सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त (Cyclical Theories of Social Changes)
चक्रीय सिद्धान्तकारों का मत है कि समाज में परिवर्तन का एक चक्र चलता है। हम जहाँ से प्रारम्भ होते हैं. घूम-फिरकर पुन: वहीं पहुँच जाते हैं। इस प्रकार के विचारों की प्रेरणा विद्वानों को सम्भवतः प्रकृति से मिली होगी। प्रकृति में हम देखते हैं कि ऋतु का एक चक्र चलता है और सर्दी, गर्मी एवं वर्षा की ऋतुएँ एक के बाद एक पुनः पुनः आती हैं। इसी प्रकार से रात के बाद दिन एवं दिन के बाद रात का चक्र भी चलता रहता है। प्राणी भी जन्म और मृत्यु के दौर से गुजरते हैं। हम जन्म लेते हैं, युवा होते हैं, वृद्ध होते हैं और मर जाते हैं। मरकर फिर जन्म मृत्यु लेते हैं, और पुनः वही क्रम दोहराते हैं।
इसकी पुष्टि के लिए उन्होंने विश्व की अनेक सभ्यताओं का उल्लेख किया और कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि जो सभ्यताएँ आज फल-फूल रही हैं और प्रगति के उच्च शिखर पर हैं, वे कभी आदिम और पिछड़ी अवस्था में थीं और आज जो सभ्यताएँ नष्टप्राय दिखायी दे रही हैं. भूतकाल में वे विश्व की श्रेष्ठ सभ्यताएँ रह चुकी हैं। इस प्रकार चक्रीय सिद्धान्तकार सामाजिक परिवर्तन को जीवन चक्र के रूप में देखते हैं। चक्रीय सिद्धान्तकारों में स्पेंग्लर, टॉयनबी, पैरटो एवं सोरोकिन प्रमुख हैं।
सोरोकिन का सांस्कृतिक गतिशीलता का सिद्धान्त या सोरोकिन का समाजिक परिवर्तन का सिद्धांत
पैरेटो का सिद्धान्त (Theory of Pareto)
विल्फ्रेड पैरेटो ने सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धान्त जिसे अभिजात वर्ग के परिभ्रमण का सिद्धान्त (Theory of Circulation of Elites) कहते हैं का प्रतिपादन अपनी पुस्तक ‘Mind and Society में किया। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन को वर्ग व्यवस्था में होने वाले चक्रीय परिवर्तनों के आधार पर समझाया है उनका मत है कि प्रत्येक समाज में हमें दो वर्ग दिखायी देते हैं उच्च या अभिजात वर्ग तथा निम्न वर्ग। ये दोनों वर्ग स्थिर : नहीं हैं चरन् इनमें परिवर्तन का चक्रीय क्रम पाया जाता है। निम्न वर्ग के व्यक्ति अपने गुणों एवं कुशलता में वृद्धि करके अभिजात वर्ग ( Elite class) में सम्मिलित हो जाते हैं। अभिजात वर्ग के लोगों की कुशलता एवं योग्यता में धीरे-धीरे ह्रास होने लगता है और वे अपने गुणों को खो देते हैं तथा भ्रष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार के निम्न वर्ग की ओर बढ़ते हैं। उच्च या अभिजात वर्ग में उनके रिक्त स्थान को भरने के लिए निम्न वर्ग में जो व्यक्ति बुद्धिमान, चरित्रवान, कुशल, योग्य एवं साहसी होते हैं, ऊपर की ओर जाते हैं। इस प्रकार उच्च वर्ग से निम्न वर्ग में तथा निम्न वर्ग से उच्च वर्ग में जाने की प्रक्रिया चलती रहती है। इस चक्रीय गति के कारण सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन आ सकता है। चूँकि यह परिवर्तन एक चक्रीय गति में होता है, इसलिए इसे सामाजिक परिवर्तन का ‘चक्रीय’ अथवा ‘अभिजात वर्ग के परिभ्रमण का सिद्धान्त’ कहते हैं। पैरेटो ने सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त का उल्लेख राजनीतिक, आर्थिक एवं आदर्शात्मक तीनों क्षेत्रों में किया है।
