इस लेख में व्लादिमीर प्रॉप के लोकवार्ता अध्ययन की संरचनावादी पद्धति | Vladimir Propp ke Lokvarta Adhyayan ki Sanrchanavadi Paddhati का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। इसमें उनकी पुस्तक “Morphology of the Folktale”,संरचनावाद का संक्षिप्त परिचय,लोकवार्ता अध्ययन की पृष्ठभूमि, व्लादिमीर प्रॉप के संरचनावादी पद्धति के मूल सिद्धांत,कथात्मक कार्य, पात्रों की भूमिकाएँ, रूपात्मक विश्लेषण, विशेषताएँ और आलोचनाएँ समझाई गई हैं।
Vladimir Propp ke Lokvarta Adhyayan ki Sanrchanavadi Paddhati
परिचय
विश्व साहित्य में लोककथाएँ / लोकवार्ताएँ और मिथक मानव सभ्यता की सांस्कृतिक स्मृति का सबसे प्राचीन और सशक्त माध्यम रही हैं। लोककथाओं में समाज की सोच, जीवन-दृष्टि, नैतिक मूल्य और कल्पना का अद्भुत संगम दिखाई देता है। बीसवीं शताब्दी में जब साहित्य अध्ययन में संरचनावाद (Structuralism) का प्रभाव बढ़ा, तब लोकवार्ता अध्ययन को भी एक वैज्ञानिक और संरचनात्मक दिशा मिली। इस दिशा के सबसे प्रमुख सिद्धांतकार थे — रूसी विद्वान व्लादिमीर प्रॉप (Vladimir Propp)।
उन्होंने 1928 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Morphology of the Folktale” प्रकाशित की, जिसने लोककथा अध्ययन में एक नया युग प्रारंभ किया। इस पुस्तक में प्रॉप ने यह दिखाया कि लोककथाओं का विश्लेषण केवल उनके विषय या पात्रों के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी संरचना (Structure) — अर्थात घटनाओं के क्रम और कार्यों (Functions) — के आधार पर किया जाना चाहिए।
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संरचनावाद का संक्षिप्त परिचय
संरचनावाद साहित्य, भाषा और संस्कृति के अध्ययन की एक पद्धति है, जो यह मानती है कि किसी भी रचना का अर्थ उसके भीतरी ढाँचे या संरचना से निर्धारित होता है।
यह पद्धति मुख्य रूप से फ्रांसीसी विचारक फर्डिनेंड डी सॉस्यूर (Saussure) के भाषावैज्ञानिक विचारों से विकसित हुई। सॉस्यूर ने कहा था कि भाषा को एक संरचना के रूप में देखा जाना चाहिए, जहाँ हर तत्व का अर्थ उसके अन्य तत्वों से संबंध के कारण बनता है।
इसी विचार से प्रेरित होकर साहित्यिक आलोचकों ने कथा, मिथक और लोकवार्ता को भी संरचनात्मक ढाँचे के रूप में देखना शुरू किया। व्लादिमीर प्रॉप इस दिशा में सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण विद्वान माने जाते हैं।
लोकवार्ता अध्ययन की पृष्ठभूमि
प्रॉप के समय लोककथा अध्ययन में मुख्य रूप से विषय-वस्तु और motifs (लघु कथात्मक इकाइयाँ) पर ध्यान केंद्रित किया जाता था। आरने-थॉम्पसन इंडेक्स जैसे वर्गीकरण प्रणालियाँ कहानियों को उनके कथानक के आधार पर वर्गीकृत करती थीं, लेकिन यह बताने में असमर्थ थीं कि कहानियां क्यों और कैसे संरचित होती हैं।
व्लादिमीर प्रॉप ने इस पद्धति की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि यह केवल बाहरी विशेषताओं पर केंद्रित है और कथा की गहरी संरचना को समझने में विफल रहती है। उन्होंने एक ऐसी पद्धति की आवश्यकता महसूस की जो लोककथाओं/ लोकवार्ताओं के आंतरिक संगठन और पैटर्न का विश्लेषण कर सके, ठीक उसी तरह जैसे भाषा विज्ञान में ‘मॉर्फोलॉजी’ (रूपात्मकता) शब्दों की आंतरिक संरचना का अध्ययन करती है।
