अधिगम वक्र का अर्थ,विशेषताएं,कारक और प्रकार B.Ed Notes

अधिगम वक्र का अर्थ, विशेषताएं और प्रकार|Meaning, Characteristics and Types of Learning Curve in Hindi
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इस लेख में हम अधिगम वक्र का अर्थ, विशेषताएं,कारक और प्रकार|Meaning Characteristics Factors and Types of Learning Curve in Hindi के बारे मे जानकारी देंगे।
यह टॉपिक B.Ed Syllabus – Psycological Perspective of Education Paper का है। इस लेख में Meaning, Characteristics and Types of Learning Curve in Hindi के बारे में सरल शब्दों में नोट्स दिए गए है।

अधिगम वक्र का अर्थ (Meaning of Learning Curve)

जब हम किसी कौशल (Skill) को सीखना प्रारम्भ करते हैं तो उसमें धीरे-धीरे उन्नति करते हैं। सीखने की क्रिया की गति में प्रगति प्रारम्भ से लेकर अन्त तक एक समान नहीं होती है। कभी गति तीव्र, कभी मन्द तो कभी गति बिल्कुल रुक जाती है। अधिगम वक्र / सीखने का वक्र अधिगम की प्रक्रिया में प्राणी की प्रगति या ह्रास को स्पष्ट करता है। दूसरे शब्दों में सीखने की प्रगति और हास को प्रदर्शित करने वाली रेखा को अधिगम वक्र या सीखने का वक्र रेखा कहते हैं। ऐसे वक्र के शीर्ष रेखा (Ordinate O-Y) पर सीखने की मात्रा तथा आधार रेखा (Abscissa O-X) पर अभ्यास, समय आदि को प्रदर्शित किया जाता है।

गेट्स व अन्य के अनुसार, “अधिगम वक्र से तात्पर्य है- अभ्यास के द्वारा अधिगम की मात्रा, गति और प्रगति की सीमा को आलेख-पत्र पर रेखा द्वारा अंकित करना।”

स्किनर के अनुसार, “किसी व्यक्ति की किसी क्रिया में प्रगति (या प्रगत्ति के अभाव) को प्रदर्शित करना ही अधिगम वक्र है।”

सीखने का वक्र को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Learning Curve)

मनोवैज्ञानिकों ने कई कारकों का उल्लेख किया है जो सीखने के वक्र पर प्रभाव डालते हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

(1) जब व्यक्ति किसी कौशल को अर्जित करता है तो उसका प्रभाव अधिगम क्रिया पर भी पड़ता है। उसके सीखने की गति में त्वरिता आत्ती है। यह तथ्य अधिगम वक्र पर भी दिखाई देता है।

(2) सीखी जाने वाली क्रिया के किसी एक सूत्र का आभास हो जाने पर, व्यक्ति की सीखने की गति बढ़ जाती है। यह बात सीखने के वक्र पर स्पष्ट हो जाती है।

(3) यदि सीखने वाले में, सीखी जाने वाली क्रिया के प्रति उत्साह है, तो प्रारम्भ से ही उसकी सीखने की गति तीव्र होगी। यह तथ्य अधिगम वक्र पर परिलक्षित हो जाता है।

(4) यदि सीखी जाने वाली क्रिया के समन्वय में, व्यक्ति को कोई पूर्वानुभव है, तो उसकी अधिगम क्रिया सम्बन्धी प्रगति तेज होगी। यह कारक भी वक्र पर अंकित होगा।

अधिगम वक्र की विशेषताएँ (Characteristics Of Learning Curve)

मनुष्य के सीखने के सम्बन्ध में अनेक प्रयोग करके कुछ वक्र तैयार किये गये हैं। इनका अध्ययन करने से सीखने की क्रिया की निम्नलिखित विशेषताएँ ज्ञात हुई हैं-

(1) अनियमित प्रगति (Irregular Improvement)- व्यक्ति के सीखने की प्रगति एक जैसी नहीं होती, अन्तिम अवस्था की अपेक्षा प्रारम्भिक अवस्था में प्रगति की मात्रा अधिक होती है।”

(2) दैहिक क्षमता की सीमा – व्यक्ति की दैहिक क्षमता की अधिक-से-अधिक सीमा कितनी हो सकती है। इस बात का पता अधिगम वक्र से लगाया जा सकता है। अधिगम वक्र देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति अब इससे अधिक प्रगति नहीं कर सकता।

