प्रगति का अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं |सामाजिक प्रगति की परिभाषा बताइए तथा इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए|Pragati ka arth, paribhasha,vishestaye

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प्रगति का अर्थ (Meaning of Progress)

प्रगति का अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं |सामाजिक प्रगति की परिभाषा बताइए तथा इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए|Pragati ka arth, paribhasha,vishestaye



अंग्रेजी का ‘Progress’ शब्द लैटिन भाषा के ‘Progredior’ से बना है जिसका अर्थ है ‘to step forward’ अर्थात् ‘आगे बढ़ना ‘। इस प्रकार वांछित लक्ष्य की ओर परिवर्तन एवं आगे बढ़ना प्रगति कहलाता है। 

अतः हम देखते हैं कि प्रगति के लिए एक सुनिश्चित लक्ष्यं निर्धारित होता है । इस लक्ष्य का निर्धारण सामाजिक मूल्यों के अनुरूप होता है और इसका रूप आदर्शात्मक होता है । किसी निर्धारित लक्ष्य तथा आदर्श की ओर बढने के लिए समाज में जो क्रमिक उन्नति होती है, उसे प्रगति कहते हैं । यह आवश्यक नहीं है कि हम जिस वस्तु या लक्ष्य की प्राप्ति को प्रगति समझें, वही अन्य समाजों के लिए भी प्रगति होगी। एक दिशा में आगे बढ़ने को अगर कोई समाज प्रगति समझता है तो ‘दूसरा समाज उसे अवनति समझ सकता है । प्रगति में सामाजिक परिवर्तन को दिशा का ही बोध “नहीं होता, बल्कि उस दिशा को निश्चितता का भी बोध होता है। एक ही समाज में जो सामाजिक परिवर्तन किसी समय में प्रगति का सूचक था, ‘वह अब प्रगति का सूचक नही हो सकता । जैसे-जैसे हमारे मूल्यों में परिवर्तन होता जाता है उसी प्रकार प्रगति को अवधारणा भी बदलती जाती है। भारतीय समाज ‘में ही वैदिक काल में उन समूहों को प्रगतिशील माना जाता था जो धार्मिक कृत्यों ‘तथा कर्मकाण्डों में आगे थे। आज यह धारणा बिल्कुल बदली हुई है। आज हम उस समूह को ‘प्रगतिशील मानते है जिसमें इन धार्मिक कर्मकाण्डों के बारे में बिल्कुल “रुचि न हो। पश्चिमी समाजों में उस व्यक्ति को प्रगतिशील’ कहा जाता है जो शराब का सेवन करता है, नाचघरों में जाता है, तथा इसी प्रकार के अन्य कार्यो को करता भारतीय समाज में शराब पीने वाले व्यक्ति को हम निकृष्ट व्यक्ति मानते हैं। 

इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न समाजों में प्रगति का मापदण्ड विभिन्न प्रकार का है। यहाँ तक कि एक ही समाज के विभिन्न कालों में प्रगति को अवधारणा बदला करती है। सामाजिक मान्यता प्राप्त सामाजिक मूल्य ही यह तय करेंगे, कि ” प्रगति क्या है ओर अवति क्या है। इसके अतिरिक्त, प्रगति की दिशा क्या होगी, इसका निर्धारण भी इन्ही सामाजिक मूल्यों से होगा । समाजिक नियंत्रण भी समाजिक प्रगति में सहायक होती है।

प्रगति की परिभाषा

प्रगति को विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है:-

1) लेस्टर वार्ड के अनुसार, ” प्रगति वह है जो मानवीय सुख में वृद्धि करती है। “



2) ऑगबर्न एवं निमकॉफ के अनुसार, “प्रगति का अर्थ होता है- अच्छाई के लिए परिवर्तन और इसीलिए प्रगति में मूल्य-निर्धारण होता है। “



3)लम्ले के अनुसार, “प्रगति एक परिवर्तन है लेकिन यह इच्छित अथवा मान्यता प्राप्त दिशा में होने वाला परिवर्तन है, किसी भी दिशा में होने वाला परिवर्तन नहीं है। “



4) गुरविच तथा मूर के अनुसार, “प्रगति स्वीकृत मूल्यों के सन्दर्भ में इच्छित मूल्यों की ओर बढ़ना है। “



5) गिन्सबर्ग के अनुसार, “प्रगति का अर्थ उस दिशा में होने वाला विकास है जो सामाजिक मूल्यों को विवेकयुक्त हल प्रस्तुत करता हो। “

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रगति समाज द्वारा स्वीकृत मूल्यों की ओर परिवर्तन है जिससे मानव सुख एवं कल्याण में वृद्धि होती है।

सामाजिक प्रगति की विशेषताएँ (Characteristics of Social Progress)

सामाजिक प्रगति की विशेषताएं इस प्रकार है –

1. प्रगति वांछित दिशा में परिवर्तन है- किसी भी दिशा में परिवर्तन को प्रगति नहीं कहते हैं वरन् सामाजिक मूल्यों के अनुरूप तथा वांछित लक्ष्यों की ओर होने वाला परिवर्तन प्रगति है।

2. प्रगति तुलनात्मक है – प्रगति की अवधारणा तुलनात्मक है अर्थात् समय और स्थान के अनुसार यह बदलती रहती है। एक समाज में जनसंख्या की वृद्धि प्रगति मानी जा सकती है तो दूसरे समाज में नहीं।

3. प्रगति सामूहिक जीवन से सम्बन्धित होती है – प्रगति का सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष के मूल्य या लाभ से न होकर सामूहिक लाभ एवं मूल्यों से है।

4. प्रगति स्वचालित नहीं होती है-प्रगति कभी स्वतः नहीं होती है वरन् उसके लिए सचेत एवं नियोजित प्रयत्न करने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण प्रगति के लिए समन्वित ग्रामीण विकास योजनाएं बनायी गयीं।


5. प्रगति का सम्बन्ध केवल मनुष्यों से है प्रगति की चर्चा हम केवल मानव समाज में ही कर सकते हैं क्योंकि मूल्य की अवधारणा उन्हीं में पायी जाती है, पशुओं में नहीं ।


6. प्रगति में लाभ अधिक एवं हानि कम होती है।



7. प्रगति की धारणा परिवर्तनशील है- इसका सम्बन्ध सामाजिक मूल्यों से है और सामाजिक मूल्य स्थिर नहीं होते वरन् समय के साथ परिवर्तित होते रहते हैं। भारत में ही कभी आध्यात्मिक लक्ष्यों की पूर्ति को प्रगति माना जाता था जबकि वर्तमान में भौतिक लक्ष्यों की अधिकाधिक पूर्ति को प्रगति कहा जाता है।


8. प्रगति मूल्यों पर आधारित है- सामाजिक प्रगति का घनिष्ठ सम्बन्ध सामाजिक मूल्यों से है। सामाजिक मूल्य ही किसी दशा को अच्छा या बुरा बताते हैं। अतः जिन लक्ष्यों को सामाजिक मूल्यों द्वारा उचित ठहराया जाता है उसे सामाजिक प्रगति कहा जाता है।

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