता और पर्यावरण का शिक्षा में महत्व
आनुवंशिकता और पर्यावरण के परस्पर पूरक होने के तथ्य का शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। आधुनिक शिक्षा मनोवैज्ञानिक व्यवहारवादी वाटसन के इस माह की नहीं मानता कि आवश्यक पर्यावरण देकर किसी भी बालक को कुछ भी बताया जा सकता है। दूसरी और, शिक्षा मनोविज्ञान में यह भी नहीं माना जाता कि बालक का विकास उसकी आनुवंशिकता से ही निश्चित होता है। आधुनिक विद्यालयों में मानसिक परीक्षणों के द्वारा बालक की योग्यताओं का पता लगाकर उसे उनके अनुरूप शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन दिया जाता है। भिन्न-भिन्न बालकों के आनुवंशिक गुणों का अध्ययन करके उनको शिक्षा के लिए विशिष्ट प्रकार का वातावरण दिया जाता है। अतः सफल शिक्षक के लिए आवश्यक है कि वह आनुवंशिकता और पर्यावरण के महत्व और परस्पर सम्बन्ध से भली प्रकार परिचित हो। तभी वह बालकों को उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार व्यक्तिगत रूप से शिक्षा दे सकता है। स्थूल रूप से आनुवंशिकता और पर्यावरण के ज्ञान से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:
(1) आनुवंशिकता के ज्ञान से शिक्षक मूल प्रवृत्तियों, संवेगों और स्थायी भावों में उचित परिवर्तन ला सकता है और चरित्र निर्माण में सहायक हो सकता है।
(2) पर्यावरण के महत्य को जानकार शिक्षक विद्यालय के स्वस्थ वातावरण का निर्माण कर सकता है।
(3) आनुवंशिकता के समानता, परिवर्तन और प्रत्यागमन के नियम शिक्षक को विद्यार्थियों के गुण-दोषों को समझने में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए, इन नियमों से वह यह समझ लेता है कि अच्छे माता-पिता की सन्तान कभी अच्छी और कभी बुरी क्यों होती है अथवा बुद्धिमान की सन्तान बुद्धिहीन हो सकती है। इससे न तो वह अनावश्यक रूप से बालकों की भर्त्सना करता है और न व्यर्थ की आशाएँ पालता है। बालकों को आनुवंशिकता के नियम बतलाकर वह उन्हें भावना ग्रन्थियों का शिकार होने से रोक सकता है।
(4) आनुवंशिकता के ज्ञान से शिक्षक को विद्यार्थियों की व्यक्तिगत विभिन्नताएं और उनकी सीमाओं तथा परिवर्तन के नियमों को समझने में सहायता मिलती है, जो शिक्षा की प्रक्रिया की मूल आधार है।
(5) बालक के विकास में उसके परिवार, पड़ौस, तथा स्कूल और खेल के मैदान के पर्यावरण के महत्व को समझकर शिक्षक न केवल उसके विकास में योगदान दे सकता है बल्कि विकास सम्बन्धी समस्याओं को सुलझा भी सकता है।
(6) आनुवंशिकता और पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान से शिक्षक को शिक्षार्थी में विषमायोजन सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाने में सहायता मिलती है।
(7) मानव विकास पर पर्यावरण के प्रभाव को जानकर शिक्षक कक्षा और विद्यालय में ऐसा वातवारण बना सकता है, जिससे बालकों में उच्च चरित्र और सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास हो। आधुनिक शिक्षक इस सम्बन्ध में घर का वातावरण अच्छा बनाने के लिए संरक्षकों को भी परामर्श देता है।
(8) आधुनिक विद्यालयों में विद्यार्थी के विकास के लिए आनुवंशिकता और पर्यावरण दोनों की ओर ध्यान दिया जाता है। विभिन्न प्रकार के परीक्षणों के द्वारा विद्यार्थी की योग्यताओं की परीक्षा करके उनको उनमें सर्वोत्तम विकास के अनुकूल पर्यावरण दिया जाता है।
संक्षेप में, शिक्षक को विद्यालय के प्रत्येक बालक की आनुवंशिकता और परिवार तथा पड़ोस के पर्यावरण का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। इससे वह उसकी कठिनाइयों को समझ सकेगा, उसके दोषों का उपचार निकाल सकेगा और विद्यालय में ऐसा वातावरण निर्माण कर सकेगा, जिससे कि सर्वांगीण विकास का तथा शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।