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अधिगम का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Learning)
अधिगम या सीखना एक बहुत ही सामान्य और आम प्रचलित प्रक्रिया है। जन्म के तुरन्त बाद से ही व्यक्ति सीखना प्रारम्भ कर देता है और फिर जीवनपर्यन्त जाने-अनजाने कुछ-न-कुछ सीखता ही रहता है। एक बच्चा जलती हुई दियासलाई की तीली या लैम्प की लौ को छूने से जल जाता है। उसके लिये यह पहला कटु अनुभव होता है। दूसरी बार कभी जलती हुई तीली, लैम्प की लौ और यहाँ तक किसी भी जलती हुई वस्तुओं अर्थात् आग से दूर रहना सिखा देता है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि बच्चा यह सीख जाता है कि अगर किसी गर्म वस्तु या लो को हाथ लगाया जायेगा तो अवश्य ही जलने की पीड़ा उठानी होगी।
इस प्रकार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अनुभवों के माध्यम से एक व्यक्ति के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन होते रहते हैं। अनुभवों द्वारा व्यवहार में होने वाले इन परिवर्तनों को साधारण रूप मे सीखने की संज्ञा दे दी जाती है। सीखने की प्रक्रिया की यह एक बहुत ही सरल व्याख्या है। इसका विस्तृत अर्थ समझने के लिए कुछ अधिक स्पष्टीकरण एवं पारिभाषिक शब्दावली की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में कुछ जानी-पहचानी परिभाषाएं नीचे दी जा रही हैं-
1. गार्डनर मरफी (Gardner Murphy )— “सीखने या अधिगम शब्द में वातावरण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यवहार में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तन सम्मिलित हैं।”
2. गेट्स व अन्य (Gates and others ) — “अनुभव के द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तन को सीखना या अधिगम कहते हैं।”
3. वुडवर्थ (Woodworth) — “किसी भी ऐसी क्रिया को जो कि व्यक्ति के (अच्छे या बुरे किसी भी तरह के) विकास में सहायक होती है और उसके वर्तमान व्यवहार और अनुभवों को जो कुछ वे हो सकते थे, उनसे भिन्न बनाती है. सीखने की संज्ञा दी जा सकती है।”
4. किंगस्ले एवं गैरी (Kingsley and Garry ) — “अभ्यास अथवा प्रशिक्षण के फलस्वरूप नवीन तरीके से व्यवहार (अपने विस्तृत अर्थ में) करने अथवा व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया को सीखना कहते हैं।”
5. क्रो व क्रो (Crow and Crow ) — “सीखना आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है। इसमें कार्यों को करने के नवीन तरीके सम्मिलित हैं और इसकी शुरुआत व्यक्ति द्वारा किसी भी बाधा को दूर करने अथवा नवीन परिस्थितियों में अपने समायोजन को लेकर होती है। इसके माध्यम से व्यवहार में उत्तरोत्तर परिवर्तन होता रहता है। यह व्यक्ति को अपने अभिप्राय अथवा लक्ष्य को पाने में समर्थ बनाती है।
6. हिलगार्ड (Hilgard) “सीखना या अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई क्रिया आरम्भ होती है अथवा परिस्थिति से सामना होने पर प्रक्रिया द्वारा परिवर्तित की जाती है बशर्ते कि क्रिया में होने वाले परिवर्तन की विशेषताओं को मूल प्रवृत्तियों, परिपक्वता या प्राणी की अस्थायी अवस्थाओं (जैसे थकावट अथवा औषधि के प्रभाव इत्यादि) के आधार पर नहीं समझाया जा सके।
सीखने की ये सभी उपरोक्त परिभाषाएं अपने किसी न किसी रूप में यही संकेत देती हैं कि सीखना एक ऐसी प्रक्रिया या उसका परिणाम है जिसमें अनुभव के माध्यम से सीखने वाले के व्यवहार में परिवर्तन लाए जाते हैं।
अधिगम की प्रकृति एवं विशेषताओं का विस्तृत वर्णन करें?
