निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास | Major Developments in the field of Disarmament And Arms Control in Hindi

निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास | Major Developments in the field of Disarmament And Arms Control in Hindi
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इस लेख में हम निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास | Major Developments in the field of Disarmament And Arms Control in Hindi के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे। इस लेख में हम सबसे पहले यह जानेंगे कि निःशस्त्रीकरण क्या है? फिर जानेंगे शस्त्र नियंत्रण क्या है? इसके बाद हम पढ़ेंगे निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास | Major Developments in the field of Disarmament And Arms Control in Hindi। उपरोक्त सभी टॉपिक को पढ़ने के लिए लेख के अंत तक बने रहे।

Table of Contents

निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास | Major Developments in the field of Disarmament And Arms Control in Hindi

निःशस्त्रीकरण (Disarmament) और शस्त्र नियंत्रण (Arms Control) वैश्विक सुरक्षा के संदर्भ में दो महत्वपूर्ण शब्द हैं, लेकिन इनका अर्थ और उद्देश्य अलग-अलग होते हैं।

निःशस्त्रीकरण क्या है

निःशस्त्रीकरण का अर्थ होता है हथियारों, विशेष रूप से परमाणु, रासायनिक और जैविक हथियारों जैसे जनसंहारक हथियारों का पूर्ण रूप से नष्ट या समाप्त करना। इसका मुख्य उद्देश्य हथियारों को पूरी तरह से खत्म कर विश्व में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना होता है। निरस्त्रीकरण का लक्ष्य दुनिया को सुरक्षित बनाना है, ताकि खतरनाक हथियारों को पूरी तरह समाप्त किया जा सके।

शस्त्र नियंत्रण क्या है

शस्त्र नियंत्रण का उद्देश्य हथियारों की संख्या, उनके विकास और प्रसार को नियंत्रित करना होता है। इसका उद्देश्य हथियारों को पूरी तरह समाप्त करना नहीं बल्कि उन्हें सीमित और नियमित करना होता है। शस्त्र नियंत्रण समझौतों का उद्देश्य युद्ध की संभावना को कम करना होता है, ताकि हथियारों का जिम्मेदार और सीमित उपयोग सुनिश्चित किया जा सके। यह हथियारों की होड़ को रोकने और देशों के बीच तनाव को कम करने में सहायक होता है।

सरल शब्दों में, निःशस्त्रीकरण का अर्थ है हथियारों को समाप्त करना, जबकि शस्त्र नियंत्रण का उद्देश्य उन्हें सीमित और नियंत्रित करना होता है।

निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास | Major Developments in the field of Disarmament And Arms Control in Hindi
निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास | Major Developments in the field of Disarmament And Arms Control in Hindi

निःशस्त्रीकरण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास

परमाणु अप्रसार संधि (NPT) – 1968

परमाणु अप्रसार संधि (NPT) निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है, जिसे 1968 में हस्ताक्षरित किया गया था। इसके तीन मुख्य उद्देश्य हैं:

  • परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना
  • परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग बढ़ावा देना।
  • परमाणु निःशस्त्रीकरण को प्रोत्साहित करना, जिससे परमाणु संपन्न देश अपने हथियारों को कम करें।

हालांकि कुछ देशों ने NPT का उल्लंघन करते हुए परमाणु हथियार बनाए (जैसे उत्तर कोरिया), फिर भी यह संधि परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने का एक मजबूत आधार बनी हुई है।

समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) – 1996

CTBT एक महत्वपूर्ण संधि है जो सभी प्रकार के परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाती है। यह 1996 में अपनाई गई थी। इसका उद्देश्य है कि किसी भी देश को परमाणु हथियारों का परीक्षण करने से रोका जाए। हालांकि, यह संधि अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं हो पाई है क्योंकि कुछ प्रमुख देशों (जैसे अमेरिका, चीन, भारत) ने इसे अभी तक अनुमोदित नहीं किया है।

परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW) – 2017

TPNW का उद्देश्य परमाणु हथियारों को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अवैध बनाना है। यह संधि परमाणु हथियारों के विकास, परीक्षण, उत्पादन और स्वामित्व को प्रतिबंधित करती है। हालाँकि परमाणु संपन्न देशों ने इस संधि को स्वीकार नहीं किया है, लेकिन यह संधि परमाणु मुक्त दुनिया की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

मध्यम दूरी परमाणु बल संधि (INF) – 1987

INF संधि अमेरिका और सोवियत संघ (अब रूस) के बीच 1987 में हुई थी, जिसका उद्देश्य मध्यम दूरी के परमाणु मिसाइलों को समाप्त करना था। इस संधि के तहत हजारों मिसाइलों को नष्ट किया गया। लेकिन 2019 में अमेरिका ने रूस द्वारा उल्लंघन का आरोप लगाते हुए इस संधि से हटने की घोषणा कर दी, जिससे यह संधि समाप्त हो गई।

शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास

स्ट्रेटेजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स (SALT) – 1970 के दशक

SALT के अंतर्गत अमेरिका और सोवियत संघ के बीच परमाणु हथियारों की संख्या को सीमित करने के लिए समझौते हुए।

  • SALT I (1972) के तहत एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल संधि की स्थापना हुई।
  • SALT II (1979) का उद्देश्य परमाणु हथियारों की संख्या को और अधिक सीमित करना था, हालांकि इसे पूरी तरह लागू नहीं किया गया।
स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी (START) – 1991

START संधि 1991 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुई थी, जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों और मिसाइलों की संख्या में कटौती करना था। इस संधि के परिणामस्वरूप दोनों देशों के परमाणु हथियारों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई। New START (2010) इस दिशा में आगे का कदम था।

रासायनिक हथियार सम्मेलन (CWC) – 1993

CWC एक प्रमुख शस्त्र नियंत्रण संधि है जो रासायनिक हथियारों के विकास, उत्पादन और उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है। यह 1997 में लागू हुई। इसने कई देशों को अपने रासायनिक हथियार नष्ट करने के लिए बाध्य किया है। हालांकि कुछ देशों द्वारा इसका उल्लंघन (जैसे सीरिया) चिंता का विषय रहा है।

जैविक हथियार सम्मेलन (BWC) – 1975

BWC 1975 में हस्ताक्षरित हुई थी, जो जैविक हथियारों के विकास और उपयोग को प्रतिबंधित करती है। यह संधि सफल रही है लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें निरीक्षण या निगरानी की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है।

मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) – 1987

MTCR एक अनौपचारिक समझौता है जिसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के प्रसार को सीमित करना है, ताकि कोई देश जनसंहारक हथियारों के लिए मिसाइल न बना सके। हालांकि यह संधि कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, फिर भी इसने मिसाइल प्रौद्योगिकी के प्रसार को धीमा करने में भूमिका निभाई है।

निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास | Major Developments in the field of Disarmament And Arms Control in Hindi
निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में प्रमुख प्रयास | Major Developments in the field of Disarmament And Arms Control in Hindi

निष्कर्ष

निःशस्त्रीकरण और शस्त्र नियंत्रण दोनों ही शांति स्थापित करने और युद्ध के खतरे को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण उपाय हैं। निरस्त्रीकरण का उद्देश्य हथियारों को पूरी तरह समाप्त करना होता है, जबकि शस्त्र नियंत्रण का उद्देश्य उन्हें सीमित और नियंत्रित करना होता है। NPT, CTBT, INF, START जैसे समझौते इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम रहे हैं। हालाँकि अब भी पूर्ण निरस्त्रीकरण एक चुनौती है, विशेष रूप से परमाणु हथियारों के मामले में। इसके लिए निरंतर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संवाद की आवश्यकता है, ताकि एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण विश्व सुनिश्चित किया जा सके।


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