गिडेन्स का संरचनाकरण का सिद्धांत(Theory of Giddense’s Structuration theory
परिचय (Introduction)–
एंथोनी गिडेंस एक ब्रिटिश समाजशास्त्री हैं । उनका जन्म 1938 ई . में हुआ था । उन्होंने स्रातक स्तर की शिक्षा लंदन के हल्ल विश्वविद्यालय से प्राप्त की । लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । बाद में वे इस संस्था के निदेशक भी बने । इनके शैक्षणिक जीवन को दो भागों में बांटा जा सकता है । पहला भाग 1970 से आरंभ होकर मध्य 1980 तक का है । इस अवधि में उन्होने संरचनाकरण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया । उनके शैक्षणिक जीवन का दूसरा भाग 1980 के मध्य से आरंभ होता है । इस अवधि में उन्होंने आधुनिक समाज का विश्लेषण प्रस्तुत किया है ।
प्रमुख कृतियाँ (Major Books)
•Capitalism and Modern Social Theory, (1971)
•Politics and Sociology in the Thought of Max Weber, (1972)
•The Class Structure of the Advanced Societies, (1973)
• Positivism and Sociology, (ed) (1974)
• New Rules of Sociological Method, (1976)
• Emile Durkheim, (1978)
• Studies in Social and Political Theory, (1979)
संरचनाकरण सिद्धांत (Structuration theory)
संरचनाकरण सिद्धांत के निर्माण में गिडेंस ने प्रचलित समाजशास्त्रीय सिद्धांतों की जमकर आलोचना की है । उन्होंने प्रकार्यवाद , मार्क्सवाद , संरचनावाद , प्रघटनावाद , प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद तथा भूमिका सिद्धांत को अस्वीकार किया ।
उनका संरचनाकरण सिद्धांत सामाजिक तत्व मीमांसा (Ontology ) का सिद्धांत है । वे सिद्धांत के माध्यम से यह जानना चाहते हैं कि इस दुनिया में कौन – कौन सी चीजें हो रही हैं । उन चीजों के विकास में कौन – कौन सी प्रक्रिया काम कर रही हैं । इन प्रश्नों के हल ढूंढने में गिडेंस की अभिरुचि नहीं है । उनके अनुसार सामाजिक संरचना तथा कर्त्ता की क्रिया को अलग करके नहीं देखा जा सकता है । व्यक्ति सामाजिक संरचना का निर्माण करता है तथा सामाजिक संरचना व्यक्ति को प्रभावित करता है । व्यक्ति सामाजिक संरचना का निर्माण , विघटन तथा पुनर्निर्माण करता है । इस अर्थ में व्यक्ति के लिए सामाजिक संरचना बाह्य वस्तु नहीं है । यह तो व्यक्ति की उपज है । व्यक्ति अपने व्यवहार द्वारा सामाजिक संरचना का निर्माण करता है । संरचना जड़ नहीं वरन् चलायमान है । यह बराबर चलती रहती है । यह एक निरंतर प्रक्रिया है ।
संरचनाकरण का सिद्धान्त ‘द्वैतवाद'(Dualism) के स्थान पर ‘द्वयात्मकता’ (Duality) की बात करता है। यह ‘व्यक्ति’ या ‘समाज’ नहीं, ‘व्यक्ति’ और ‘समाज’ की धारणा को प्रस्थापित करता है। गिडेन्स ने क्रिया के लिए ‘एजेन्सी‘ तथा क्रिया करने वाले कर्ता के लिए ‘एजेन्ट’ शब्द का प्रयोग किया है। उनका कहना है कि एजेन्सी तथा संरचना को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। एजेन्सी संरचना में तथा संरचना एजेन्सी में अन्तर्हित है। सभी सामाजिक क्रियाओं की एक सरंचना होती है तथा सभी संरचना का निर्माण सामाजिक क्रियाओं से होता है। अतः एजेन्सी (क्रिया) तथा संरचना एक सिक्के के दो पहलू हैं।
संरचनाकरण सिद्धांत के मौलिक तत्व नियम एवं उपनियम हैं। जब कर्ता अंतः क्रिया करते हैं तब वे नियमों एवं उपनियमों का पालन करते हैं। अतः नियम अंतः क्रिया की विधि है। उदाहरण के लिए हम बड़ों, रिश्तेदारों तथा अतिथियों से मिलते हैं तब प्रणाम या नमस्कार करते हैं। यह अंतःक्रिया का एक नियम है। संरचना इस नियम को वैधता प्रदान करती है। कर्त्ता बाह्य तौर पर इनके अर्थ को समझते हैं। गिडेंस के अनुसार इन नियमों की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं –
