व्यवसायीकरण का अर्थ (MEANING OF VOCATIONALIZATION)
व्यवसायीकरण का सामान्य अर्थ किसी भी प्रकार के व्यवसाय से होता है परन्तु माध्यमिक शिक्षा में इसका अर्थ किसी विशेष विषय के प्रशिक्षण से है, जैसे- टैक्नीकल शिक्षण या फिर शैक्षिक शिक्षण।
माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण की समस्या (Problem of Vocationalization of Secondary Education)
समस्या का स्वरूप
हमारे देश में माध्यमिक शिक्षा को व्यवसाय से जोड़ने का सुझाव सर्वप्रथम भारतीय शिक्षा आयोग (हन्टर कमीशन, 1882) ने दिया था। उसने माध्यमिक स्तर पर दो प्रकार के पाठ्यक्रम शुरू करने का सुझाव दिया-
(अ) साहित्यिक और (ब) व्यावसायिक
वुड एवं ऐक्ट रिपोर्ट, 1937 में भी यही सुझाव दिया गया। सार्जेन्ट योजना, 1944 में इन्हें क्रमशः साहित्यिक और तकनीकी पाठ्यक्रम का नाम दिया गया।
मुदालियर कमीशन, 1952-53 में इस स्तर पर विविध पाठ्यक्रम (Diversified Courses) चलाने का सुझाव दिया और इनके संचालन हेतु सामान्य माध्यमिक स्कूलों को बहुउद्देशीय स्कूलों (Multipurpose Schools) में बदलने का सुझाव दिया।
सरकार ने इस दिशा में ठोस प्रयत्न किए परन्तु असफलता ही हाथ लगी। कोठारी कमीशन, 1964-66 ने माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम के विविधीकरण (Diversfication) के स्थान पर माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण का सुझाव दिया।
इस हेतु उसने माध्यमिक स्तर (कक्षा 9 व कक्षा 10) पर कार्यानुभव (Work Experience) और + 2 पर मेधावी छात्रों के लिए सामान्य पाठ्यक्रम और सामान्य छात्रों के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने का सुझाव दिया।
उसने स्पष्ट किया की माध्यमिक स्तर पर कार्यानुभव के अन्तर्गत छात्र-छात्राओं को कार्यशालाओं, व्यावसायिक संस्थानों, कृषि फार्मों और औद्योगिक संस्थानों में कार्य करने के अवसर प्रदान किए जाएँ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में इसे सिद्धान्तः मान लिया गया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 ने इस पर अपनी मोहर ठोक दी। तब यह कल्पना की गई थी कि कार्यानुभव (Work Experience) से बच्चों में शारीरिक श्रम के प्रति निष्ठा उत्पन्न होगी और उनमें व्यावसायिक रुझान विकसित होगी और +2 की व्यावसायिक शिक्षा से वे स्वरोजगार शुरू कर सकेंगे अथवा व्यावसायिक संस्थानों में नौकरी प्राप्त कर सकेंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की कार्य योजना में +2 पर, 1995 तक 25% छात्र-छात्राओं को व्यावसायिक धारा में लाने का लक्ष्य रखा गया था।
इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु केन्द्रीय सरकार ने 1988 में +2 स्तर पर माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण की योजना भी शुरू की जिसके अन्तर्गत +2 पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए राज्य सरकारों को आर्थिक सहायता देनी शुरू की।
साथ ही उसने इस स्तर की व्यावसायिक शिक्षा सम्बन्धी नीति निश्चित करने एवं दिशा निर्देशन करने हेतु ‘संयुक्त व्यावसायिक शिक्षा परिषद’ (Joint Council of Vocational Education, JCVE) का गठन किया। इस परिषद ने 1992 तक देश के 44,000 स्कूलों को 12543 व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाने की मंजूरी दे दी थी। परन्तु विडम्बना यह है कि 1995 तक तो इस धारा में केवल 2.56% छात्र-छात्राओं को ही लाया जा सका था। और बहुत प्रयत्न करने के बाद 2001 तक लगभग 11% छात्र-छात्राएँ ही इस धारा में आ सके थे।
समस्या यह है कि कहीं माध्यमिक स्तर के विविध पाठ्यक्रमों (Diversified Courses) की तरह ये +2 स्तर के व्यावसायिक पाठ्यक्रम (Vocational Courses) भी असफल न हो जाएँ।
इस प्रकार वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण की समस्या का स्वरूप पहले से एकदम भिन्न है। अब समस्या है-माध्यमिक स्तर (कक्षा 9 तथा 10) पर कार्यानुभव अथवा कार्य शिक्षा शुरू करने और उसे सफल बनाने की और +2 पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने और उन्हें सफल बनाने की।
समस्या के कारण
इस समस्या के दो पहलू हैं-
पहला माध्यमिक स्तर (कक्षा 9 व 10) पर कार्यानुभव अथवा कार्य शिक्षा शुरू करना और उसे सफल बनाना और
दूसरा +2 पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करना और इन दोनों उन्हें सफल बनाना।
परन्तु हम ये दोनों ही कार्य सही ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। समस्याओं के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) छात्र और उनके अभिभावकों का शारीरिक श्रम प्रधान व्यावसायिक शिक्षा की अपेक्षा मानसिक कार्य प्रधान उच्च शिक्षा की ओर अधिक रुझान है।
(2) माध्यमिक स्तर (कक्षा 9 व 10) पर कार्यानुभव अथवा कार्य शिक्षा की व्यवस्था के लिए न मानव संसाधन है और न वस्तु संसाधन है।
(3) +2 पर सामान्य विद्यालयों में जो व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं उनके पाठ्यक्रमों में भाषा एवं आधार पाठ्यक्रमों का अनावश्यक बोझ है।
(4) इन पाठ्यक्रमों की एक कमी यह भी है कि इनमें प्रायोगिक पक्ष की अपेक्षा सैद्धान्तिक पक्ष पर अधिक बल है। छात्रों की अधिक शक्ति सैद्धान्तिक ज्ञान में ही लगती है, वे यथा व्यवसाय में कुशलता प्राप्त नहीं कर पाते। परिणामतः उनकी मार्केट वैल्यू कम है, वे रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते।
(5) अधिकतर सामान्य विद्यालयों में +2 पर किसी व्यावसायिक पाठ्यक्रम के चलाने के लिए आवश्यक प्रयोगशाला, कार्यशाला एवं अन्य सामग्री की उचित व्यवस्था नहीं है, तब उनमें व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था कैसे की जा सकती है!