अधिगम या सीखने की प्रकृति तथा विशेषताएं –
1. सीखना व्यवहार में परिवर्तन है (Learning is the change in behaviour) — सीखने की प्रक्रिया और उसके परिणाम का सीधा संबंध सीखने वाले के व्यवहार में परिवर्तन लाने से होता है। किसी भी प्रकार का सीखना क्यों न हो इसके द्वारा विद्यार्थी में परिवर्तन लाने की भूमिका सदैव ही निभाई जाती है। हाँ, यह व्यवहार परिवर्तन अपेक्षित दशा और दिशा में हो इस बात का ध्यान अवश्य ही रखा जाना चाहिए।
2. अर्जित व्यवहार की प्रकृति अपेक्षाकृत स्थायी होती है (Change in behaviour caused by learning is relatively permanent)—सीखने के द्वारा व्यवहार में जो परिवर्तन लाए जाते हैं वे न तो पूर्ण स्थायी होते हैं और न बिल्कुल अस्थायी। उनकी प्रकृति इन दोनों के बीच की स्थिति वाली होती है जिसे अपेक्षाकृत स्थायी का नाम दिया जा सकता है। इसीलिये सिखाने के द्वारा बालक के व्यवहार में जो परिवर्तन होता है वह अपना प्रभाव छोड़ने में समर्थ होता है परन्तु उसके अवांछनीय समय संगत या अनुपयोगी सिद्ध होने की दशा में उसमे पुनः अपेक्षित परिवर्तन लाने की भूमिका भी उचित अधिगम द्वारा निभाई जा सकती है।
3. सीखना जीवन पर्यन्त चलने वाली एक सतत् प्रक्रिया है (Learning is a continuous life long process)-– सीखना यद्यपि वंशक्रम की धरोहर नहीं है परन्तु इसकी शुरूआत बालक के जन्म से पहले मां के गर्भ में ही हो जाती है। अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदन की प्रक्रिया अपनी मां के गर्भ में उसी समय सीख ली थी जबकि उसके पिता अर्जुन उसकी माता सुभद्रा को इसके बारे में बता रहे थे। जन्म के बाद वातावरण में प्राप्त अनुभवों के द्वारा इस कार्य में पर्याप्त तेजी सी आ जाती है और औपचारिक तथा अनौपचारिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष इन सभी अनुभवों के माध्यम से हम जब तक मृत्यु को प्राप्त होते हैं कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं।
4. सीखना एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है (Learning is a universal process) सीखना किसी व्यक्ति विशेष, जाति, प्रजाति, तथा देश-प्रदेश की बपौती नहीं है। इस संसार में जितने भी जीवधारी (Living organism) है वे अपने-अपने तरीके से अनुभवों के माध्यम से कुछ न कुछ सीखते रहते हैं। यह सोचना या दावा करना कि किसी जाति विशेष जैसे ब्राह्मण या सवर्ण हिन्दू परिवार में जन्मा बालक अन्य वर्णों के बालकों की तुलना में अच्छी तरह सीख सकता है या लड़के, लड़कियों की अपेक्षा अथवा गोरे यूरोपियन, हब्शियों की अपेक्षा जल्दी और अच्छा सीखते हैं. बिल्कुल निराधार और भ्रम मूलक है। सभी लोग या प्राणी सीखने की पूरी क्षमता रखते हैं जो भी अंतर इस बारे में देखने को मिलते हैं उनमें प्राप्त अनुभवों तथा अवसरों का ही विशेष योगदान पाया जाता है।
5. सीखना उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्य निर्देशित होता है (Learning is purposive and goal directed)- जब भी हम कुछ सीखने का प्रयास करते हैं या दूसरे शब्दों में अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहते हैं तो उसका कोई न कोई निश्चित उद्देश्य या प्रयोजन होता है। हमारे सीखने की प्रक्रिया इसी उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ती है। जैसे-जैसे हमें इस लक्ष्य प्राप्ति में सहायता मिलती रहती है हम अधिक उत्साह से सीखने के कार्य में जुटे रहते हैं।
6. सीखने का संबंध अनुभवों की नवीन व्यवस्था से होता है (Learning involves reconstruction of experiences)— सीखने की प्रक्रिया में प्राप्त अनुभवों के नवीन समायोजन तथा पुनर्गठन का कार्य चलता ही रहता है। जो कुछ पूर्व अनुभवों के आधार पर सीखा हुआ होता है उसमें नवीन अनुभवों के आधार पर परिवर्तन लाना जरूरी हो जाता है इस तरह अनुभवों की नवीन व्यवस्था या समायोजन का कार्य चलते रहना ही सीखने के मार्ग पर आगे बढ़ने की विशेष आवश्यकता और विशेषता बन जाती है।