व्लादिमीर प्रॉप ने अपने अध्ययन के लिए रूसी लोककथाओं (Russian folktales) की लगभग 100 से अधिक कहानियों का विश्लेषण किया। उनका उद्देश्य यह जानना था कि इन सभी कथाओं में ऐसा कौन-सा समान ढाँचा या स्थायी रूप है, जो बार-बार दोहराया जाता है।
उन्होंने पाया कि भले ही लोककथाओं / लोकवार्ताओं के पात्र, स्थान और वस्तुएँ बदलते रहते हैं, लेकिन उनकी कथात्मक संरचना लगभग एक-सी रहती है।
अर्थात्, हर लोककथा कुछ निश्चित घटनाओं के क्रम का पालन करती है, जिसे उन्होंने “कथात्मक व्याकरण” (narrative grammar) कहा।
व्लादिमीर प्रॉप के संरचनावादी पद्धति के मूल सिद्धांत
व्लादिमीर प्रॉप के संरचनावादी पद्धति के तीन प्रमुख स्तंभ हैं:
1) कथात्मक कार्य (Narrative Functions)
प्रॉप के अनुसार, कहानियों में पात्रों की क्रियाएं (Function)ही कहानी को आगे बढ़ाती हैं। उन्होंने 100 से अधिक रूसी जादुई लोककथाओं का विश्लेषण कर 31 ऐसे कार्यों की पहचान की। ये कार्य कहानी के स्थिर, स्थायी तत्व होते हैं, भले ही उन्हें करने वाले पात्र बदल जाएं । अर्थात् सभी “ कार्य” पात्रों के नाम या पहचान से स्वतंत्र हैं। उदाहरण के लिए, “खलनायक का परिचय” या “नायक को एक जादुई वस्तु मिलना” एक कार्य है, जिसे कोई भी पात्र निभा सकता है। इन कार्यों का क्रम भी लगभग स्थिर होता है, हालांकि सभी कार्य हर कहानी में मौजूद नहीं होते।
प्रॉप के 31 कथात्मक कार्य (संक्षेप में)
प्रॉप के 31 कार्य एक विशिष्ट क्रम का पालन करते हैं, जो कहानी की शुरुआत, मध्य और अंत को कवर करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:
प्रारंभिक स्थितियाँ (Functions 1-7): अनुपस्थिति (एक सदस्य का घर छोड़ना), निषेध (एक आदेश जो नहीं माना जाता), उल्लंघन (निषेध का उल्लंघन), पूछताछ, सूचना का आदान-प्रदान, खलनायकी (नुकसान पहुँचाना), कमी (कुछ आवश्यक का अभाव)।
नायक की यात्रा (Functions 8-15): मध्यस्थता (नायक को कमी के बारे में पता चलना), प्रतिकार की शुरुआत (नायक की प्रतिक्रिया), प्रस्थान (नायक का घर छोड़ना), दाता की परीक्षा (नायक का परीक्षण), जादुई वस्तु का प्रावधान, नायक का स्थानांतरण (उसे गंतव्य तक पहुँचाना)।
संघर्ष और विजय (Functions 16-24): संघर्ष (नायक और खलनायक के बीच), ब्रांडिंग (नायक को पहचान का निशान मिलना), विजय (खलनायक पर जीत), कमी का समाधान, वापसी की यात्रा।
घर वापसी और पहचान (Functions 25-31): पीछा, बचाव, गुप्त आगमन, छद्म नायक का दावा, पहचान का खुलासा, छद्म नायक का पर्दाफाश, सजा, विवाह/पुरस्कार।
इस प्रकार प्रॉप ने लोककथा की आंतरिक संरचना को वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकृत किया।
2) पात्रों की भूमिकाएं (Character Roles)
प्रॉप ने कहा कि सभी लोककथाओं / लोकवार्ताओं में पात्रों (character) की संख्या और प्रकार कहानियों में भिन्न होते हैं, लेकिन वे कुछ निश्चित भूमिकाओं को ही निभाते हैं। उन्होंने ऐसी सात प्रमुख भूमिकाओं (आर्केटाइप्स) की पहचान कीः
- खलनायक (Villain) – जो नायक को संकट में डालता है।
- दाता (Donor) – जो नायक को जादुई वस्तु देता है।
- सहायक (Helper) – जो नायक की सहायता करता है।
- राजकुमारी या पुरस्कार (Princess / Prize) – जिसे प्राप्त करना नायक का उद्देश्य होता है।
