ग्लेसर का बुनियादी शिक्षण प्रतिमान

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ग्लेसर का बुनियादी शिक्षण प्रतिमान

ग्लेसर का बुनियादी शिक्षण प्रतिमान b.ed के सिलेबस का भाग है। इस पोस्ट में  ग्लेसर का बुनियादी शिक्षण प्रतिमान के बारे में विस्तार से बताया गया है । जिससे आपको ग्लेसर का बुनियादी शिक्षण प्रतिमान के बारे जानकारी हो जाएगी। और आप b.ed के exam me ग्लेसर का बुनियादी शिक्षण प्रतिमान के उत्तर को अच्छे से लिख पाएंगे । ग्लेसर का बुनियादी शिक्षण प्रतिमान को पूरा पढ़े।


परिचय (Introduction )

राबर्ट ग्लेसर ने सन् 1962 में बुनियादी शिक्षण प्रतिमान का विकास किया था। इस प्रतिमान के अन्तर्गत यह मानकर चला जाता है कि ” शिक्षण वह विशेष क्रिया है जो अधिगम की उपलब्धि पर केन्द्रित होती है और इस प्रकार उन क्रियाओं का अभ्यास किया जाता है, जिससे छात्रों का बौद्धिक एकीकरण और उनके स्वतन्त्र निर्णय लेने की क्षमता पहचानी जाती है।”

इस प्रतिमान को बुनियादी प्रतिमान इसलिए कहा जाता है कि एक तो इसकी रचना में बुनियादी मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो का उपयोग किया गया है और दूसरे, यह ऐसे प्रतिमान का प्रतिनिधित्व करता है जिनके द्वारा शिक्षण की प्रक्रिया को चार बुनियादी घटकों में विभाजित करके बहुत ही सरल और उपयुक्त रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है ।

Bruce Joyce तथा Morsha Well ने इस प्रतिमान को ‘कक्षा-कक्ष मीटिंग प्रतिमान’ (Classroom Meeting Model) का नाम दिया है। 

 शिक्षण प्रक्रिया के चार बुनियादी घटक निम्न है – 

A. अनुदेशनात्मक उद्देश्य (Instructional Objectives)

B. प्रविष्टि अथवा प्रारंभिक व्यवहार (Entering Behaviour)

C. अनुदेशनात्मक प्रक्रिया (Intructional Procedures)

D. निष्पादन मूल्याकन (Performance Assessment)

(1) अनुदेशात्मक उद्देश्य – ये वे उद्देश्य है जो शिक्षण शुरू करने से पूर्व शिक्षक निर्धारित करता है। ये उद्देश्य व्यावहारिक रूप से लिखे जाते हैं। ये उद्देश्य सीखने की सीमा का बोध कराते हैं। शिक्षक इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शिक्षण कार्य करता है। ये शिक्षण को निश्चित दिशा प्रदान करते हैं। 

(2) प्रारम्भिक व्यवहार- शिक्षण प्रक्रिया शुरू करने से पहले छात्रों के पूर्व ज्ञान, बुद्धि का स्तर, सीखने को योग्यताओं आदि का आकलन किया जाता है। सारी शिक्षण-प्रक्रिया पूर्व व्यवहारों पर आधारित होती है। छात्रों के पूर्व या प्राथमिक व्यवहारों को ध्यान में रखते हुए शिक्षण स्तर का निर्धारण किया जाता है।

 (3) अनुदेशात्मक प्रक्रिया – अनुदेशात्मक प्रक्रिया का सम्बन्ध शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली क्रियाओं से होता है। इस सोपान के अन्तर्गत शिक्षण विधि, शिक्षण प्रविधियाँ, शिक्षण सहायक सामग्री आदि का प्रयोग होता है। इसी के अन्तर्गत ‘अधिगम अनुभव प्रदान किये जाते हैं। यह शिक्षण की अन्तःक्रिया अवस्था होती है।

(4) निष्पादन मूल्यांकन – मूल्यांकन का प्रमुख उद्देश्य होता है, अनुदेशात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति की सीमा का पता लगाना। इसमें निर्णय लिया जाता है कि मूल्यांकन कैसे किया जाये तथा किस प्रकार शिक्षण को सफलता असफलता पता लगाया जाये इस हेतु मूल्यांकन के विभिन्न परीक्षणों (जैसे- निरीक्षण प्रक्षपी तकनीकी साक्षात्कार आदि) का प्रयोग किया जाता है जो छात्रों और शिक्षकों को पृष्ठपोषण (Feedback) प्रदान करता है। निष्पादन मूल्यांकन सत्य, विश्वसनीय वस्तुनिष्ठ तथा प्रभावशाली होना चाहिए।

ग्लेसर का बुनियादी शिक्षण प्रतिमान

बुनियादी शिक्षण मॉडल किसने प्रतिपादित किया?बुनियादी शिक्षण प्रतिमान किसने दिया,ग्लेसर का मूल शिक्षण मॉडल किसने विकसित किया?


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