इस लेख में हम मूल्य शिक्षा की अवधारणा, आवश्यकता ,उद्देश्य और मूल्यों के प्रकार|Value Education Concept, Need Aims and Types of values in Hindi के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे। मूल्य शिक्षा का अर्थ, मूल्य शिक्षा की विशेषताएं, मूल्य शिक्षा का उद्देश्य, मूल्य शिक्षा की आवश्यकता और मूल्य के प्रकार के बारे में जानेंगे।
यह लेख Allahabad University के B.A Education Notes in Hindi के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी होगा। इसमें exam oriented notes दिए जा रहे। इसलिए लेख को पूरा पढ़े ।
मूल्य शिक्षा की अवधारणा, आवश्यकता ,उद्देश्य और मूल्यों के प्रकार|Value Education Concept, Need Aims and Types of values in Hindi
मूल्य शिक्षा की अवधारणा (Concept of Value Education)
मूल्य शिक्षा (Value Education) का अभिप्राय ऐसी शिक्षा से है जिसमें मूल्यों पर बल दिया जाता है। इसके अन्तर्गत शिक्षा प्रणाली का संगठन इस प्रकार किया जाता है कि उसके सभी अंग, यथा-उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, शिक्षक आदि मूल्यों के संवर्द्धन में योगदान कर सकें। इसमें विभिन्न विषयों को मूल्यपरक बनाकर उनके माध्यम से विभिन्न मूल्यों को छात्रों के व्यक्तित्व में समाहित करने पर बल दिया जाता है। इसमें शिक्षण विधि को इस प्रकार संयोजित किया जाता है कि छात्रों के व्यक्तित्व, व्यवहार एवं आचरण में मूल्यों को समाहित किया जा सके। ‘मूल्य शिक्षा’ व्यक्ति को इस प्रकार विकसित करती है कि वह ‘चिन्तन, अनुभूति और क्रियात्मकता’ से उचित एवं नैतिक बन सके अर्थात् उसका चिन्तन, अनुभूति और कार्य सही दिशा में विकसित हो।
मूल्य शिक्षा को निम्नलिखित दो अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है यथा-
(1) मूल्यों की शिक्षा तथा
(2) मूल्यपरक शिक्षा (Value Education)
(1) मूल्यों की शिक्षा (Value of Education)- मूल्यों को शिक्षा के अन्तर्गत हम नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों आदि की शिक्षा इतिहास, भूगोल, गणित, रसायनशास्त्र तथा भौतिकशास्त्र आदि विषयों की शिक्षा की भाँति एक स्वतन्त्र विषय के रूप में देना चाहते हैं।
(2) मूल्यपरक शिक्षा (Value Education)- इसका अर्थ उस शिक्षा से है जिसमें पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों में मनोवैज्ञानिक विधि से सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, आध्यात्मिक आदि मूल्यों को समाहित करके निर्धारित मूल्यों के विकास पर बल दिया जाता है।
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मूल्यपरक शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Value Eucation)
मूल्यपरक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए-
(1) छात्रों में सहयोग, प्रेम एवं करुणा, शान्ति एवं अहिंसा, साहस, समानता, बन्धुत्व, श्रम गरिमा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा विभेदीकरण की शक्ति आदि मौलिक गुणों का विकास करना।
(2) धर्मनिरपेक्षता, लोकतन्त्र, समाजवाद, राष्ट्रीय एकता जैसे ‘राष्ट्रीय लक्ष्यों’ का ज्ञान प्राप्त करना। (3) स्वयं के प्रति अपने मित्रों के प्रति, मानवता के प्रति, राष्ट्र के प्रति, सभी धर्मों एवं संस्कृतियों के प्रति एवं जीवन तथा पर्यावरण के प्रति समुचित दृष्टिकोण का विकास करना।
(4) बालक को ‘उत्तरदायी नागरिक’ बनाने के लिए प्रशिक्षण देना।
(5) देश-भक्ति एवं राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करना।
(6) बालकों में लोकतान्त्रिक सोच एवं जीवन शैली का विकास करना।
(7) सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भाईचारे की भावना का विकास करना।
(8) नैतिक सिद्धान्तों के आधार पर उचित निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना।
(9) बालक को राष्ट्र की सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक परिस्थितियों के सम्बन्ध में जागरुक बनाना तथा उन परिस्थितियों में वांछित सुधार हेतु प्रोत्साहित करना।
(10) व्यक्तित्व का पूर्ण विकास जिसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं आध्यात्मिक विकास सम्मिलित है।
मूल्य शिक्षा की मुख्य विशेषताएँ (Main Characteristics of Value Education)
