शैक्षिक तकनीकी के प्रकार | Shaikshik takneeki ke prakar B.Ed notes

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शैक्षिक तकनीकी के प्रकार

शैक्षिक तकनीकी को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है

व्यवहार तकनीकी

अनुदेशन तकनीकी

शिक्षण तकनीकी

अनुदेशन की रूपरेखा

व्यवहार तकनीकी

व्यवहार तकनीकी शैक्षिक तकनीकी का एक महत्वपूर्ण भाग है व्यवहार तकनीकी शिक्षण में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों एवं उपाय के प्रयोग पर बोल देती है जिससे छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन ले जा सके व्यवहार तकनीकी का कार्य क्षेत्र शिक्षक के कक्षा व्यवहार का अध्ययन निरीक्षण विश्लेषण एवं मूल्यांकन करना है तथा इसमें शिक्षक के व्यवहार को प्रभावशाली बनाने हेतु अनेक प्रकार की शिक्षण विधियां को जैसे अभिक्रमित अनुदेशन शिक्ष में शिक्षक आदि को अपनाया जाता है

व्यवहार तकनीकी के क्षेत्र में बीएफ स्किनर सिलेंडर जैसे सुप्रसिद्ध व्यवहार वादी मनोवैज्ञानिकों का विशेष योगदान है इस प्रशिक्षण तकनीकी के नाम से भी जाना जाता है

अनुदेशन तकनीकी

शैक्षिक तकनीकी में अनुदेशनात्मक तकनीकी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है इसमें शिक्षक सिद्धांत शिक्षक प्रारूप शिक्षक व्यवहार के सिद्धांत अभिक्रमित अधिगम को सम्मिलित किया जाता है इस प्रकार अनुदेसनात्मक तकनीकी शैक्षिक लक्षण की प्राप्ति के लिए उपस्थित सिद्धांत का समूह है यह सिद्धांत अधिगम की परिस्थितियों पर लागू होते हैं

शिक्षण तकनीकी

शिक्षक एक स्वदेश प्रक्रिया है इसका मुख्य उद्देश्य छात्र का सम्मान गीत विकास करना है जो छात्र तथा शिक्षा की अंतर क्रिया द्वारा संपन्न होती है शिक्षक के प्रमुख दो तत्व होते हैं पाठ्यवस्तु तथा संप्रेषण शिक्षण तकनीकी के अंतर्गत पाठ्यवस्तु तथा संप्रेषण दोनों तत्वों को सम्मिलित किया जाता है इस प्रकार शिक्षण तकनीकी के अंतर्गत व्यवहार व अनुदेशन दोनों तकनीकी सम्मिलित है इस तकनीकी को विकसित करने में हरबर्ट मॉरिसन ब्रूनर ग्लेशियर आदि का महत्वपूर्ण योगदान


अनुदेशन की रूपरेखा

शिक्षक के संपूर्ण प्रक्रिया में अनुदेशन के रूपरेखा अपना विशेष महत्व रखती है कुछ वर्षों पूर्व तक शिक्षण में केवल सीखने के सिद्धांतों एवं उसने उसके कक्षा में प्रयोग पर बोल दिया जाता था किंतु उसे उपलब्धि की प्राप्ति संभव नहीं हो रही थी अतः मनोवैज्ञानिकों ने शिक्षक की प्रयुक्त परिस्थितियों के कार्यों की निश्चित रूपरेखा एवं नवीन उपागमों पर बल देने की आवश्यकता अनुभव की शैक्षिक तकनीकी की वह शाखा जो शिक्षक की परिस्थितियों कार्यों की रूपरेखा व नवीन उपागम की ओर संकेत करती है अनुदेशन के प्रारूप कहलाती है


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