7. सीखना वातावरण एवं क्रियाशीलता की उपज है (Learning is the product of activity and environment;— वातावरण के साथ सक्रिय अनुक्रिया करना सीखने की एक आवश्यक शर्त है। जो बालक जितनी अच्छी तरह से पूर्ण सक्रिय होकर वातावरण के साथ अपेक्षित अनुक्रिया करेगा वह उतना ही सीखने के मार्ग पर आगे बढ़ सकेगा। वातावरण में उद्दीपकों (Stimuli) की उपस्थिति चाहे कैसी भी सक्षम क्यों न हो सीखने वाले के द्वारा अगर सक्रिय होकर अनुक्रिया नहीं की जाएगी तो सीखने का कार्य आगे ही कैसे बढ़ेगा। इस तरह सीखने की प्रक्रिया में यह विशेषता होती है कि यह सीखने वाले से वातावरण के साथ पर्याप्त क्रियाशीलता चाहती है ताकि अनुभवों के माध्यम से उचित अधिगम हो सके।
8. सीखने हेतु एक परिस्थिति से दूसरी में स्थानान्तरण होता है (Learning is transferable from one situation to another )—– जो कुछ भी एक परिस्थिति में सीखा जाता है उसका अर्जन किसी भी दूसरी परिस्थिति में सीखने के कार्य में बाधक या सहायक बनकर अवश्य ही आगे आ जाता है। इस तरह अधिगम अर्जन की एक विशेष विशेषता इसी बात को लेकर है कि उसका एक से दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरण होता रहता है।
9. सीखने के द्वारा शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है (Learning helps in the attainment of teaching-learning objectives) – सीखने के द्वारा विद्यार्थी निर्धारित शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उचित प्रयत्न कर सकते हैं। इस प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति द्वारा बालकों में अपेक्षित ज्ञान और समझ, सूझबूझ, कुशलताएं, रुचि तथा दृष्टिकोण आदि का विकास किया जा सकता है।
10. सीखने के द्वारा विद्यार्थी को उचित वृद्धि एवं विकास में सहायता पहुंचती है (Learning helps in the proper growth and development) – वृद्धि एवं विकास के सभी आयामों-शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक, सौन्दर्यात्मक तथा भाषा संबंधी विकास आदि में सीखने की प्रक्रिया हर कदम पर सहायता पहुंचाती है।
11. सीखना व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास में सहायक होता है (Learning helps in the balanced development of the personality)—बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण और संतुलित विकास शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य होता है और सीखने की प्रक्रिया सभी तरह से इस कार्य में अच्छी तरह सहायता पहुंचाती है।
12. सीखना समायोजन में सहायक है (Learning helps in proper adjustment ) — सीखने की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप सीखने वाले को अपने तथा अपने वातावरण से उचित समायोजन के कार्य में पर्याप्त सहायता मिलती है।
13. सीखने के द्वारा जीवन लक्ष्यों की पूर्ति में सहायता मिलती है (Learning helps in the realization of goals of life)- प्रत्येक व्यक्ति अपने ढंग से अपनी जिन्दगी जीता है। उसके अपने आदर्श तथा जीवन लक्ष्य होते हैं जिनकी प्राप्ति के लिए वह संघर्षरत रहता है। सीखने की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त परिणाम उसे इन आदर्शों अथवा जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता पहुंचाते हैं।
15. अधिगम के द्वारा व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाये जा सकते हैं (Learning helps in bringing desirable changes in behaviour) — अधिगम को ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिससे अधिगमकत्ता के व्यवहार में परिवर्तन लाने की भूमिका निभाई जाती है। अगर अधिगम की प्रक्रिया की दशा और दिशा पर उचित नियन्त्रण स्थापित किया जा सके तो इसके माध्यम से विद्यार्थियों के व्यवहार में पहले से ही निश्चित अपेक्षित परिवर्तन लाने में भरपूर सहायता मिल सकती है।
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