लुईस कोजर के संघर्ष के प्रकार्य पर विचार |लुईस कोजर का संघर्ष का प्रकार्यवादी सिद्धांत

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लुईस कोजर का संघर्ष के प्रकार्यात्मक विचार (Lewis Coser’s Functional Ideas of Conflict)



लुईस कोजर के संघर्ष के प्रकार्य पर विचार



लुईस अल्फ्रेड कोसर (27 नवंबर 1913 को बर्लिन में – 8 जुलाई 2003 को कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स में) एक जर्मन- अमेरिकी समाजशास्त्री थे।

उनका डॉक्टरेट शोध प्रबंध, “सामाजिक संघर्ष के कार्य” 1956 में प्रकाशित हुआ था

लुईस कोजर ( लेविस कोजर ) ने अपने संघर्ष सिद्धांत को अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘ The Functions of Social Conflict ‘ में प्रस्तुत किया है , इनके सिद्धांत को ‘ संघर्ष का प्रकार्यवाद ‘ भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सामाजिक संघर्ष के प्रकार्यात्मक पक्ष पर बल दिया है ।

कोजर का कथन है कि संघर्ष नियमित स्वाभाविक एवं सहज है। संघर्ष संरचना से उभरता है। संघर्ष के सकारात्मक अर्थात् प्रकार्यात्मक परिणाम होते हैं। अर्थात संघर्ष समाज में प्रकार्य उत्पन्न करता है। संघर्ष समाज मे एकीकरण और अनुकूलन उत्पन्न करता है । कोजर ने ये विचार सिमेल की एकीकरणवादी धारणा को स्वीकार करके दिए हैं । सिमेल ने कहा संघर्ष न केवल अनिवार्य है , बल्कि संघर्ष के सकारात्मक परिणाम होते हैं ।

कोजर के अनुसार सामाजिक संघर्ष के दो प्रकार के सम्भावित परिणाम होते हैं ; संगठनात्मक और विघटनात्मक ।

             सामाजिक संघर्ष से संगठनात्मक परिणाम उस अवस्था में नजर आते हैं जबकि संघर्ष कर रहे विरोधी पक्षों की समान आस्था समाज के कुछ आधारभूत मूल्यों में होती है । उदाहरणार्थ , लोकतंत्र के कुछ आधारभूत मूल्यों के आधार पर ही शासक दल और विरोधी दल संसद या विधानसभा के अन्दर व बाहर एक – दूसरे से टकराते हैं , परन्तु इस प्रकार के टकराव या संघर्ष से हानि के स्थान पर लाभ ही होता है क्योंकि टकराव व आलोचना के माध्यम से दोनों ही पक्षों को अपनी – अपनी कमियां मालूम हो जाती है और वे उन्हें दूर करके ऐसे कार्यों को करने का प्रयास करते हैं जिनसे अधिकाधिक लोकहित सम्भव हो। इसी प्रकार किसी बाहरी समूह से संघर्ष होने पर भी समूह के अन्दर सदस्यों में एकता पनपती है क्योंकि उनमें एकजुट होकर शत्रु का सामना करने की समाज की इच्छा या संकल्प – शक्ति पनपती है । इस प्रकार के प्रत्यक्ष संघर्ष के अतिरिक्त अप्रत्यक्ष संघर्ष के अन्तर्गत प्रतिस्पर्द्धा का भी उल्लेख किया जा सकता है । आज सामाजिक , विशषेकर आर्थिक जीवन की सारी प्रगति प्रतिस्पर्द्धा के कारण ही सम्भव हुई है ।

                      इसके विपरीत , सामाजिक संघर्ष के विघटनात्मक परिणाम उस अवस्था में उत्पन्न होते हैं जबकि संघर्ष कर रहे विरोधी पक्षों की कोई आस्था समाज के आधारभूत मूल्यों में नहीं होती है और वे एक – दूसरे को मिटा देने का हर सम्भव प्रयास करते हैं । दो सेनाओं के बीच युद्ध या दो सम्प्रदायों के बीच दंगा – फसाद विघटनात्मक परिणामों को उत्पन्न करने वाले संघर्ष हैं जिनके कारण समाज में जान – माल की अत्यधिक हानि होती है ।

      कोजर के मतानुसार अगर संघर्ष के इन अकार्यों को निकाल दिया जाए तो संघर्ष समाज या समूह के लिए हितकर ही होता है । उनके शब्दो में , ” संघर्ष अपने रूप में अकार्यात्मक कदापि नहीं है , अपितु समूह के निर्माण तथा स्थायित्व के लिए कुछ मात्रा में संघर्ष एक अनिवार्य या मौलिक तत्व है । ” 



          कोजर ने दो प्रकार के संघर्षों में भेद किया है- 

( अ ) यथार्थवादी संघर्ष

( ब ) अयथार्थवादी संघर्ष 

वे संघर्ष जो कि कतिपय लक्ष्यों के आधार पर कुछ परिणामों को प्राप्त करने के लिए उत्पन्न अथवा विफल हुए लक्ष्यों को पुनः प्राप्त करने की ओर उन्मुख होते हैं उन्हें यथार्थवादी संघर्ष कहते हैं। ऐसे संघर्ष यथार्थवादी इस अर्थ में होते हैं कि इनमें संघर्ष करने वाले पक्षों के सामने कुछ यथार्थ लक्ष्य होते हैं और वे कुछ ठोस परिणामों की प्राप्ति के लिए ही आपस में टकराते हैं । यथार्थवादी संघर्ष में दो विरोधी पक्ष अपने – अपने लक्ष्यों की प्राप्ति पर अधिक बल देते हैं , न कि दूसरे पक्ष को नष्ट कर देने पर ।