(3) पठारों का ज्ञान- अधिगम की प्रक्रिया में कई क्षण ऐसे आते हैं जब व्यक्ति की प्रगति कुछ समय के लिए अवरुद्ध हो जाती है। इस स्थिति को पठार (Plateau) कहते हैं। पठार कुछ समय के लिए रहते हैं। बाद में व्यक्ति फिर प्रगति करने लगता है।

(4) प्रारम्भिक स्फुरण या तेजी (Intial Spart)- व्यक्ति शुरू-शुरू में जब कोई काम सीखता है तो उसके सीखने की गति बड़ी तेज हो जाती है। सीखने के वक्र में यह प्रारम्भिक स्फुरण अंकित होता है।

(5) मध्य अवस्था (Middle Stage)- जैसे-जैसे व्यक्ति अभ्यास करता जाता है, वैसे-वैसे वह सीखने में उन्नति करता जाता है पर उसकी उन्नति का रूप स्थाई नहीं होता है। कभी ऐसा दिखता है कि वह ऊँचा-ही-ऊँचा चढ़ रहा है और कभी ऐसा दिखता है कि वह नीचे-ही-नीचे जा रहा है।

(6) अन्तिम अवस्था (Last Stage)- जैसे-जैसे सीखने की अन्तिम अवस्था आती जाती है, वैसे-वैसे सीखने की गति धीमी हो जाती है। अन्त में एक अवस्था ऐसी आती है जब व्यक्ति सीखने की सीमा पर पहुँच जाता है।

अधिगम वक्र के प्रकार (Types Of Learning Curve)

जब व्यक्ति किसी कार्य को करना आरम्भ करता है वह पहले सीखता है, सीख कर अभ्यास करता है, अभ्यास करते-करते एक ऐसी चरम स्थिति पर पहुँच जाता है जहाँ सीखने की स्थिति स्थिर हो जाती है। इसके बाद परिणाम में गिरावट आने लगती है। यदि इस स्थिति को ग्राफ पेपर पर अंकित किया जाये तो जो चित्र बनेगा। वह अधिगम वक्र कहलायेगा।

सीखने का वक्र निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

(1) सरल रेखीय वक्र (Straight Line Curve)- सरल रेखीय वक्र एक कल्पना की वस्तु है। सीखने की प्रक्रिया में बिना परिवर्तन की गति से सदैव उन्नति नहीं होती। चूँकि यह वक्र प्रगति के निश्चित समय को दर के अनुसार प्रकट करता है, अतः यह वक्र कम दशाओं में पाया जाता है।

(2) उन्नतोदर वक्र (Convex Curve)- यह वक्र तब बनता है जब प्रारम्भ में सीखने की उन्नति तीव्र गति से होती है और उसके बाद प्रगति की गति मन्द पड़ जाती है। इस वक्र का अन्तिम भाग पठार की आकृति का होता है। शारीरिक कौशल सीखने में प्रायः इस प्रकार के बनते हैं। इसे ऋणात्मक त्वरित वक्र (Negative Accelerated Curve) भी कहते हैं। यह वक्र एक सीधी रेखा या पठार बन जाता है। अधिकतर वक्र इसी प्रकार के बनते हैं। जैसा कि निम्नलिखित वक्र से स्पष्ट है।

(3) सकारात्मक उन्नति सूचक वक्र (Positive Accelerated Curve) – इस वक्र में सीखने की गति प्रारम्भ में कम होती है, परन्तु धीरे-धीरे सीखने की गति में तीव्रता आती है। ऐसी स्थिति में सकारात्मक उन्नति सूचक वक्र बनता है। इसे नतोदर वक्र भी कहते हैं। ऐसे वक्र की विशेषता यह होती है कि इस वक्र में उन्नति धीरे-धीरे होती है। जैसा कि निम्नलिखित वक्र से स्पष्ट है-

(4) मिश्रित वक्र (Mixed Curve)- यह वक्र सकारात्मक व नकारात्मक उन्नति सूचक वक्रों का मिश्रण है। यह वक्र मिश्रित इस कारण कहलाता है क्योंकि इसमें नतोदर तथा उन्नतोदर प्रकार के वक्र मिलकर पठार बनाते हैं। प्रायः इसके मध्य में सीखने के पठार बनते हैं। इस प्रकार के वक्र में पहले धीमी गति, फिर तेज गति तथा फिर धीमी गति होती है।


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