होमर की कृतियों के अध्ययन से तत्कालीन संस्कृति और सभ्यता का विवरण प्राप्त होता है जो इस प्रकार है –
राज्य-व्यवस्था
होमर काल में राज्य की व्यवस्था अत्यन्त प्रारम्भिक स्थिति में थी। प्रत्येक राज्य कुछ ग्राम समूहों का एक शिथिल संगठन मात्र था। इन ग्राम समूहों के निवासी अपने को किसी पूर्वज की सन्तान मानते थे और प्रायः सामन्त के अधीन रहते थे। जो सामन्त सबसे शक्तिशाली होता था उसे राजा मान लिया जाता था। राजा पृथ्वीं का देवता समझा जाता था। उसके दैवी अधिकार थे। इसके अतिरिक्त राजा के लौकिक अधिकार भी थे। वह राज्य की सेना का प्रधान संचालक समझा जाता था और उसी के नेतृत्व में सेना आक्रमण करती थी। राजा धर्माधीश भी था। उसी के निर्देशन में धार्मिक क्रिया-कलापों का सम्पादन किया जाता था। सिद्धांत रूप में वह राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश माना जाता था। इसके अधिकार पर नियंत्रण रखने के लिये दो प्रधान समितियाँ थीं-ब्यूल और एगोरा। ब्यूल सामन्तों की सभा थी और एगोरा स्वतन्त्र नागरिकों की।
कर-व्यवस्था का भी अभाव था और राज्य की आय अधिकांशतः भेंटों और लूट-मार पर निर्भर थी। इस युग में राज्य-संगठन कितना शिथिल था यह इसी उदाहरण से ज्ञात होता है कि इथेका राज्य का स्वामी ओडाइसियस अपने राज्य से बीस वर्ष तक अनुपस्थित रहा था। सकती है।
आर्थिक व्यवस्था
इस काल में आर्थिक दशा शोचनीय थी। इस युग के मुख्य उद्यम कृषि कर्म, आखेट और पशु-पालन थे। गाड़ियाँ बनाने वाले बढ़ई, हथियार बनाने वाले लुहार तथा स्वर्णकार और कुम्हार के अतिरिक्त विशिष्ट उद्योग धन्धों में कुशल कारीगरों का अभाव था। प्रत्येक परिवार को अपने औजार, कपड़े खाद्यान्न आदि स्वयं बनाने अथवा उत्पन्न करने होते थे। व्यापारियों का अस्तित्व सम्भवतः नहीं था। धन प्राप्त करने के लिये युद्ध और लुटेरों की वृत्ति अपनाई जाती थी। यूनान की आर्थिक दशा को देखने से ज्ञात होता है कि इनकी सभ्यता ग्रामीण थी अथवा नगर जीवन की संकीर्णता अभी इनमें नहीं आयी थी।
सामाजिक जीवन
आर्थिक जीवन की तरह समाज भी था। सुविधा की दृष्टि से समाज का वर्गीकरण किया जाय तो दो वर्ग मिलते हैं। पहले वर्ग में राजा और सामन्तों को देखा जा सकता है तथा निम्न वर्ग में कृषक और दास। इनमें अत्यन्त भिन्नता थी। पहला शासक था और दूसरा शासित, पहला धनी था तो दूसरा गरीब और शोषित था। राजा एवं सामन्त के वैभव का कारण दासों की संख्या मानी जाती थी।
इस युग की समाज की इकाई परिवार था जिसका नियन्त्रण पिता के हाथ में रहता था। होमर काल की नारी उतनी स्वतन्त्र नहीं थी जितनी की मिस्र की थी। वह सार्वजनिक कार्यों में पुरुषों के समान भाग लेती थी और परदे से अपरिचित थीं।
धार्मिक जीवन