(i) ये नियम प्रायः काम में लाए जाते हैं;
(ii) इनका प्रयोग बातचीत तथा अंतःक्रिया में होता है;
(iii) ये नियम दिन-प्रतिदिन व्यवहार में लाए जाते हैं;
(iv) संरचना के नियम अनौपचारिक एवं अलिखित होते हैं;
(v) इनका दबाव कमजोर होता है।
संरचना के इन सभी नियमों की जानकारी कर्त्ता को होती है। गिडेंस अंतः क्रियाओं को संस्था के रूप में परिभाषित करते हैं। संस्था वास्तव में समाज में पायी जाने वाली अंतः क्रियाएं हैं। विवाह, परिवार, नातेदारी, जाति, वर्ग इत्यादि एक दो दिन के लिए नहीं होते हैं। इनका जीवनकाल बहुत लंबा होता है। गिडेंस के अनुसार संस्थाएं चार प्रकार की होती हैं –
(i) प्रतीक, भाषा तथा संचार के विमर्श
(ii) राजनीतिक संस्थाएं
(iii) आर्थिक संस्थाएं
(iv) कानूनी संस्थाएं
गिडेंस के अनुसार संरचना और संस्था संरचनाकरण के मुख्य अवयव हैं। व्यक्ति और संरचना संरचनाकरण के दो प्रमुख ध्रुव हैं। गिडेंस व्यक्ति को तकनीकी अर्थ में एजेंट कहते हैं। वह व्यक्ति जो सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता है, उसे एजेंट कहा जाता है। एजेंट सामाजिक क्रियाओं में सामाजिक आचरण (Social Practice) पर विशेष ध्यान देते हैं। सभी स्थानों पर सामाजिक आचरण का निर्माण तथा पुनर्निर्माण होते रहता है। कर्त्ताओं को इसकी जानकारी होती है। कर्त्ताओं के पास व्यावहारिक ज्ञान होता है। जैसे – कर्ता बकायदा टिकट खरीद कर रेलगाड़ी चढ़ता है। उसके पास दूसरे दर्जे का टिकट है और वह दूसरे दर्जे में ही चढ़ता है। उसे मालूम है, स्टेशन की चाय के दाम क्या है और वह यह भी जानता है कि स्टेशन पर बेची जाने वाली वस्तुओं में ठगाई की गुंजाइश अधिक है। एजेन्ट की इस जानकारी को गिडेन्स व्यावहारिक चेतना (Practical Consciousness ) कहते हैं।
लेकिन कर्त्ता के पास तार्किक चेतना (Discursive Consciousness) भी होती है। चेतना का यह स्तर सामान्य चेतना से ऊपर होता है। कर्ता को समाज के नियम-कानून की भी जानकारी होती है। वह जानता है कि बिना टिकट यात्रा करते समय पकड़े जाने पर उसे दंड देना पड़ेगा। एजेन्ट की यह चेतना तार्किक चेतना (Discursive Consciousness) है ।इसमें उसे सामाजिक आचरण की कायदे-कानून से जानकारी की है।
एक तीसरी प्रकार की चेतना भी एजेन्ट में होती है। इस तीसरी चेतना या तीसरे प्रकार के आचरण को गिडेन्स अचेतन आचरण (Unconscious Practice) कहते हैं। यह अचेतन आचरण समाज के भय और दबाव के कारण होता है। इसे करने में एजेन्ट को अटपटा लगता है। इसमें दबी हुई भावनाएँ होती हैं। इनकी अभिव्यक्ति एजेन्ट नहीं कर पाता। इस तरह के अचेतन व्यवहार के कुछ ऐसे परिणाम भी निकलते हैं जिन्हें स्वीकृति नहीं दी जाती।
निष्कर्ष
गिडेन्स ने संरचनाकरण का जो सिद्धान्त रखा है, वह एक बहुत बड़े प्रोजेक्ट की उपलब्धि है। उन्होंने इस पर पूरे 30 वर्षों तक निरन्तर काम किया है। इसमें उन्होंने क्लासिकल और आधुनिक सिद्धान्तों के साथ एक आलोचनात्मक संवाद स्थापित किया है। संरचनाकरण इसी संवाद का परिणाम है। इस सिद्धान्त में गिडेन्स ने कई समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों का मिश्रण किया है। वे संरचना का तात्पर्य नियम और स्त्रोतों में निकालते हैं। संरचना कोई ऐसा प्रतिमान नहीं है जो मनुष्य के जैविकीय शरीर में उपस्थित हो और न कोई विचारों और विचारधाराओं की कोई युक्त वस्तु। इसको सक्रियात्मक रूप से उत्पन्न किया जाता है, पुनः उत्पन्न किया जाता है और कर्ताओं की क्षमता ओर योग्यता के आधार पर हस्तान्तरित किया जाता है। बहुत थोड़े में संरचनाकरण निस्तर होने वाली अन्तः क्रियाओं की प्रक्रिया है।
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