(6) इन पाठ्यक्रमों को चलाने के लिए योग्य, दक्ष एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की भी कमी है। बिना योग्य, दक्ष एवं प्रशिक्षित शिक्षकों के ये पाठ्यक्रम कैसे चलाए जा सकते हैं!
(7) किसी भी व्यवसाय की शिक्षा वास्तविक रूप में व्यावसायिक केन्द्रों पर ही दी जा सकती है और आलम यह है कि +2 के इन व्यावसायिक शिक्षा के छात्र-छात्राओं को इनमें कार्य करने के अवसर सुलभ नहीं हैं।
(8)सबसे बड़ा कारण है ईमानदारी और निष्ठा की कमी। इन पाठ्यक्रमों को चलाने के लिए सरकार जो आर्थिक सहायता दे रही है उसके आधे से अधिक भाग का बन्दर बाँट हो जाता है। शिक्षक पूर्ण निष्ठा से अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह नहीं करते और छात्र भी अपने भविष्य की चिन्ता छोड़ मौज-मस्ती मारते हैं।
समस्या का समाधान
(1) छात्र और उनके अभिभावकों में श्रमप्रधान व्यावसायिक शिक्षा के प्रति रुझान उत्पन्न करने का आधारभूत उपाय तो यह है कि माध्यमिक स्तर (कक्षा 9 व 10) पर सभी छात्र-छात्राओं के लिए शारीरिक श्रम प्रधान सामाजिक कार्य करने अनिवार्य हों।
इसका दूसरा उपाय यह है कि +2 की इस व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को स्वरोजगार के लिए ऋण उपलब्ध कराए जाएँ।
और तीसरा उपाय यह है कि व्यावसायिक केन्द्रों पर कम से कम +2 व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों की ही नियुक्ति हो। तब छात्र और उनके अभिभावक इस शिक्षा की ओर आकर्षित होंगे।
(2) कार्यानुभव अथवा कार्य शिक्षा के लिए जब न मानव संसाधन हैं न वस्तु संसाधन हैं तो फिर इस विचार को दफना दिया जाए। फिर हमारे देश में इस स्तर के लगभग 80% बच्चे अपने घरेलू कार्यों एवं व्यवसायों में हाथ बंटाते ही हैं।
3) +2 पर एकादमिक बालकिन और व्यावसायिक कॉलिज अलग-अलग हों। इन पाठ्यक्रमों को सही रूप में तभी चलाया जा सकता
(4) +2 पर चलाए जाने वाले व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में से भाषा और आधार पाठ्यक्रम निकाल दिए जाएँ। माध्यमिक शिक्षा उत्तीर्ण छात्रों से बिना इनके यथा पाठ्यक्रम पूरे करने की अपेक्षा की ही जा सकती है।
(5) इन पाठ्यक्रमों में सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक कार्यों को बराबर का महत्त्व दिया जाए। इनमें से भाषा और आधार पाठ्यक्रमों को निकाल देने के बाद सैद्धान्तिक पक्ष पर जो 35% के लगभग बोझ कम होगा, उसे प्रायोगिक कार्यों पर लगाया जाए।
(6) यदि सरकार सचमुच +2 पर इन व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को चलाना चाहती है तो उसे आवश्यक प्रयोगशाला, कार्यशाला और अन्य सामग्री के लिए आवश्यक आर्थिक सहायता देनी चाहिए। यह भी आवश्यक है कि यथा धनराशि का सदुपयोग हो।
(7) योग्य, दक्ष एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की पूर्ति के लिए अलग से व्यावसायिक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों की स्थापना की जाए। ये प्रशिक्षण महाविद्यालय भी आवश्यक साज-सज्जा से पूर्ण होने चाहिए।
(8) व्यावसायिक शिक्षा संस्थाओं और व्यावसायिक केन्द्रों में आपस में सहयोग होना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब व्यावसायिक शिक्षा के छात्र व्यावसायिक केन्द्रों पर बिना पैसा लिए ईमानदारी और लगन से कार्य करें।
(9) यह भी आवश्यक है कि इस क्षेत्र से जुड़े सभी व्यक्ति ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से कार्य करें। तब कम संसाधनों से भी अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
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