       इसके विपरीत अयथार्थवादी संघर्ष में न तो लक्ष्य स्पष्ट होता है और न ही किन्हीं विशिष्ट परिणामों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया जाता है । ऐसे संघर्ष में लक्ष्य या परिणाम महत्वपूर्ण नहीं होता , इनमें तो आक्रमण स्वयं विरोधी पक्ष पर किया जाता है।

स्पष्ट है कि यथार्थवादी संघर्ष में लक्ष्य या परिणाम प्राप्ति पर अधिक बल दिया जाता है और इन लक्ष्यों की प्राप्ति के साधन के रूप में संघर्ष में भाग लेने वाले पक्षों के सामने प्रकार्यात्मक विकल्प होते हैं । इसलिए यथार्थवादी संघर्ष में शत्रु के विनाश की अपेक्षा लक्ष्यों की प्राप्ति अधिक महत्वपूर्ण होती है

जबकि अयथार्थवादी संघर्ष में लक्ष्यों के रूप में , न कि साधनों के रूप में प्रकार्यात्मक विकल्प पाए जाते हैं। कोजर के अनुसार अयथार्थवादी संघर्ष अक्सर कम स्थायी और अधिक विघटनकारी होते हैं । यथार्थवादी संघर्ष यथार्थवादी लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में निर्देशित होता है । इस प्रकार के संघर्षों का जन्म परस्पर विरोधी मूल्यों तथा सीमित साधनों के असमान वितरण से होता है जबकि अयथार्थवादी संघर्ष आशाभंग तथा वंचित होने के व्यवहार के रूप में प्रकट होते हैं क्योंकि इसमें आक्रमणशील कार्य से ही सन्तोष प्राप्त किया जाता है । 

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कोजर के अनुसार संघर्ष के प्रकार्य ( According to Coser Function of Conflict )-

कोजर ने सामाजिक संघर्ष के सकारात्मक प्रकार्यों के विषय में विस्तार से चर्चा की है और जार्ज सिमेल की परम्परा के अनुरूप यह दर्शाने का प्रयास किया कि नवाचार तथा सृजनात्मक कार्यों को करने में संघर्ष किस भांति सामाजिक व्यवस्था को जड़ बनने से रोकता है । 

  • संघर्ष दो विरोधी पक्षों के बीच होने वाले टकराव को चरम रूप देकर अन्ततः उसे शान्त करता है ।
  • संघर्ष नये आदर्श – नियमों को स्थापित करके या पुराने नियमों को पुनर्जीवित करके अनेक शिकायतों को दूर करने में सहायक सिद्ध होता है । 
  • बाह्य – समूह के साथ संघर्ष होने पर अन्त : समूह के सदस्यों में स्वतः ही एकता पनपती है । 
  • कोजर के मतानुसार सामाजिक संघर्ष से न केवल नये आदर्श – नियमों और संस्थाओं का विकास सम्भव होता है , अपितु नई साझेदारी तथा साहचर्य भी पनपते हैं ।
  • संघर्ष का ही एक रूप प्रतिस्पर्द्धा है जिसके कारण औद्योगिक विकास तथा अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार सम्भव है और समाज व्यवस्था को नई गति प्राप्त होती है । 
  • संघर्ष से तनाव व निराशा दूर करने में सहायता मिलती है तथा समाज व्यवस्था को नई परिस्थितियों अवसर प्राप्त होता है । 
  • कोजर ने कहा द्वंद्व से अक्सर परिवर्तन होता है जो समाज के लिए लाभकारी होता है । 
  • कोजर के अनुसार समाज में संघर्ष ‘ सुरक्षा बाल्व ‘ के रूप में संस्थाओं के माध्यम से क्रियाशील रहता है ।अर्थात् , संघर्ष के मामले में सामाजिक संस्थाएं एक प्रकार से ‘ सुरक्षा बाल्व ‘ की तरह काम करती हैं । 

 

 निष्कर्ष –  

इस प्रकार कोजर का निष्कर्ष यह है कि सामाजिक संघर्षों का विघटनात्मक रूप पेश करना उचित नहीं है परन्तु ऐसा नहीं है कि संघर्ष हर रूप में समाज के लिए लाभप्रद ही होता है । संघर्षों से विघटनात्मक परिणाम भी उत्पन्न हो सकते हैं और होते भी हैं । परन्तु , संघर्ष के संगठनात्मक परिणामों को या सकारात्मक प्रकार्यों को अनदेखा नहीं किया जा सकता । संघर्षों के सामाजिक प्रकार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा दूरगामी प्रभाव वाले होते हैं।

#लुईस कोजर का संघर्ष के प्रकार्यात्मक विचार

#लुईस कोजर के संघर्ष के प्रकार्य पर विचार

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