दुर्खीम का आत्महत्या का सिद्धांत | Durkhiem ka aatmahatya ka siddhant

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दुर्खीम का आत्महत्या का सिद्धांत | Durkhiem ka aatmahatya ka siddhant

दरखायम ने आत्महत्या संबंधी अपने संपूर्ण अध्ययन को अपनी पुस्तक Suicide : A study in sociology (1897) में प्रस्तुत किया। इसके अध्ययन के लिए उन्होंने ग्यारह देशों यानी इटली, बेल्जियम, इंग्लैंड, नार्वे, आस्ट्रिया, स्वीडन, बेवरिया, फ्राँस, प्रशा, डेनमार्क एवं सेक्सोनी से आत्महत्या संबंधी आँकड़ों को संग्रहित किया।

दुर्खीम ने आत्महत्या से संबंधित पूर्व-प्रचलित सभी सिद्धांतों का खण्डन किया है और बतलाया है कि आत्महत्या एक सामाजिक तथ्य है। जीववैज्ञानिकों, चिकित्सकों एवं मनोवैज्ञानिकों के इस निष्कर्ष को, कि बहुत से लोग मानसिक कारण से आत्महत्या कर लेते हैं, दुर्खीम ने स्वीकार नहीं किया है। इनके अनुसार आत्महत्या एक मनोवैज्ञानिक घटना नहीं हैं, बल्कि आत्महत्या एक सामाजिक तथ्य है क्योंकि इसके कारण समाज में ही उपस्थित होते हैं और इसका विश्लेषण भी सामाजिक तथ्य के आधार पर किया जाना चाहिए।

दुर्खीम ने आत्महत्या का अध्ययन करने एवं इसके लिए एक विशेष सिद्धांत प्रतिपादित करने के उदेश्य से मोनोग्राफिक आंकड़ों का सहारा लिया और सैनिक, असैनिक, विवाहित, अविवाहित, यहूदी, प्रोटेस्टेंट, कैथोलिक एवं स्वतंत्र विचारकों की आत्महत्या का तुलनात्मक अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला व कि ‘आत्महत्या एक सामाजिक घटना है जिसका मूल कारण वं सामाजिक तथ्य है।’ अपने समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के आधार व पर दुर्खीम ने कहा कि समूह कुछ ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न न करता है जिसके प्रभाव से विवश होकर व्यक्ति आत्महत्या कर न लेता है। यदि, स्त्रियां पुरूषों की अपेक्षा कम आत्महत्या करती हैं तो इसलिए कि वे सामूहिक जीवन में पुरूषों की अपेक्षा कम भाग लेती हैं। दुर्खीम ने पाया कि स्वतंत्र विचारकों में सामूहिकता का अभाव पाया जाता है, इसलिए उनमें आत्महत्या की दर अधिक होती है। स्पष्टतः, दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या व्यक्तिगत कार्य नहीं बल्कि एक सामाजिक घटना है और इसका मूल कारण सामाजिक तथ्य है।

आत्महत्या के प्रकार – 

दुर्खीम ने एकीकरण और नियंत्रण के आधार पर आत्महत्या को चार भागों में बांटा है जिसके मूल में सामाजिक तथ्य हैं। दुर्खीम के अनुसार ये चार तरह की आत्महत्याएं क्रमशः है – 

  1. अहंवादी आत्महत्या, 
  2. परार्थवादी आत्महत्या  
  3. आदर्शविहीन आत्महत्या
  4. भाग्यवादी आत्महत्या 


1.अहमवादी आत्महत्या [egoistic suicide]: 

ऐसे समूह जिनमें व्यक्ति अधिक स्वतंत्र होता है एवं समूह से बहुत जुड़ा एवं संबद्ध नहीं होता है उनमें अहमवादी आत्महत्या होती है। दरखायम ने कहा प्रोटेस्टेंट धर्म के लोग, कुँआरे लोग, बिना बाल बच्चे वाले लोग ऐसी आत्महत्या करते हैं।


2.पराअहंवादी आत्महत्या [altruistic suicide]: 

संबद्धता, एकजुटता और एकीकरण की अधिकता से ऐसी आत्महत्या होती है। दरखायम के अनुसार ऐसे लोग जो समूह और समाज से बहुत जुड़े हैं जब उन्हें लगता है कि उन्होंने समूह और समाज के प्रति अन्याय या असम्मान किया है अथवा उनके कारण असम्मान हो सकता है तब वे पराअहमवादी आत्महत्या करते हैं।

3.आदर्शहीनता या एनॉमी आत्महत्या [anomique suicide]: 

एनॉमी की आत्महत्या उस समय होती है जब समाज की नियंत्रणकारी शक्तियाँ बिखर जाती हैं। ऐसे बिखराव के कारण व्यक्ति असंतुष्ट हो जाता है क्योंकि अपनी इच्छाओं पर उसका नियंत्रण नहीं होता है। समाज के नियंत्रण की क्षमता का अभाव सकारात्मक भी है जैसे जब समृद्धि होती है अथवा फीलगुड होता है और नकारात्मक भी है जैसे राजनैतिक नियंत्रण घट जाने से लोग असुरक्षित अनुभव करने लगते हैं। इन दोनों ही स्थितियों में आत्महत्या की दर बढ़ जाती है। जैसे – सूखा, भुखमरी के कारण होने वाली आत्महत्या, किसानों द्वारा की गई आत्महत्या।


4.भाग्यवादी आत्महत्या [fatalistic suicide]: 

दरखायम ने इसकी बहुत कम चर्चा की है। इसके बिना उनका फार्मूला संपूर्णतः प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। ऐसी आत्महत्या उस समय होती है जब नियंत्रण बहुत अधिक होता है। दरखायम ने कहा ऐसे व्यक्ति जो अपनी अवस्था से मुक्ति चाहते हैं परंतु गंभीर अनुशासन के कारण असहाय होते हैं, आत्महत्या करते हैं। जैसे – गुलामों द्वारा या जेल कैदी द्वारा की गई आत्महत्या।


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