- प्रेषक (Dispatcher) – जो नायक को यात्रा पर भेजता है।
- नायक (Hero) – जो संकट से जूझता है और लक्ष्य प्राप्त करता है।
- झूठा नायक (False Hero) – जो नायक का श्रेय छीनने का प्रयास करता है।
इन भूमिकाओं की पहचान से यह स्पष्ट होता है कि पात्र बदल सकते हैं, परन्तु उनके कार्य-क्षेत्र निश्चित रहते हैं।
3) रूपात्मक विश्लेषण (Morphological Analysis)
प्रॉप की पद्धति का केंद्रबिंदु कहानियों का रूपात्मक विश्लेषण है। प्रॉप के अनुसार, हर कहानी की ऊपरी बनावट (जैसे अलग-अलग पात्र) के नीचे एक गहरी, स्थिर बनावट होती है। यह बनावट कुछ निश्चित कार्यों और भूमिकाओं से बनती है। इसे ही रूपात्मक विश्लेषण कहते हैं। यह विश्लेषण हमें कहानियों की व्याकरण समझने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, सिंड्रेला और हैरी पॉटर की कहानियाँ ऊपर से अलग दिखती हैं, पर दोनों में नायक पर जुल्म, मदद मिलना और अंत में जीत के कार्य एक समान हैं।
व्लादिमीर प्रॉप के लोकवार्ता अध्ययन की संरचनावादी पद्धति की विशेषताएँ
- वैज्ञानिकता और वस्तुनिष्ठता – प्रॉप का विश्लेषण लोककथाओं के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
- समानता की खोज – उन्होंने विविध लोककथाओं में एक समान संरचना खोजकर यह सिद्ध किया कि कथा-संरचना सार्वभौमिक होती है।
- पात्रों से अधिक कार्य पर ध्यान – उन्होंने यह दिखाया कि कथा का सार पात्रों में नहीं, बल्कि उनके कार्यों में निहित है।
- कथात्मक व्याकरण का विचार – जैसे भाषा की व्याकरण होती है, वैसे ही कथा की भी एक व्याकरण होती है, जिसे Functions के माध्यम से समझा जा सकता है।
- संरचनावादी दृष्टि की नींव – उनके कार्य ने आगे चलकर क्लॉड लेवी-स्ट्रॉस जैसे मानवशास्त्रियों को मिथक अध्ययन में प्रेरित किया।
व्लादिमीर प्रॉप के पद्धति की आलोचना
1.सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ की उपेक्षा – प्रॉप ने केवल संरचना पर ध्यान दिया, कथा के सामाजिक-सांस्कृतिक अर्थों की उपेक्षा की।
2.केवल जादुई कथाओं पर लागू – उनका अध्ययन मुख्यतः “जादुई लोककथाओं” तक सीमित रहा। अन्य प्रकार की कथाओं पर यह पूरी तरह लागू नहीं होता।
3.भावनात्मक पक्ष की अनदेखी – संरचनात्मक विश्लेषण में कथा की संवेदनशीलता और कल्पनाशक्ति की उपेक्षा होती है।
फिर भी, उनकी पद्धति ने आधुनिक कथा-विज्ञान (Narratology) को एक ठोस आधार प्रदान किया।
उपसंहार (Conclusion)
व्लादिमीर प्रॉप की संरचनावादी पद्धति लोकवार्ता अध्ययन की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध हुई।उन्होंने लोककथाओं के अध्ययन को केवल मनोरंजन या नैतिक शिक्षा के दृष्टिकोण से हटाकर वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक आधार प्रदान किया। उनकी “Morphology of the Folktale” ने यह सिद्ध किया कि हर लोककथा के भीतर एक समान संरचना, नियत कार्यों और भूमिकाओं का ढाँचा होता है।
आज भी प्रॉप की पद्धति का उपयोग न केवल लोककथाओं में, बल्कि फिल्मों, उपन्यासों, और नाटकों के विश्लेषण में किया जाता है।
इस प्रकार, व्लादिमीर प्रॉप ने यह स्थापित किया कि कथा-संरचना मानव कल्पना की सार्वभौमिक भाषा है — जो समय, संस्कृति और भौगोलिक सीमाओं से परे एक साझा रूप रखती है।