समकालीन विश्व की अन्य संस्कृतियों की तरह यूनानी अनेक देवी-देवताओं के उपासक थे। इसलिये उनका धर्म बहुदेववादी था। जिन देवताओं की पूजा होती थी उनमें जियस, अपोलो और एथेना का नाम उल्लेखनीय है। जियस आकाश के देवता थे और अपोलो सूर्य देव थे तथा एथेना को युद्ध देवी से समीकृत किया जा सकता है। इन देवों के अतिरिक्त उनके अन्य प्रकृति के प्रतीकों की पूजा का भी उल्लेख किया जा सकता। क्रीट की भाँति यूनान के निवासी बरगद और पाषाण की पूजा करते थे। अकाल के देवता को हेडीज कहा जाता था।
होमर कालीन यूनानी धर्म की विशेषता यह है कि यह पूर्ण रूप से व्यवहारिक या लौकिक धर्म था। बेबीलोन के निवासियों की भाँति यूनानी देवताओं को मनुष्य की दुर्बलताओं से ऊपर नहीं समझता था। देवता का आकार और रूप-रंग मनुष्य के ही समान था। मनुष्य अमर नहीं है परन्तु देवता अमृत पीने के कारण अमर है। तत्कालीन देवताओं का निवास आकाश में नहीं परन्तु ओलिम्पस (Olympus) नामक पर्वत पर अवस्थित था। जिसकी ऊँचाई एक हजार फीट तक थी। देवी-देवताओं की प्रसन्नता के लिये ओलिम्पस के समीप सभी खेलकूदों का आयोजन किया जाता था। इन खेलों का पर्वत के नाम पर ओलम्पिक नाम रखा गया। यूनानियों के पराधीनता के काल में यह खेल बन्द हो गया था जिसका पुनः प्रारम्भ 1895 ई० में हुआ। आज ओलम्पिक खेलों का विश्व में बड़ा महत्व है। ग्रीक खेलों में जुवेलिन थ्रो, डिस्कस थ्रो, मल्लयुद्ध, रथदौड़ और मैराथन दौड़ प्रमुख थे।
कला
यूनान ने आगे चलकर अपनी विकसित संस्कृति से विश्व सभ्यता को प्रभावित किया। कला की दृष्टि से होमर का काल अत्यन्त प्रारम्भिक अवस्था में था। पुरातत्व साक्ष्यों एवं होमर के काव्य से ज्ञात होता है कि इस काल के यूनानियों के भवन नितान्त साधारण हुआ करते थे। यूनान के निवासी धूप में सूखी ईंटों से मकान की दीवारें बनाते थे। फर्श मिट्टी की होती थी और छत बाँस और लकड़ी की। भोजनालय एवं स्नानागार और स्तम्भ का निर्माण किया जाता था। परन्तु संख्या में इनकी कमी थी। वास्तुकार की प्रतिभा राजाप्रसादों के निर्माण में अधिक चमकी है। ये राजाप्रसाद साधारण भवनों की अपेक्षा अधिक सुव्यवस्थित एवं सुन्दर है परन्तु सामान्य रूप से भवनों के अलंकरण का अभाव था। उनका निर्माण स्वास्थ्य की दृष्टि से नहीं किया जाता था। यही कारण है कि इनमें न तो रोशनदान है न खिड़कियाँ और न तो धूप बाहर निकलने के लिए चिमनी ही थी। मूर्तिकला में भी कोई प्रगति नहीं दिखाई देती।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि होमर कालीन यूनान की कला का रूप अत्यन्त साधारण था। परन्तु इतना कहा जा सकताहै कि इस काल की कला परवर्ती कला की पूर्व पीठिका के रूप में थी। होमर काल के विषय में वान सिकिल का कथन है कि यह कला किसी भी रूप में प्रवाहहीन नहीं थी। इस समय उन संस्थाओं कलाओं और विचारधाराओं का श्रीगणेश हुआ जिन्होंने परवर्ती परिपक्व यूनानी संस्कृति को विशेषता प्रदान की। होमरकालीन कला जीवन की दृष्टि से हीन होते हुए भी सक्रियता की दृष्टि से उत्तम है। दर्शन एवं व्यवहार के क्षेत्र में यह अभी प्रारम्भिक अवस्था में है।
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