राजनीतिक क्षेत्र में हमें दो प्रकार के व्याक्ति दिखायी देते हैं- शेर तथा लोमड़ियों ‘शेर’ लोगों का आदर्शवादी लक्ष्यों में दृढ़ विश्वास होता है जिन्हें प्राप्त करने के लिए वे शक्ति का सहारा लेते हैं और ‘शेर’ वे लोग हैं जो सत्ता में होते हैं। चूँकि ‘शेर’ लोग शक्ति का प्रयोग करते हैं, अतः समाज में भयंकर प्रतिक्रिया हो सकती है, अतः वे कूटनीति का सहारा लेते हैं और शेर से अपने को ‘लोमड़ियों में बदल देते हैं तथा लोमड़ियों की तरह चालाकी से शासन चलाते हैं एवं सत्ता में बने रहते हैं, किन्तु निम्न वर्ग में भी कुछ लोमड़ियाँ होती हैं जो सत्ता को हथियाने की फिराक में होती हैं। एक समय ऐसा आता है कि उच्च वर्ग की लोमड़ियों से सत्ता निम्न वर्ग की लोमड़ियों के हाथ में आ जाती है। ऐसी स्थिति में सत्ता परिवर्तन के कारण राजनीतिक व्यवस्था एवं संगठन में भी परिवर्तन आता है। पैरेटो का मत है कि सभी समाजों में शासन के लिए तर्क के स्थान पर शक्ति का प्रयोग अधिक होता है। शासन करने वाले लोगों में जब बल का प्रयोग करने की इच्छा व शक्ति कमजोर हो जाती है तब वे शक्ति के स्थान पर लोमड़ियों की तरह चालाकी से काम लेते हैं। शासित वर्ग की लोमड़ियों उनसे अधिक चतुर होती हैं, अतः वे उच्च वर्ग की लोमड़ियों से सत्ता छीन लेती हैं। अतः जब शासक बदलते हैं एवं सत्ता परिवर्तन होती है तो समाज में भी परिवर्तन आता है।
आर्थिक क्षेत्र में पैरेटो ने दो वर्गों सट्टेबाज (Speculators) तथा निश्चित आय वर्ग (Rentiers) का उल्लेख किया है। पहले वर्ग के लोगों की आय अनिश्चित होती है कभी कम तथा कभी ज्यादा इस वर्ग के लोग बुद्धि के द्वारा धन कमाते हैं। इसके विपरीत, दूसरे वर्ग को आय निश्चित होती है। प्रथम वर्ग के लोग आविष्कारक. उद्योगपति एवं कुशल व्यवसायी होते हैं, किन्तु इस वर्ग के लोग अपने हितों की रक्षा के लिए शक्ति एवं चालाकी का प्रयोग करते हैं, भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं। इस कारण उनका पतन हो जाता है और उनका स्थान दूसरे वर्ग के ऐसे लोग ले लेते हैं जो ईमानदार होते हैं। इस वर्ग में परिवर्तन के साथ-साथ समाज की अर्थव्यवस्था में भी परिवर्तन आता है।
इस प्रकार पेरेटो के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का चक्र निरन्तर गतिमान रहता है। सामाजिक परिवर्तन का यह चक्रीय सिद्धांत समाजशास्त्र और सामाजिक चिंतन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है। पेरेटो का सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत उनके ‘संभ्रांतों के संचलन के सिद्धांत’ से जुड़ा हुआ है। ये सिद्धांत लगभग सभी प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में काम करते हैं, राजनीतिक आर्थिक और बौद्धिक आदि सभी क्षेत्रों में। पेरेटो के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का चक्र संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है। पेरेटो के अनुसार, संकट हर राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था का एक हिस्सा है और यह सामाजिक परिवर्तन की ओर ले जाता है।
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