मूल्य शिक्षा (Value Education) की मुख्य विशेषताएँ अग्रलिखित हैं-
(1) मूल्य शिक्षा एक उच्चस्तरीय अवधारणा है। इसका अर्थ और क्षेत्र ‘मूल्य’ और ‘शिक्षा’ के विचार पर आधारित है।
(2) ‘मूल्य शिक्षा’ एक ऐसी शैक्षिक प्रक्रिया है जो बालक को सही दिशा में प्रेरित करती है।
(3) मूल्यपरक शिक्षा की सफलता परिवार, विद्यालय के आदर्श वातावरण तथा शिक्षक के आधार पर निर्भर करती है।
(4) मूल्य शिक्षा बालक के व्यक्तित्व के विकास की शिक्षा है। यह व्यक्तित्व के तीनों पक्षों-ज्ञान, अनुभूति और क्रियात्मकता को समाहित करती है।
(5) मूल्य शिक्षा के विकास में विद्यालयों और शिक्षातन्त्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, किन्तु इसे मूल्य शिक्षा का एकमात्र अभिकरण नहीं माना जाता है। मूल्यों के विकास में विद्यालय के अतिरिक्त घर, संचार माध्यमों और समाज की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
(6) मूल्य शिक्षा में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। शिक्षक का आचरण बालक में मूल्यों के विकास में प्रभावशाली भूमिका अदा करता है।
मूल्य शिक्षा की आवश्यकता (Need of Value Education)
मूल्य शिक्षा (Value Education) की निम्नलिखित आवश्यकताएँ हैं-
(1) चरित्र निर्माण एवं नैतिक विकास हेतु
मूल्य शिक्षा परम्परागत शिक्षा की कमी को दूर करती है और धार्मिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का समावेश कर चरित्र निर्माण का प्रयास करती है। मूल्य शिक्षा व्यक्तित्व के दोनों पक्षों-आन्तरिक एवं बाह्य पक्षों का विकास कर उच्च नैतिक एवं चारित्रिक विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।
(2) व्यक्ति के सुखद भावी जीवन के लिए आवश्यकता
मानव को आज विज्ञान एवं तकनीक ने भौतिक सुख के लिए अनेक उपकरण एवं अवसर प्रदान किये हैं। अतः व्यक्ति अपने भौतिक सुख एवं ऐश्वर्य की सभी वस्तु प्राप्त करना चाहता है। वह भौतिक रूप से तो सुखी है किन्तु आध्यात्मिक सुख से दूर होता जा रहा है। केवल भौतिक सुख श्रेष्ठ एवं पूर्ण जीवन नहीं प्रदान कर सकते। ऐसी स्थिति में आज व्यक्ति के सुखद भविष्य व उसके व्यक्तित्व के सन्तुलित विकास के लिए सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा की अनिवार्य आवश्यकता है।
(3) परिवर्तन एवं परम्परा में समन्वय हेतु
वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी परिवर्तनों के कारण नवीन मूल्यों एवं मान्यताओं का सृजन हो रहा है। आज जहाँ आधुनिक या नयी पीढ़ी नवीन मूल्यों में विश्वास रखती है तो वहीं पुरानी पीढ़ी प्राचीन अर्थात् पुराने मूल्यों को मूल्यवान समझती है। इसमें दो पीढ़ियों के बीच तनाव उत्पन्न होता है। इससे सामाजिक विघटन भी बढ़ रहा है। मूल्य शिक्षा प्राचीनता एवं आधुनिकता के बीच इस प्रकार से समन्वय लाती है कि परिवर्तन से उत्पन्न तनाव एवं समस्याएँ हल की जा सकें। मूल्य शिक्षा इस दृष्टिकोण का विकास करती है कि जरूरी नहीं है कि जो पुराना है वह अच्छा नहीं है और यह भी जरूरी नहीं है जो नया है वह अच्छा ही हो।
(4) संस्कृति के संरक्षण एवं विकास हेतु
मूल्य शिक्षा संस्कृति के संरक्षण एवं विकास हेतु उपयुक्त वातावरण तैयार करती है। आधुनिक युग में भौतिकवादी एवं अध्यात्मवादी संस्कृति में समन्वय कायम करने के लिए मूल्य व मूल्यपरक शिक्षा की अति आवश्यकता है।
(5) सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करने हेतु
वर्तमान समय में जाति प्रथा, साम्प्रदायिकता, दहेज प्रथा, नारी उत्पीड़न, कर चोरी, चोरी डकैती, हत्या, कालाबाजारी, नशीली दवाओं व पदार्थों का सेवन आदि ऐसी समस्याएँ उभर रही हैं और यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले 20-22 वर्षों में हम मूल्यों को पहचानना भी समाप्त कर देंगे और सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता की भावना का तो जैसे निशान ही नहीं रह जायेगा। अतः सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता की भावना के विकास के लिए मूल्य व मूल्यपरक शिक्षा अपरिहार्य है।
(6) अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का विकास करने हेतु
विश्वबन्धुत्व और अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास हेतु मूल्य शिक्षा की आवश्यकता है। मूल्य शिक्षा में अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास हेतु विश्व बन्धुत्व, सभी संस्कृतियों का सम्मान, जातिभेद एवं रंगभेद की भावना को तिरोहित करना जैसे मूल्य शामिल होते हैं।
(7) लोकतान्त्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करने हेतु
लोकतन्त्र की सफलता लोकतान्त्रिक आदर्शों एवं मूल्यों पर निर्भर करती है। मूल्य शिक्षा में सहिष्णुता की भावना का विकास, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, विभिन्न समूहों की संस्कृति का ज्ञान, मूल कर्त्तव्यों का पालन, संवैधानिक संस्थाओं के प्रति निष्ठा जैसे मूल्यों का समावेश कर लोकतान्त्रिक मूल्यों को सुदृढ़ किया जा सकता है।
(8) व्यावसायिक विकास एवं आत्मनिर्भरता की प्राप्ति हेतु
‘मूल्य शिक्षा’ में आर्थिक मूल्यों की शिक्षा द्वारा व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाने पर बल दिया जाता है। श्रम के प्रति निष्ठा, उचित व्यवसाय, स्वरोजगार, स्वावलम्बन जैसे मूल्यों के प्रशिक्षण का व्यावसायिक विकास एवं आत्मनिर्भरता की प्राप्ति में बहुत योगदान होता है।
(9) मूल्य ह्रास को रोकने तथा मूल्यों के पुनः प्रतिष्ठापन के लिए आवश्यकता
वर्तमान में जिस तीव्र गति से मूल्यों का ह्रास हो रहा है, उसकी वजह से मानव जीवन दिशाहीन हो गया है। व्यक्ति, परिवार, समुदाय, समाज व देश में चारों तरफ विघटनकारी प्रवृत्तियाँ पनप रही हैं। इनसे बचने हेतु हमें न केवल मूल्यों के ह्रास व पतन को रोकना होगा वरन् मूल्यों की फिर से स्थापना करनी होगी। इसके लिए मूल्य शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है।
मूल्यों के प्रकार
निम्नलिखित पाँच प्रमुख मूल्यों के प्रकारों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत है:
1. व्यक्तिगत मूल्य (Personal Values)
व्यक्तिगत मूल्य वे मूल्य होते हैं जो किसी व्यक्ति के जीवन के निर्णयों, कार्यों और व्यवहारों को प्रभावित करते हैं। ये मूल्य व्यक्ति की सोच, जीवन के अनुभव, पारिवारिक पृष्ठभूमि और शिक्षा से निर्मित होते हैं।
उदाहरण:
- ईमानदारी (Honesty)
- आत्म-निर्भरता (Self-reliance)
- महत्वाकांक्षा (Ambition)
- आत्मसम्मान (Self-respect)
ये मूल्य व्यक्ति को अपने लक्ष्य तय करने, व्यवहार संवारने और व्यक्तिगत पहचान स्थापित करने में मदद करते हैं।
2. सामाजिक मूल्य (Social Values)
सामाजिक मूल्य वे आदर्श होते हैं जो समाज में सामूहिक रूप से अपनाए जाते हैं और सामूहिक जीवन को संतुलित तथा सहयोगपूर्ण बनाते हैं।
उदाहरण:
- सहयोग (Cooperation)
- समानता (Equality)
- सामाजिक न्याय (Social justice)
- सहिष्णुता (Tolerance)
ये मूल्य सामाजिक समरसता बनाए रखने, दूसरों के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी का भाव उत्पन्न करने में सहायक होते हैं।
3. सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Values)
सांस्कृतिक मूल्य एक समाज या राष्ट्र की परंपराओं, विश्वासों और आचार-विचारों से जुड़े होते हैं। ये मूल्य पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं और किसी समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हैं।
उदाहरण:
- बड़ों का सम्मान
- अतिथि देवो भव
- धार्मिक सहिष्णुता
- त्योहारों और परंपराओं की मान्यता
ये मूल्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं और सामूहिक गौरव का स्रोत बनते हैं।
4. सौंदर्यात्मक मूल्य (Aesthetic Values)
सौंदर्यात्मक मूल्य वे होते हैं जो व्यक्ति को सुंदरता, कला, प्रकृति और रचनात्मकता में रुचि लेने को प्रेरित करते हैं।
उदाहरण:
- कला और संगीत की सराहना
- स्वच्छता और व्यवस्था से प्रेम
- वास्तुकला और प्राकृतिक सौंदर्य का मूल्यांकन
ये मूल्य व्यक्ति में सौंदर्यबोध, संवेदनशीलता और रचनात्मकता को विकसित करते हैं
5. नैतिक मूल्य (Moral Values)
नैतिक मूल्य अच्छे और बुरे, सही और गलत के बीच भेद करने की समझ प्रदान करते हैं। ये मूल्य आत्मानुशासन और सदाचार की भावना को प्रोत्साहित करते हैं।
उदाहरण:
- सत्य (Truth)
- अहिंसा (Non-violence)
- दया (Compassion)
- ईमानदारी (Integrity)
ये मूल्य व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को नैतिक रूप से समृद्ध बनाते हैं और विश्वास तथा सद्भाव की नींव रखते हैं।